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किस्सा बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन का : दिन में कॉलेज, शाम में शादी

पटना: यह संयोग भी हो सकता है, मगर 2 जून को यह संवाददाता जब बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के दफ्तर में वहां के अध्यक्ष से बातचीत करने पहुंचा, तो कैंपस शादी के टेंट से सजा था और अंदर वैवाहिक समारोह की तैयारी हो रही थी. संवाददाता के साथ यह तीसरा वाकया था. उसने पूछा, तो […]

पटना: यह संयोग भी हो सकता है, मगर 2 जून को यह संवाददाता जब बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के दफ्तर में वहां के अध्यक्ष से बातचीत करने पहुंचा, तो कैंपस शादी के टेंट से सजा था और अंदर वैवाहिक समारोह की तैयारी हो रही थी. संवाददाता के साथ यह तीसरा वाकया था. उसने पूछा, तो बताया गया कि शादी की वजह से हिंदी साहित्य सम्मेलन का दफ्तर बंद है और अध्यक्ष महोदय इसी वजह से नहीं आये हैं.

कभी डॉ राजेंद्र प्रसाद, शिव पूजन सहाय, रामधारी सिंह दिनकर, नागार्जुन, हजारी प्रसाद द्विवेदी, नलिन विलोचन शर्मा और आरसी प्रसाद सिंह जैसे सम्मानित और विख्यात साहित्यकारों के नाम से जुड़ी यह संस्था पिछले कुछ सालों से अलग तरह के मसलों की वजह से चर्चा में है. कुछ साल पहले एक आपराधिक छवि वाले व्यक्ति के अध्यक्ष बनने की वजह से विवाद खड़ा हुआ और उन्हें हटा कर जिस व्यक्ति को इसका अध्यक्ष बनाया गया वह हाल ही में धोखाधड़ी के आरोप में जेल काट कर आया है.


इस हिंदी साहित्य सम्मेलन के भव्य भवन में मेले-ठेले से लेकर शादी विवाह तक के आयोजन तो खूब होते हैं, मगर साहित्यिक आयोजनों का टोटा रहता है और राज्य के ख्याति प्राप्त साहित्यकार इससे दूर ही रहते हैं. कभी बनैली के राजा कृत्यानंद सिंह की याद में बने ऐतिहासिक भवन, जहां हिंदी सम्मेलन का संचालन हो रहा है, को तोड़ कर शॉपिंग मॉल बनाने तक की कोशिशें हो चुकी हैं. इन दिनों वहां एक साहित्य के नाम पर व्यावसायिक शिक्षण संस्थान खोलने की तैयारी चल रही है. इसके नाम पर कई बोर्ड सम्मेलन के कैंपस में नजर आते हैं.

