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तालाब पाट कर तान दी कॉलोनी
शहर में एक गुणसागर तालाब था, जो गांधी मैदान से भी बड़ा था दिनोंदिन तालाब सिमटते जा रहे हैं. उनकी जगह कॉलोनियां बसती जा रही हैं, जो कि चिंता का विषय है. पुष्यमित्र Pushyamitra@prabhatkhabar.in पटना : सैदपुर नहर के किनारे बनी कच्ची सड़क पर चलते-चलते यह संवाददाता दरगाह तक पहुंच गया था, मगर आसपास का […]
शहर में एक गुणसागर तालाब था, जो गांधी मैदान से भी बड़ा था
दिनोंदिन तालाब सिमटते जा रहे हैं. उनकी जगह कॉलोनियां बसती जा रही हैं, जो कि चिंता का विषय है.
पुष्यमित्र
Pushyamitra@prabhatkhabar.in
पटना : सैदपुर नहर के किनारे बनी कच्ची सड़क पर चलते-चलते यह संवाददाता दरगाह तक पहुंच गया था, मगर आसपास का कोई व्यक्ति यह बताने की स्थिति में नहीं था कि गुणसागर तालाब कहां है.
थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर जहां नहर पर चचरी का पुल बना था, एक व्यक्ति नहर के किनारे कुरसी पर बैठ कर अपने बच्चे के पीठ में पाउडर लगा रहे थे. उन्होंने बताया, आप गुणसागर तालाब के ठीक मुहाने पर खड़े हैं. यहां से दाहिनी तरह आप जितने नये मकान देख पा रहे हैं, सब गुणसागर तालाब ही तो हैं. मगर क्या अब इस तालाब में सिर्फ घर हैं, पानी नहीं है क्या? इस सवाल पर उन्होंने कहा, कुछ प्लॉटों के बीच जरूर आपको पानी मिल जायेंगे, मगर बांकी तो मकान, रास्ते और कॉलोनी है. गुणसागर आज की तारीख में पानी वाला तालाब नहीं कॉलोनी वाला तालाब बन गया है.
उनके बताये रास्ते पर न्यू अजीमाबाद कॉलोनी से होकर गुजरता हुए यह संवाददाता संदलपुर अखाड़ा पहुंचा जहां कुछ मछुआरे बैठे थे. ये वो लोग थे जिनके पास 1996 तक इस गुणसागर तालाब की बंदोबस्ती थी.
कहने लगे, जब तक उनके पास बंदोबस्ती रही, उन्होंने एक इंच जमीन पर कब्जा नहीं होने दिया. जैसे ही बंदोबस्ती छोड़ी, यहां धड़ाधड़ कॉलोनी बस गयी. कभी इस तालाब से पांच-छह सौ परिवारों की रोजी-रोटी चलती थी. अब सब लोगों को अपना रोजगार बदलना पड़ा. एक सज्जन के पास गुणसागर तालाब का पुराना नक्शा पड़ा था, वे उठाकर ले आये. नक्शे पर इस तालाब का रकबा देख कर मन हैरत से भर उठा. बाद में जिला मत्स्य कार्यालय के एक कर्मी ने भी पुष्टि की कि इस तालाब का रकबा 74 हेक्टेयर है.
अतिक्रमण के कारण जलक्षेत्र जरूर घटता रहा, 2011-12 तक तो ऐसी स्थिति आ गयी कि वहां मछली पालन के लिए बिल्कुल पानी नहीं रहा. फिर विभाग ने उस तालाब को राजस्व विभाग को हस्तांतरित कर दिया.
जुड़ी है मान्यता : संदलपुर अखाड़ा पर मौजूद एक पूर्व मछुआरे ने बताया कि कभी वे लोग संदलपुर मौजे में ही 40 तालाबों की बंदोबस्ती लिया करते थे. आज तालाब ढूंढ़ने से भी नहीं मिलते. गुणसागर तालाब की तो कभी इतनी महिमा थी कि निःसंतान महिलाएं यहां स्नान करने आती थी और पानी के अंदर से घोघा या सितुआ निकालती थीं. कहा जाता था कि जो महिला घोघा या सेतुआ निकाल लेतीं उन्हें संतान की प्राप्ति हो जाती थी. मगर अब उस तालाब की जमीन पर हजारों मकान हैं.
गुणसागर तालाब एक अकेली कहानी नहीं है. कुम्हरार स्थित तालाब को भर कर सरकार ही पटना सदर का प्रखंड कार्यालय बनवा रही है. सैदपुर स्थित फिजिकल कॉलेज के परिसर वाले तालाब पर साइंस सिटी बनाने की योजना है.
कुछ ही साल पहले पृथ्वीपुर तालाब को भर कर रेलवे का अस्पताल बना लिया गया. मछुआरे बताते हैं कि आज जहां तारामंडल और नेताजी का स्टैच्यू खड़ा है, वहां भी कभी तालाब ही हुआ करते थे. इस तरह क्या सरकार, क्या जनता हर कोई तालाब को भरने में जुटा है. यह जाने बगैर कि 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वे अपने इलाकों में तालाबों पर से अवैध कब्जा हर हाल में हटाएं और 2013 में केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने निर्देश जारी किया था कि शहरी इलाकों में तालाबों को एसेट माना जाये और उसकी सुरक्षा की जाए.
मगर इसी बीच पटना शहर में तालाबों का रकबा तेजी से घट रहा है. जिला मत्स्य पदाधिकारी से मिले आंकड़ों के मुताबिक वे पटना
सदर प्रखंड के 32 जलकरों की बंदोबस्ती किया करते हैं, जिसका रकबा 70.64 हेक्टेयर है. मगर इनमें से अभी सिर्फ 15 जलकरों की बंदोबस्ती के लिए लोगों ने रुचि दिखायी है और कुल 11.26 हेक्टेयर जलक्षेत्र की ही बंदोबस्ती हो पायी है. वजह है अतिक्रमण. तालाबों को भर दियागया है.
पटना. राज्य के तालाबा, आहर, पइन और दूसरे प्राकृतिक जलस्रेातों का ग्लोबल पोजिसनिंग सिस्टम (जीपीएस) से सर्वेक्षण किया जायेगा. इससे अतिक्रमित जलस्रोतों का भी पता चल जायेगा. आपदा प्रबंधन के लिए लागू होने वाली रोड मैप के लिए राज्य सरकार सभी जलस्रोतों को अतिक्रमण से मुक्त करने के लिए अभियान जल निकाय संरक्षण अभियान शुरू करेगी. आपदा प्रबंधन विभाग ने सभी जिलों को डीएम और प्रमंडलीय आयुक्त को इसके लिए निर्देश जारी किया है.
आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव व्यास जी ने कहा है कि सभी जलस्रोतों की जानकारी वेब साइट पर प्रकाशित किया जायेगा. राज्य सरकार को जानकारी मिली है कि आहर, पइन, पोखर, नदी आदि प्राकृतिक जलस्रोतों पर अवैध कब्जा किया गया है. इसके कारण जल जमाव, बाढ़ और सुखाड़ की समस्या का लोगों को सामना करना पड़ता है.
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