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संस्कृति का प्रसार कर रहे हैं कलाकार

संस्कृति का प्रसार कर रहे हैं कलाकार खेत सूखे, पेट सूखे, सुना है संसार कोई सुनता नहीं हमारी, क्या बोले सरकार ‘ जैसे नाट्य संवादों के माध्यम से कलाकारों द्वारा जागरूकता फैलाने का प्रयास किया जा रहा हैप्रतिनिधि, बायसीआदिवासी संताल मूल के सभी कलाकारों ने मिल कर अपने उत्थान के लिये कला का सहारा लिया […]

संस्कृति का प्रसार कर रहे हैं कलाकार खेत सूखे, पेट सूखे, सुना है संसार कोई सुनता नहीं हमारी, क्या बोले सरकार ‘ जैसे नाट्य संवादों के माध्यम से कलाकारों द्वारा जागरूकता फैलाने का प्रयास किया जा रहा हैप्रतिनिधि, बायसीआदिवासी संताल मूल के सभी कलाकारों ने मिल कर अपने उत्थान के लिये कला का सहारा लिया है. वे अपने कला तथा सामूहिक नृत्य के जरिये अपने समाज में बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि संताल मूल के सभी लोग अपने धरोहर और संस्कृति को आगे बढ़ा सकें. इसके लिए इस समुदाय के लोगों द्वारा हर तरह का प्रयास किया जा रहा है.इसके अलावा दलित व महादलित समुदाय के लोगों द्वारा भी अपनी पारंपरिक नृत्य जाट-जटिन तथा संगीत को कायम रखने की कोशिश जारी है. ग्रामीण हीरा लाला राय, छकन लाल राय, प्रकाश राय, अशोक राम आदि कहते हैं कि कला साहित्य समाज को बदलने का जरिया मात्र है. साथ ही इससे कलाकार की व्यक्तिगत छवि भी उभर कर सामने आती है. सामाजिक उत्थान में कला साहित्य की भूमिका सर्वोपरी है. बायसी में इन दिनों साहित्यकार तथा कविकारों ने कला मंच के माध्यम से अपनी रचना समाज के सामने प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है. ‘ खेत सूखे, पेट सूखे सुना है संसार कोई सुनता नहीं हमारी क्या बोले सरकार ‘ जैसे नाट्य संवादों के माध्यम से कलाकारों द्वारा जागरूकता फैलाने का प्रयास किया जा रहा है.परमान के कछार पर गत दो वर्षों से कला विकास के प्रयास में सभी समुदाय के लोग शामिल हैं. स्थानीय मो मोसबिर आलम, लुकमान अंसारी ,अबु आला, संजर आदि ने सूरजापुरी लोकगीत व लोक नाटक के माध्यम से सूबे के विभिन्न इलाकों में अपनी पहचान कायम की है.कलाकारों द्वारा नृत्य-संगीत व नाटक के दौरान महिला सशक्तिकरण पर विशेष जोर दिया जा रहा है, जिसमें दहेज व मेहर प्रथा, भ्रूण हत्या आदि के प्रति लोगों को जागरूक किया जाता है. साथ ही इससे कलाकारों के लिए आजीविका का भी प्रबंध हो जाता है.कलाकारों की इस कोशिश को सरकार तथा अन्य संगठनों के सहयोग की आवश्यकता है, ताकि सभ्यता-संस्कृति का भी प्रसार हो सके.

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