इन दिनों एक कवियत्री और लोक गायिका सविता सिंह नेपाली की अगुआई में आलोक धन्वा जैसे कवि, पद्मश्री गजेंद्र नारायण सिंह जैसे संगीत विशेषज्ञ, खगेंद्र ठाकुर जैसे साहित्यकार और दूसरे कई साहित्य प्रेमी इस भवन और 1919 में स्थापित इस ऐतिहासिक संस्था का सम्मान बचाने के लिए एकजुट होकर प्रयास कर रहे हैं. शुक्रवार को इन लोगों ने महामहिम राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंप कर सरकार से इस दिशा में हस्तक्षेप करने का भी अनुरोध किया है. मगर ये लोग इस ऐतिहासिक संस्था का सम्मान वापस ला पायेंगे या नहीं यह देखने की बात होगी.
संस्था के अध्यक्ष अनिल सुलभ पर आरोप व उनकी सफाई
सवाल : आप संस्था में व्यावसायिक शिक्षण संस्थान चला रहे हैं. हिंदी साहित्य सम्मेलन को प्राइवेट कॉलेज में बदलने की कोशिश कर रहे हैं.
जवाब : यह मेरा नहीं बल्कि स्थायी समिति का फैसला है. और यह संस्थान अभी शुरू नहीं हुआ है, अभी इसे मान्यता ही मिली है. अगर हम कुछ युवाओं को प्रशिक्षित कर रहे हैं तो यह भी साहित्य का ही काम है. तीस साल पहले भी यहां प्रशिक्षण कार्यक्रम होते थे.
सवाल : आपने कुछ साल पहले एक आपराधिक छवि के व्यक्ति के अध्यक्ष बनने पर आंदोलन करके उसे हटने पर मजबूर किया था. मगर अब आप खुद ही धोखाधड़ी के आरोप में जेल जा चुके हैं. क्या आपको त्यागपत्र नहीं देना चाहिये?
जवाब : मेरे साथ साजिश हुई है. जिस पाठ्यक्रम की परीक्षा नहीं आयोजित करने की वजह से मुझे जेल भेजा गया वह कुलाधिपति के आदेश की वजह से बंद भी. इस इल्जाम में तो राज्य भर के शिक्षण संस्थानों के प्रमुख को जेल जाना चाहिये. मेरे खिलाफ लोग लगे हुए हैं.
सवाल : राज्य का कोई सम्मानित और ख्यातिप्राप्त साहित्यकार आपकी कार्यकारिणी में नहीं है.
जवाब : रंजन सूर्यदेव हमारे महामंत्री हैं और उनसे अधिक प्रतिष्ठित साहित्यकार आज की तारीख में कोई नहीं है.
सवाल : सम्मेलन के भवन में साहित्यिक आयोजन कम और शादी ब्याह अधिक होते हैं.
जवाब : ऐसा नहीं कि साहित्यिक आयोजन नहीं होते, हमने तो आयोजनों का तांता लगा दिया है. हां, हमारे पास जब तक आय के विकल्प नहीं हैं, तब तक यह सब करना पड़ता है. पहले तो यहां मेला भी लगता था.
सवाल : सम्मेलन को एनजीओ बनाकर आपने इसको अपने कब्जे में करने की कोशिश की है.
जवाब : बिल्कुल नहीं, एनजीओ बनने से इसके व्यवस्था पारदर्शी हुई है. यह भी सोचिये कि 95 साल बाद मैंने इसे ट्रस्ट बनाया.
नोट : इसके अलावा उन पर संरक्षक सदस्यता फीस एक हजार से बढ़ा कर 11 हजार करने और अपने 350 छात्रों को सम्मेलन का सदस्य बना कर चुनाव जीतने का भी आरोप हैं.
मेरा अनिल सुलभ जी से कोई व्यक्तिगत बैर नहीं है. मगर वे अपारदर्शी तरीके से चुनाव करा कर अध्यक्ष बन गये हैं. उनकी कमेटी में रंजन सूर्यदेव के अलावा कोई साहित्यकार नहीं है. आरोप है कि अपने छात्रों को मेंबर बना लिया है. हिंदी सम्मेलन का तीन टुकड़े में रजिस्ट्रेशन करा लिया है. वे प्रक्रिया में पारदर्शिता बरतें, मेंबरशिप का खुलासा करें. अगर इतने आरोप लग रहे हैं तो पद छोड़ दें, आखिर उन्हें पद से इतना मोह क्यों है.
उषा किरण खां, हिंदी और मैथिली की लेखिका
सुलभ जी ने व्यावसायिक उपयोग के लिए हिंदी सम्मेलन को हड़प लिया है. यह एक महत्वपूर्ण संस्था है. इसके संरक्षण का दायित्व सभी हिंदी लेखकों पर है. सबको मिल कर बैठक करनी चाहिये और निर्णय लेना चाहिये कि इसका सदुपयोग हो. निष्ठावान साहित्यकारों के हाथ इसकी कमान आये. अभी तो स्थिति काफी निराशाजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है. हमलोगों ने राज्यपाल से शिकायत भी की है.
आलोक धन्वा, प्रसिद्ध कवि और बिहार संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष मेरे पितामह बनैली स्टेट के राजा कृत्यानंद सिंह और राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के आजीवन अध्यक्ष और मंत्री रहे. उनकी स्मृति में 1940 के आसपास मेरे पिता और चाचा ने यह भवन बनवा कर बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन को सौंप दिया था. मगर आज भी कभी-कभी जब उस इलाके से गुजरता हूं, तो देखता हूं कि मेला लगा है या शादी ब्याह हो रहा है तो दुख होता है.
बिनोदानंद सिंह, राजा कृत्यानंद सिंह के पौत्र, पूर्णिया

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