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न जज, न सदस्य, पांच माह से सुनवाई नहीं
नगर निगम. शहर में बढ़ रहे अवैध निर्माण एक बेंच में जनवरी से जज का पद रिक्त दूसरे बेंच में फरवरी से सदस्य नहीं पटना : राजधानी में अवैध निर्माण पर अंकुश लगाने को लेकर चल रहा अभियान ठंडा पड़ गया है. अवैध निर्माण को लेकर नगर आयुक्त कोर्ट से आये फैसलों पर अपील के […]
नगर निगम. शहर में बढ़ रहे अवैध निर्माण
एक बेंच में जनवरी से जज का पद रिक्त दूसरे बेंच में फरवरी से सदस्य नहीं
पटना : राजधानी में अवैध निर्माण पर अंकुश लगाने को लेकर चल रहा अभियान ठंडा पड़ गया है. अवैध निर्माण को लेकर नगर आयुक्त कोर्ट से आये फैसलों पर अपील के लिए राज्य सरकार ने ट्रिब्यूनल कोर्ट का गठन किया था, मगर इन ट्रिब्यूनल कोर्ट में पांच माह से सुनवाई ठप है. दरअसल एक ट्रिब्यूनल बेंच में जनवरी से जज का पद खाली है और दूसरी बेंच में फरवरी माह से सदस्य ही नहीं हैं. कोर्ट का कोरम नहीं होने के कारण सुनवाई बाधित है.
स्थिति यह है कि पटना सेंट्रल मॉल, डाकबंगला स्थित मॉल, पीएनटी कॉलोनी के तिरूपति होम्स की बिल्डिंग आदि में लगभग 100 मामले लंबित हैं. हालांकि, पिछले ढाई वर्षों में ट्रिब्यूनल कोर्ट से 300 से अधिक मामलों का निष्पादन किया गया, जिनमें 90 प्रतिशत केस में नगर आयुक्त के फैसले को बरकरार रखा गया है. ट्रिब्यूनल कोर्ट से फैसला आने के बाद भी निगम प्रशासन कार्रवाई करने में अनदेखा करते है, जिससे बिल्डर हाइकोर्ट में याचिका दर्ज करा देता है और चोरी-छुपे अवैध निर्माण जारी भी रखता है.
स्टे के बाद भी तैयार हो गयी बिल्डिंग : राजधानी में मुख्य सड़क न्यू डाकबंगला रोड स्थित पेट्रोल पंप के सामने का मॉल, फ्रेजर रोड पर पटना सेंट्रल माॅल, किदवइपुरी के होटल नेस इन, खाजपुरा स्थित कर्पूरा कंस्ट्रक्शन की बिल्डिंग, पीएनटी कॉलोनी में तिरूपति होम्स की बिल्डिंग, बुद्ध मार्ग पर डुमरिया इस्टेट की बिल्डिंग पर नगर आयुक्त कोर्ट का अंतिम फैसला सुनाया गया. नगर आयुक्त के फैसले के खिलाफ बिल्डर ट्रिब्यूनल कोर्ट में अपील की.
इनमें से सिर्फ नेस इन में ट्रिब्यूनल कोर्ट से फैसला आया. ट्रिब्यूनल कोर्ट में होटल नेस इन मामले में नगर आयुक्त के फैसले को बरकरार रखा, तो हाइकोर्ट में याचिका दायर की गयी. हाइकोर्ट ने स्टे लगा दिया. इसके बाद भी होटल तैयार होकर संचालित किया जा रहा है. पेट्रोल पंप के सामने स्थित गणपति डेवलपर्स के मॉल का मामला भी ट्रिब्यूनल कोर्ट में लंबित है, सूत्रों की मानें तो इस बिल्डिंग में एक चर्चित राजनेता का भी हिस्सा है. वर्तमान में स्थिति यह है कि एक शो रूम भी संचालित किया जा रहा है.
नेस इन होटल पर नगर आयुक्त का फैसला बरकरार : किदवइपुरी मोड़ पर बिल्डर तिरुपति होम्स ने अवैध नक्शे पर नेस इन-होटल बना लिया. इस पर निगरानीवाद केस दर्ज हुआ और तत्कालीन नगर आयुक्त ने 10 जुलाई, 2014 को ऊपर से दो तल्ला तोड़ने का आदेश दिया.
इसके साथ ही इंटरनल स्ट्रक्चर भी तोड़ने का आदेश दिया. इस आदेश को 30 दिनों में पालन करना था, लेकिन बिल्डर ट्रिब्यूनल कोर्ट से होते हुए हाइकोर्ट तक गया, लेकिन बिल्डर को राहत नहीं मिली. इस दौरान बिल्डर नेनिर्माण जारी रखा और होटल का उद्घाटन भी कर दिया. अब निगम इस होटल के अवैध हिस्से का तोड़ने की तैयार शुरू करेगा.
काफी धीमा है निगरानीवाद केसों का निष्पादन : 2013 से लेकर दिसंबर 2014 तक तत्कालीन नगर आयुक्त ने अवैध निर्माण के खिलाफ सख्त कार्रवाई की. इसके बाद अप्रैल 2015 में नये नगर आयुक्त के रूप में जय सिंह ने पदभार ग्रहण किया, तो अवैध निर्माण के खिलाफ 130 भवनों पर निगरानीवाद केस दर्ज किये गये और एक वर्ष में सिर्फ 25 मामलों पर फैसला सुनाया गया. इसमें एक भी बिल्डिंग के अवैध हिस्सा तोड़ने का आदेश नहीं दिया. सिर्फ जुर्माना लगाया.
राशि जमा करने का आदेश दिया.
पटना : सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बंदर बगीचा स्थित संतोषा कॉम्प्लेक्स के ऊपर से तीन फ्लोरों को तोड़ना है. हालांकि, प्रभावित फ्लैट मालिकों को मुआवजा नहीं मिला, तो सुप्रीम कोर्ट में ‘आइए’ फाइल किया. इसमें भी फ्लैट मालिकों को राहत नहीं मिली और सात दिनों में फ्लैट खाली करने का आदेश दिया गया.
इस आदेश के बाद ऊपर के तीन फ्लोरों पर रहनेवाले लोग घर खाली करना शुरू कर दिया है. अब निगम प्रशासन शुक्रवार को संतोषा कॉम्प्लेक्स का निरीक्षण करेंगे और निरीक्षण के दौरान कौन-कौन फ्लैट खाली हुआ और किस फ्लैट में लोग रह रहे है. इसका जायजा लेंगे. इसके साथ ही टूटने वाले जिन फ्लैटों में लोग रह रहे होंगे, उन्हें शीघ्र खाली करने का निर्देश दिया जायेगा. वहीं, कॉम्प्लेक्स के एक से पांच तल्लाें के फ्लैटों में रहनेवाले लोगों की मुश्किलें बढ़ गयी है.
इसकी वजह यह है कि निगम के पास प्रोफेशनल लोग नहीं है, जो बेहतर तरीके से अवैध हिस्सा को तोड़ सकें.नगर आयुक्त अभिषेक सिंह बताते है कि कोर्ट का ऑर्डर अब तक नहीं पहुंचा है. कोर्ट के ऑर्डर में अवैध हिस्से को तोड़ने के लिए पर्याप्त समय होगा, तो प्रोफेशनल एजेंसी हायर करेंगे. अन्यथा निगम अपने संसाधनों से ही अवैध हिस्साें को तोड़ेगा.
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