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—यह तो प्रशासनिक संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है

—यह तो प्रशासनिक संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है खास बातें-सात माह से आपदा सहायता के लिए परेशान है शमीम -21 अप्रैल को आये चक्रवाती तूफान में घर हुआ था ध्वस्त -चार बच्चे और बीवी के साथ खुले आसमान के नीचे गुजार रहा है वक्त -पुलिस पूर्व में शमीम पर कर चुकी है एफआइआर-परेशान शमीम नंग-धड़ंग बच्चों […]

—यह तो प्रशासनिक संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है खास बातें-सात माह से आपदा सहायता के लिए परेशान है शमीम -21 अप्रैल को आये चक्रवाती तूफान में घर हुआ था ध्वस्त -चार बच्चे और बीवी के साथ खुले आसमान के नीचे गुजार रहा है वक्त -पुलिस पूर्व में शमीम पर कर चुकी है एफआइआर-परेशान शमीम नंग-धड़ंग बच्चों के साथ समाहरणालय परिसर में धरने पर बैठा पूर्णिया.’कहां तो तय था चिराग हर घर के लिए,कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए, यहां दरख्तों के साये में धूप लगती है, चलो यहां से चलें उम्र भर के लिए, दुष्यंत कुमार की यह पंक्तियां वार्ड नंबर 35 दमका निवासी शमीम अंसारी की बदहाली भरी जिंदगी की कहानी से मिलती-जुलती है. फर्क केवल इतना है कि शमीम ने अभी पलायन को नहीं सोचा है और प्रजातांत्रिक व्यवस्था में आस्था जताते हुए सत्याग्रह को चुना है, लेकिन यह प्रशासनिक संवेदनहीनता की पराकाष्ठा ही है कि शमीम को अपना हक पाने के लिए बीते सात महीने से संघर्ष करना पड़ रहा है और अब नंग-धड़ंग तीन मासूम बच्चों के साथ समाहरणालय परिसर में जिलाधिकारी कार्यालय के समक्ष धरने पर बैठा है. सोमवार को जब जिले के डीएम सहित तमाम आलाधिकारी जिले की 33 लाख लोगों के लिए नीति निर्धारण में समाहरणालय सभागार में व्यस्त थे, ठीक उसी समय व्यवस्था से परेशान और निराश शमीम तथा उसके बच्चे परेशानी दूर करने की गुहार लगा रहे थे. अंतत: दोपहर बाद प्रशासनिक तंद्रा टूटी और सदर अनुमंडल पदाधिकारी ने शमीम को उसका हक दिलाने का आश्वासन दिया और फिर शमीम बच्चों के साथ वापस लौटा. 21 अप्रैल को बदल गयी जिंदगी जिले में 21 अप्रैल 2015 को चक्रवाती तूफान आया था. इस आपदा में जिले में व्यापक स्तर पर जान-माल को नुकसान पहुंचा था. हजारों लोगों का आशियाना उजड़ गया था, तो हजारों एकड़ में लगी फसल भी बरबाद हो गयी थी. चक्रवाती तूफान में दमका निवासी शमीम अंसारी की भी जिंदगी बदल दी. दो कमरे के फूस के घर पर पड़ोसी का बड़ा पेड़ गिरा तो उसके फूस के घर जमींदोज हो गये. विडंबना यह है कि आपदा के बाद आपदा पीडि़तों को सहायता भी मिली लेकिन उस सूची में अभागा शमीम शामिल नहीं था. नतीजा यह है कि शमीम का घर आज भी ध्वस्त है और ध्वस्त घर से खुला आसमान का सीधा साक्षात्कार होता है. आपदा के बाद आयी प्रशासनिक आफत आपदा सहायता जब बंटने लगी तो शमीम भी अपने हक के लिए मुखिया जी से लेकर सीओ साहब तक का चक्कर लगाया. लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है कि जिस पड़ोसी हलीम अंसारी का पेड़ शमीम अंसारी के घर गिरा, उसे तो आपदा मुआवजा मिल गया लेकिन शमीम इससे वंचित रहा. हैरान और परेशान शमीम ने बिना कानून की परवाह किये कुछ लोगों के साथ 17 जून को दमका में एन एच 31 को जाम कर दिया. फिर क्या था, सदर थाना के बड़ा बाबू आये और लिखा पढ़ी की, जिसका नतीजा यह निकला कि शमीम समेत 15 नामजद और 30-35 अज्ञात लोगों के खिलाफ थाना कांड संख्या 223/15 दर्ज कर दिया गया. आपदा की मार झेल रहे शमीम के लिए यह नयी कानूनी आफत थी जिसे आज भी वह भुगत रहा है. साहब अब तो रातें भी नहीं कटती हक पाने की जिद्द पर अड़े शमीम अंसारी को अब दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से मिल पा रही है. पेशे से वह राजमिस्त्री है. लेकिन हक की जद्दोजेहद में अपना पेशा भी ठीक से नहीं कर पा रहा है. लिहाजा आर्थिक तंगी बनी हुई है. गरमी के बाद बरसात की पीड़ा झेला और अब ठंड ने असर दिखाना शुरू कर दिया. फूस की घर में अब छप्पर नहीं है तो कुहासे और ठंड से भरी रात कुछ अधिक ही भयावह लगती है. शमीम ने कहा ‘ साहब अब तो रात भी नहीं कटती है. बच्चे रात भर जागते रहते हैं. हमारी जिंदगी तो अब अभिशाप बन गयी है. आपदा मुआवजा मिल भी जाता है तो बहुत फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि हम टूट चुके हैं’. डीएम साहब, एक नेक काम तो कीजिए धरना पर बैठे शमीम ने दावे के साथ कहा कि वे आपदा पीडि़त हैं और उसे उसका हक मिलना ही चाहिए. कहा कि ‘ साहब आप जांच करवा लीजिए. मैं अगर गलत हूं तो मुझे जेल भेज दीजिए. अगर मैं सही हूं तो मुझे मेरा हक दिला दीजिए’. कहा कि समस्या की वजह से विगत सात माह से उनके बच्चे स्कूल नहीं गये हैं. शमीम ने पूर्व के डीएम बाला मुरूगन डी को याद करते हुए कहा कि वे कहा करते थे कि हर आदमी को रोज एक नेक काम करना चाहिए. शमीम ने कहा ‘ डीएम साहब, आज कम से कम आप नेक काम कर दीजिए’. टिप्पणी-समस्या के बाबत नगर निगम आयुक्त से बातचीत हुई है. शीघ्र ही शमीम को नियमानुसार आपदा मुआवजा उपलब्ध कराया जायेगा. साथ ही उनके बच्चों को स्कूली बैग और किेताबें उपलब्ध करायी जायेगी ताकि वे स्कूल जा सके. रवींद्र नाथ प्रसाद सिंह, एसडीएम, पूर्णिया सदर फोटो: 14 पूर्णिया 4परिचय: समाहरणालय परिसर में धरना पर बैठा मोहम्मद शमीम

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