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हर महीने दहेज व बाल विवाह के 10 मामलों में होगी कार्रवाई

निर्देश. महिला थाना को खोजने होंगे मामले, वरीय को देनी होगी िरपोर्ट महिला थानों में दहेज प्रताड़ना के मामले तो आते हैं, लेकिन बाल विवाह के नहीं पहुंचते. मामले की खोज के िलए िवभाग ने िनर्देश िदया है. पूर्णिया : राज्य के सभी महिला थानाध्यक्षों को प्रत्येक महीने दहेज और बाल विवाह के 10 मामले […]

निर्देश. महिला थाना को खोजने होंगे मामले, वरीय को देनी होगी िरपोर्ट

महिला थानों में दहेज प्रताड़ना के मामले तो आते हैं, लेकिन बाल विवाह के नहीं पहुंचते. मामले की खोज के िलए िवभाग ने िनर्देश िदया है.
पूर्णिया : राज्य के सभी महिला थानाध्यक्षों को प्रत्येक महीने दहेज और बाल विवाह के 10 मामले की खोज कर कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है. महिला थाना को अब प्रत्येक महीने दहेज और बाल विवाह के 10 मामलों की न सिर्फ खोज करनी होगी, बल्कि उस पर कार्रवाई करना भी अनिवार्य होगा. कार्रवाई करने के बाद वरीय अधिकारी को प्रत्येक महीने रिपोर्ट भी सौंपनी होगी. पुलिस मुख्यालय से सीआइजी कमजोर वर्ग के आइजी ने सभी जिलों के एसपी को इससे संबंधित पत्र लिखा है. इसमें निर्देश दिया गया है कि वे अपने जिले में स्थित महिला थाना में दहेज और बाल विवाह से संबंधित मामलों की खोज कर कार्रवाई करें.
पटना में हुई थी बैठक : दहेज व बाल विवाह के विरुद्ध कार्रवाई को लेकर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 23 मई को पटना में बैठक आयोजित की गयी थी. इस बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि दहेज व बाल विवाह के मामलों की खोज की जिम्मेवारी महिला थाना को दी जाये, क्योंकि वहां इस तरह के मामले अधिक आते हैं. ऐसे मामले संज्ञान में आने के बाद थानाध्यक्ष अपने वरीय पदाधिकारी को बतायेंगे. जिसके बाद वरीय पदाधिकारी कार्रवाई करने में मदद करेंगे.
बाल विवाह से संबंधित बना है अधिनियम : बाल विवाह पर अंकुश लगाने के लिए लगभग 90 वर्ष पूर्व बाल विवाह निरोध अधिनियम 1929 पारित किया गया था. समय-समय पर इस अधिनियम में संशोधन कर नये प्रावधानों को शामिल किया गया. वर्ष 2006 में बाल विवाह प्रतिरोध अधिनियम संसद द्वारा पारित किया गया. जिसमें 21 वर्ष से कम उम्र के बालक तथा 18 वर्ष से कम उम्र की बालिका के विवाह को बाल विवाह माना गया. दोनों पक्षों के विवाह तय करने वाले लोगों को दोषी माना गया है. राज्य सरकार के इस अधिनियम के तहत शक्ति प्रदत्त की गयी है. इसके आलोक में बिहार सरकार द्वारा बिहार बाल विवाह प्रतिरोध नियमावली 2010 दिनांक 11 मई 2010 को पारित की गयी है.
बाल विवाह के मामले में जागरूकता का अभाव
खास बात यह है कि महिला प्रताड़ना और दहेज से संबंधित लगभग 100 मामले प्रत्येक माह थाना में दर्ज होते हैं. लेकिन बाल विवाह का मामला भूले-भटके भी थाना तक नहीं पहुंच पाता है. जबकि स्याह सच यह है कि आर्थिक रूप से पिछड़े सीमांचल के इस इलाके में बड़ी संख्या में हर वर्ष बाल विवाह होते हैं. यहां तक कि नाबालिग बच्चियां बालिका वधू बन कर उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब जैसे राज्यों में जा रही है. बावजूद बाल विवाह के मामले थाना तक नहीं पहुंच पाना आश्चर्य की बात है. दरअसल ऐसे मामले की अमूमन शिकायत नहीं की जाती है और अगर ऐसी शिकायत बाहर भी आती है तो सामाजिक स्तर पर ही उसका निपटारा कर लिया जाता है. दरअसल लोग बाल विवाह के दुष्परिणाम से वाकिफ नहीं हैं और उनमें जागरूकता का अभाव है, लिहाजा बाल विवाह के मामले पुलिस की फाइल का हिस्सा नहीं बन पाती है.
आइजी कमजोर वर्ग ने सभी एसपी को दिया निर्देश
प्रत्येक माह महिला थाना में दहेज के पहुंचते हैं 100 मामले
अब तक थाना नहीं पहुंचा कोई बाल विवाह का मामला
बालिका वधु बन यूपी, हरियाणा व पंजाब जा रहीं नाबालिग बच्चियां
दहेज के मामले तो आते हैं, बाल विवाह के नहीं
दहेज व बाल विवाह मामलों पर कार्रवाई के लिए सीआइजी कमजोर वर्ग के आइजी द्वारा निर्देश दिया गया है. बाल विवाह के एक भी मामले थाना में अब तक नहीं आये हैं. जबकि दहेज से संबंधित शिकायतें आती रही है. महिला प्रताड़ना से संबंधित करीब 100 मामले प्रत्येक माह थाना में आता रहा है. ऐसे अधिकांश मामलों में दोनों पक्षों को बिठा कर थाना में ही निबटा दिया जाता है. औसत चार से पांच गंभीर मामलों के केस दर्ज प्रत्येक माह किया जाता है.
माधुरी कुमारी, महिला थानाध्यक्ष

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