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चूहे बतायेंगे दवा का हाल
आइजीआइएमएस. एनिमल हाउस को सीपीसीएएसइए से मंजूरी नयी दवाएं जो प्रमाणित नहीं उन पर अस्पताल प्रशासन करेगा शोध आनंद तिवारी पटना : आप जो दवा खा रहे वह कितनी कारगर है, दवा का साइड इफैक्ट तो नहीं होगा, कौन सी दवा किस बीमारी में सही इस्तेमाल होगा. इस तरह की गुणवत्ताओं की जांच आइजीआइएमएस करेगा. […]
आइजीआइएमएस. एनिमल हाउस को सीपीसीएएसइए से मंजूरी
नयी दवाएं जो प्रमाणित नहीं उन पर अस्पताल प्रशासन करेगा शोध
आनंद तिवारी
पटना : आप जो दवा खा रहे वह कितनी कारगर है, दवा का साइड इफैक्ट तो नहीं होगा, कौन सी दवा किस बीमारी में सही इस्तेमाल होगा. इस तरह की गुणवत्ताओं की जांच आइजीआइएमएस करेगा. दवाओं की सही पहचान जानवरों पर इस्तेमाल करने के बाद होगी. इसके लिए अस्पताल परिसर में बने एनिमल हाउस की मंजूरी केंद्र से मिल गयी है. साथ ही सीपीसीएएसइए (कमेटी फॉर पर्पज ऑफ कंट्रोल एंड सुपरविजन ऑफ एक्सपेरिमेंट ऑन एनिमल) ने भी अनुमति दे दी है. जनवरी में इंस्टीट्यूट ऑफ एथिकल कमेटी की बैठक है, इसके बाद यहां शोध शुरू हो जायेगी. इसमें दो डॉक्टर लखनऊ, एक पटना और एक खगड़िया के शामिल हैं. इनके नेतृत्व में ही शोध कार्य किये जायेंगे.
चूहा व खरगोश पर होगा रिसर्च : मार्केट में आ रही नयी दवाओं को शोध में शामिल किया जायेगा. शोध में इस तरह की दवाएं होंगी, जिसका प्रमाण नहीं हैं और लोग बिना रोक-टोक इसका सेवन कर रहे हैं.
अस्पताल के एनिमल हाउस में डॉक्टर सबसे पहले छोटे जानवरों पर रिसर्च करेंगे. इसकी शुरुआत चूहा व खरगोश पर रिसर्च के साथ होगी. इसके बाद आये रिजल्ट के बाद ही दवाएं लिखने व उसकी बिक्री की अनुमति दी जायेगी.
कई बीमारियों की दवाओं पर होगा रिसर्च : यहां अब गंभीर बीमारियों और विभिन्न दवाओं पर रिसर्च संभव हो सकेगा. विशेषज्ञ डॉक्टरों के अलावा पीजी छात्र भी रिसर्च कर सकेंगे. कैंसर, डायबिटीज, निमोनिया, डेंगू आदि जैसी बीमारियों की दवाओं पर रिसर्च होगा. दवाओं का साइड इफेक्ट भी पता किया जायेगा. यह भी पता किया जा सकेगा कि कौन सी दवा का किस बीमारी पर कितना प्रभाव या कुप्रभाव होता है. डोज कितना कारगर होगा. किस दवा का किस अंग पर प्रभाव पड़ता है. इसमें आयुर्वेद को भी शामिल किया गया है. किस आयुर्वेदिक दवा का किस बीमारी पर क्या असर होता है. कौन सी बीमारी में आयुर्वेद की दवा कारगर है. संस्थान में हर्बल गार्डनमें औषधीय गुण वाले पौधे लगाये
गये हैं. रिसर्च के बाद उनका भी इस्तेमाल अलग-अलग बीमारियों में किया जायेगा.तीसरा अस्पताल, जहां जानवरों पर शोध : प्रदेश में आइजीआइएमएस तीसरा ऐसा अस्पताल होगा, जहां जानवरों पर शोध की अनुमति मिली है. इसके पहले मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच मेडिकल कॉलेज को अनुमति मिल चुकी है. प्राइवेट अस्पतालों में महावीर कैंसर संस्थान को भी रिसर्च करने की अनुमति है.
एनिमल हाउस की मंजूरी केंद्र व सीपीसीएएसइए से मिल गयी है. अगले महीने इंस्टीट्यूट ऑफ एथिकल कमेटी की बैठक होगी. इसके बाद यहां दवाओं पर शोध कार्य शुरू कर दिये जायेंगे. शोध के लिए छोटे जानवर चूहा, खरगोश को शामिल किया गया है. इसके बाद बड़े जानवरों को भी इसमें शामिल किया जायेगा.
डॉ हरिहर दीक्षित, एचओडी, फार्माकोलॉजी विभाग, आइजीआइएमएस
पटना : इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में आने वाले मरीजों की परेशानी कम हो जायेगी. क्योंकि अस्पताल में 25 नये डॉक्टर बहाल किये गये हैं. इसमें अलग-अलग विभाग के डॉक्टर को शामिल किया गया है. डॉक्टर एक सप्ताह के अंदर अपनी ड्यूटी देना शुरू कर देंगे.
इनकी कार्ययोजना भी बता दिया गया है. पांच डॉक्टर इमरजेंसी के ट्रॉमा सेंटर में लगाया गया है. बाकी नेफ्रोलॉजी, हड्डी, न्यूरो आदि वार्डों में लगाये जायेंगे. वहीं जानकारी देते हुए अस्पताल के डायरेक्टर डॉ एनआर विश्वास ने बताया कि मरीजों की सुविधा को देखते हुए डॉक्टर की बहाली की गयी है. इन डॉक्टरों की इंटरव्यू प्रक्रिया पिछले महीने ही पूरी कर ली गयी थी. ऐसे में अब मरीजों को आसानी से डॉक्टर उपलब्ध हो जायेंगे.
पटना : पीएमसीएच कैंपस को प्रदूषणमुक्त बनाने के लिए गुरुवार से नयी पहल की गयी. इसके तहत मरीजों को इमरजेंसी से अन्य वार्ड तक लाने-ले जाने के लिए इ-ट्रॉली की सुविधा शुरुआत की गयी है. इ-ट्रॉली का उद्घाटन अस्पताल के प्रिंसिपल डॉ एसएन सिन्हा व अधीक्षक डॉ लखींद्र प्रसाद ने किया. इसकी शुरुआत होने से अब पीएमसीएच में मरीजों को इमरजेंसी से वार्ड में ट्रांसफर करने के लिए इ-ट्रॉली का इस्तेमाल होगा. यह सेवा पूरी तरह से नि:शुल्क होगी.
बस ट्रांसफर का कागज दिखाना होगा : मरीजों को वाहन लेने के लिए ट्रांसफर कागज दिखाना होगा. गेट के पास ही वाहन खड़ा रहेगा और खुद हेल्थ मैनेजर मरीज को बैठाने के लिए वाहन चालक को निर्देश देंगे. इतना ही नहीं वाहन में मरीज के साथ ही एक परिजन भी बैठ सकेंगे. वाहन एक वार्ड से दूसरे वार्ड तक जायेगी. अब तक एंबुलेंस की मदद से मरीजों को वार्ड में ले जाया जाता था. एंबुलेंस में पांच मरीज एक साथ रहते थे. वाहन में मरीज और उसका एक परिजन होगा.
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