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किसानों के मसीहा थे स्वामी सहजानंद
आज किसानों के महानायक स्वामी सहजानंद सरस्वती जी का 129 वां जन्मदिन है. महाशिवरात्रि के दिन उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के देवा गांव के श्री बेनी राय के घर जन्मे सहजानंद सरस्वती आम जन और खास कर किसानों के मसीहा बन, न सिर्फ खेतीहरों की दबी जुबान की बुलंद आवाज बने बल्कि उनके हक […]
आज किसानों के महानायक स्वामी सहजानंद सरस्वती जी का 129 वां जन्मदिन है. महाशिवरात्रि के दिन उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के देवा गांव के श्री बेनी राय के घर जन्मे सहजानंद सरस्वती आम जन और खास कर किसानों के मसीहा बन, न सिर्फ खेतीहरों की दबी जुबान की बुलंद आवाज बने बल्कि उनके हक की लड़ाई को आगे बढ़ाने का काम भी किया.
गांधी जी के चंपारण सत्याग्रह के सफल प्रयोग के बाद देश की बड़ी आबादी के आर्थिक प्रश्नों को सबसे ज्यादा आंदोलित करने का श्रेय भी इन्हीं के नाम है. महात्मा गांधी के नेतृत्व वालेे असहयोग आंदोलन को बिहार में गति प्रदान करने में स्वामी जी की अहम भूमिका रही. इस दौरान उन्होंने गांव-गांव घूम कर अंगरेजी हुकूमत के खिलाफ लोगों को एकजुट कर आंदोलन को संगठित किया. गांवों के गरीब किसानों की हालत और बेबसी देख उन्होंने किसानों को अंगरेजी शासन के जुल्म से बाहर निकालने का प्रण कर अपने संघर्ष को और तेज कर दिया. 5 दिसंबर, 1920 को पटना में मौलाना मजहरूल हक के आवास पर उनकी गांधीजी से पहली मुलाकात हुई. इस दौरान गांधी और मौलाना के व्याख्यान से प्रभावित होकर वह कांग्रेस में शामिल हुए.
1921 में उन्हें गाजीपुर जिला कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया, जिसके बाद वह अहमदाबाद कांग्रेस के सदस्य बने. इसी वर्ष अहमदाबाद कांग्रेस से लौटने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इस दौरान उन्हें गाजीपुर, बनारस, फैजाबाद तथा लखनऊ जेलों की हवा खानी पड़ी. वर्ष 1923 के जनवरी महीने में कारावास से मुक्त हो स्वामी जी गाजीपुर लौटे और पुन: कांग्रेस के काम-काज में लग गये. इस समय तक आंदोलन पर शिथिलता का ग्रहण लगना भी शुरू हो चुका था. 1926 में उन्होंने बिहार प्रांतीय किसान सभा की नींव रख किसानों को जमींदारों के शोषण से मुक्ति दिलाने तथा जमीन पर रैयतों का मालिकाना हक दिलाने की मुहिम शुरू की.
इस दिशा में 1927 में पश्चिमी पटना किसान सभा की स्थापना हुई, जो किसानों के संघर्ष को मजबूत करने में अहम साबित हुआ. इस समय तक स्वामी जी किसानों के मसीहा बन चुके थे. उस समय प्रस्तावित काश्तकारी बिल की खामियों का विरोध और किसान पक्ष को मजबूती से रख, स्वामी सहजानंद ने किसानों के जेहन में अपना स्थान और मजबूत कर लिया. लाहौर कांग्रेस से पहले वर्ष 1930 में सरदार पटेल का बिहार आगमन हुआ. इस यात्रा के दौरान स्वामी और पटेल की कई किसान सभाएं आयोजित हुईं. इन सभाओं में किसान सभा की महत्ता व काश्तकारी बिल का विरोध मुख्य विषय होते थे. दरअसल, जमींदार इस कानून को पास कराने के लिए उत्सुक थे, क्योंकि उसमें जमींदारी में 100 एकड़ पर 10 एकड़ अपनी खास जिरात में लाने का अधिकार प्रदत्त था.
एक तरफ जमींदारों व सरकार के विश्वास भाजन सभाओं के माध्यम से किसानों को इस बिल के फायदे गिनाते, तो वहीं दूसरी तरफ स्वामी जी अपनी सभा के जरिये किसानों को इससे होनेवाली हानि से सचेत करते थे. इनकी सभा तथा प्रचार के सामने अन्य प्रयास सुस्त पड़ जाते थे. इनके आंदोलन का असर यह हुआ कि 10 सैकड़ा जिरात वाले प्रस्ताव को बिल से निकालना पड़ा. यह किसान सभा और स्वामी जी की पहली बड़ी सफलता थी.
