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नोटबंदी मोदी का जनता पर हमला आंदोलन ही हमारा जवाब : दीपंकर
मंथन. राष्ट्रीय समन्वय के अंितम दिन राजनीतिक दलों से जवाब तलब मेधा पाटकर ने की अधिवेशन की अध्यक्षता, मुद्दों पर पार्टी प्रतिनिधियों ने रखी अपनी राय पटना : नोटबंदी मोदी सरकार का जनता पर ताजा हमला है. आंदोलन के अलावा हमारे पास इसका कोई जवाब नहीं है. सरकार के निरंकुश रवैये पर वामदलों के साथ […]
मंथन. राष्ट्रीय समन्वय के अंितम दिन राजनीतिक दलों से जवाब तलब
मेधा पाटकर ने की अधिवेशन की अध्यक्षता, मुद्दों पर पार्टी प्रतिनिधियों ने रखी अपनी राय
पटना : नोटबंदी मोदी सरकार का जनता पर ताजा हमला है. आंदोलन के अलावा हमारे पास इसका कोई जवाब नहीं है. सरकार के निरंकुश रवैये पर वामदलों के साथ अन्य गैर बीजेपी पार्टियों को एक साथ आ कर इसका विरोध करना होगा.
आंदोलन करने का तरीका, समय या नारा अलग-अलग हो सकता है, लेकिन हम सभी का लक्ष्य एक ही है. आप लोगों ने सौ या पांच सौ के नोट या अन्य किसी नोट पर पढ़ा होगा कि कि मैं धारक को फला नोट अदा करने का वचन देता हूं, लिखा रहता है. लेकिन, सरकार ने बड़े नोटों को बंद कर के अपना वचन तोड़ दिया है. बदले में हमें वाे होली वाला दो हजार का गुलाबी नोट थमा दिया है. ये बातें भाकपा माले नेता दीपंकर भट्टाचार्या ने कहीं. रविवार को अंजुमन इस्लामिया हॉल में आयोजित जनआंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय के अंतिम दिन राजनीतिक दलों से सवाल-जवाब के मौके पर वह बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि नोटबंदी के कारण मजदूरों को रोटी की समस्या हो गयी है. हम लोगों का आंदोलन मोदी हटाओ, रोटी बचाओ के नारे से अपनी बात को बुलंद करनी होगी. दीपंकर भट्टाचार्या ने कहा कि अब हर चीज को राष्ट्र भक्ति से जोड़ दिया जाता है. अब भगत सिंह के बेटों को गोलवरकर के ठेकेदार राष्ट्र भक्ति का पाठ पढ़ा रहे हैं.
अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता और नर्मदा बचाओ आंदोलन की सूत्रधार मेधा पाटकर ने जन आंदोलन के मुद्दे पर कहा कि राजनीतिक दलों को साथ रखना चाहिए, ताकि जनता समझे की उनके हक को दिलाने में उनकी सरकार कितनी तत्पर है. आज सरकार संविधान और मानवीय आधार से अलग कार्य कर रही है. जिसका विरोध होना चाहिए.
जनआंदोलन के तीसरे दिन अपनी भागीदारी तय करने आये जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी भी केंद्र सरकार पर जमकर बरसे. जनआंदोलन आैर स्थानीय मुद्दाें पर राय रखने के साथ दलितों और किसानों की आत्महत्या जैसे मु्द्दों पर भी अपनी बात कही. उन्होंने कहा कि मुजफ्फरनगर, दादरी में अखलाक को गलत आरोप में मार दिया गया.
मेरठ और अन्य जगहों पर लव-जिहाद के नाम पर अल्पसंख्यकों पर अत्याचार किया जा रहा है. कैराना में भुखमरी और रोजगार के अभाव में लोगों का पलायन हुआ, लेकिन संघ के लोगों ने उसे धार्मिक रंग दे दिया. जनअांदोलन पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि जन आंदोलन को दबाने का अब तक का सबसे क्रूर दौर चल रहा है. उन्होंने अमीर के कुत्ता पालने के खर्च और गरीब को रहने के लिए घर व रोटी पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि 1974 का रेल आंदोलन अपने काम एक बड़ा उदाहरण है. लेकिन, आंदोलन को राजनीतिक पार्टियों के प्रभाव में रख कर खड़ा नहीं किया जा सकता. उन्होंने पंजाब और हरियाणा के किसान आत्महत्या पर भी अपनी बात रखी.
मजदूरों को काम और आवास जरूरी : गीता राम
तमिलनाडु की सामाजिक कार्यकर्ता गीता राम कृष्णन उर्फ गीतामां ने मजदूरों के आवास और काम के मुद्दे पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि असंगठित क्षेत्र में लगातार मजदूरों की संख्या बढ़ रही है. आंकड़ा अब 95 फीसदी तक पहुंच गया है. गरीब के बच्चों को शिक्षा, बेरोजगारों को आवास व काम देने में सरकार विफल है. बेरोजगारों को भत्ता नहीं मिल रहा है.
बुनियादी जरूरतों पर हमारा अधिकार : प्रफुल्ल
ओड़िसा के सामाजिक कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामंत्रों ने कहा कि जन आंदोलनों में बुनियादी जरूरतों पर बात होनी चाहिए. जंगल, जमीन, जल के साथ सम्मान के साथ जीना हमारा अधिकार है. देश में आर्थिक असमानता लगातार बढ़ती जा रही है. सरकार कॉरपोरेट घरानों को बढ़ावा दे रही है. गरीबों की हकमारी हो रही है.
जन आंदोलन पर अन्य लोगों ने अपनी बात रखी. जदयू की अंजुम अारा ने कहा कि जन आंदोलन के माध्यम से लोगों की जरूरत सरकार तक पहुंचती है और सरकार को इसे पूरी करनी पड़ती है. वहीं, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी ने भी जन आंदोलनों का समर्थन किया. उन्होंने छोटानागपुर, संथाल व जमीन अधिग्रहण कानून जैसे मामलों की चर्चा की.
खनिज हमारे लिए अभिशाप : मरांडी
कार्यक्रम में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी ने कहा कि नोटबंदी से भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगने वाली है. मैं भी उसी पाठशाला का विद्यार्थी रहा हूं जहां पीएम पढ़े हैं. उन्हें नोटबंदी से जूझने वालों लोगों की तकलीफ नहीं दिखाई दे रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव के साथ ही समाज को सबसे ज्यादा भ्रष्ट बनाने की कोशिश हुई है. मरांडी ने झारखंड के लोगों की परेशानियों का हवाला देते हुए कहा कि हमारी अकूत खनिज संपदा हमारे लिए अभिशाप बन गयी है. इसी खनिज की वजह से सब हमें लूटने आते हैं. हम झारखंड के लोग विस्थापित होने के लिए अभिशप्त बना दिये गये हैं. लोगों के हक के लिए हमें जन आंदोलनों को खड़ा करना होगा.
एक साथ आना होगा
झारखंड की सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला ने कहा कि हम आंदोलन करने वाले साथ में हैं. सबसे पहले अपने को जन पक्षीय कहने वाली पार्टियों को एक मंच पर आना चाहिए. तब ही हम बेहतर तरीके से संवाद कर सकते हैं. उन्होंने झारखंड और केन्द्र की भाजपा सरकारों को आदिवासी विरोधी और जन विरोधी बताया.
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