अप्रैल, 1936 में लखनऊ सम्मेलन में अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना के बाद उन्हें इसका अध्यक्ष बनाया गया. इस सभा को एन.जी. रंगा, नम्बूदरीपाद, नरेंद्र देव, लोहिया, जेपी तथा झारखंडे राय जैसी हस्तियों का नेतृत्व भी प्राप्त था. इस सभा ने पहले ही वर्ष में किसान घोषणा पत्र जारी कर जमींदारी प्रथा को समाप्त कर किसानों की कर्ज माफी की मांग को प्रमुखता से उठायी. किसानों की आमदनी जो आज भी ज्वलंत मुद्दा बनी हुई है, लगभग 10 दशक पहले सहजानंद सरस्वती जी की चिंता का विषय बन चुकी थी. उन्हें इस बात का एहसास था कि किसानों की आमदनी उनके परिवार के पालन पोषण के लिए अप्रर्याप्त थी. अफसोस है कि आज भी इस समस्या पर काबू नहीं पाया जा सका है. चंद सामंतों के हाथों किसानों का शोषण उन्हें सबसे अधिक खलता था.
जमींदारों की मनमानी और अड़यल रवैये से वह अच्छी तरह वाकिफ थे. उन्हें ज्ञात था कि गिनती के राजा-महाराजा तथा जमींदारों के अलावा आम जनता बदहाली की िजंदगी जीने को मजबूर हैं तथा इनके हित एक दूसरे के खिलाफ भी हैं. इस संघर्ष के दौरान स्वामी जी ने किसानों के बीच यह संदेश भी दिया कि बिना उनकी एकजुटता और मजबूती के जमींदारों का सहयोग प्राप्त नहीं किया जा सकता. इस तरह से स्वामी जी एक के बाद एक किसानी सवालों पर आंदोलनरत रहे. जीवनभर किसानों के हक की लड़ाई लड़ते स्वामी जी 26 जून, 1950 को महाप्रयाण कर गये. जमींदारों व सरकार के खिलाफ बोलने-लिखने के कारण कई बार उन्हें असाधारण टिप्पणियों का शिकार भी होना पड़ा.
स्वामी सहजानंद संघर्ष के साथ ही सृजन के भी प्रतीक थे. अति व्यस्त दिनचर्या के बावजूद अध्यात्म व लेखन की नजरअंदाजी नहीं करते. विभिन्न विषयों पर करीब दो दर्जन पुस्तकों की रचना भी उनके नाम है. बिरादरी से मोह जरूर था लेकिन ‘राष्ट्र पहले और बिरादरी उसके बाद‘ उनका मजबूत सिद्धांत था. शादी के महज एक वर्ष बाद ही पत्नी की मृत्यु हो गयी, जिसके बाद महाशिवरात्रि के दिन ही उन्होंने अपने घर का त्याग कर काशी का रुख किया और दंडी स्वामी अद्धैतानंद जी से दीक्षा प्राप्त कर सन्यासी बन गये़
इसके बाद से उन्हें दंडी स्वामी के नाम से भी जाना गया. कम उम्र में ही अध्यात्मिक हो चुके स्वामी जी गेरुवा वस्त्र जरूर घारण करते थे, परंतु किसानों की बदहाली ने उनका रास्ता बदल दिया. उनकी भक्ति किसानमुखी ज्यादा थी. गांधी, पटेल तथा स्वामी जी के लंबे संघर्ष के बावजूद किसान हितों की रक्षा नहीं हो पायी. आज भी ग्रामीण व शहरी भारत की जीवन शैली के बीच बड़ी खाई है. खेती-बाड़ी घाटे का सौदा बन चुकी है. इस स्थिति में स्वामी जी जैसे महापुरुष की याद आना स्वाभाविक है. स्मरण दुखद हो जाता है कि उनके लंबे संघर्ष के बावजूद कृषक वर्ग का कल्याण नहीं हो पाया है.
आज भी देश में लगभग 19.4 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हैं. लगभग एक चौथाई लोगों को दो समय का भोजन नसीब नहीं हो रहा है. दिन प्रतिदिन खेती का रकबा घटता जा रहा है. यह भी सच है कि कृषि और किसान हालिया राजनीतिक एजेंडे से बाहर के विषय बन चुके हैं. आज का दिन महान किसान प्रणेता श्री सहजानंद जी का जन्मदिवस है, उनके पदचिह्नों पर चल किसानी समस्याओं का समाधान स्वामी जी के लिए सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी. (लेखक जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)
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