पटना : राज्य सरकार कोशी के इलाके में खेतों में जमा रेत और गाद का व्यावसायिक उपयोग करेगी. कृषि विभाग इसके आर्थिक, औद्योगिक और व्यावसायिक उपयोग की रणनीति तैयार कर रहा है. 2008 में कोसी की बाढ़ से उत्तर बिहार के विभिन्न जिलों में भारी मात्र में रेत और गाद जमा हो गया.
आइसीएआर, पटना, केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान, नयी दिल्ली तथा केंद्रीय ग्लास एवं सेरेमिक अनुसंधान संस्थान, कोलकाता की शोध रिपोर्ट के आधार पर बेकार हो गयी खेती योग्य जमीनों को लाभदायक बनाया जायेगा. कृषि उत्पादन आयुक्त विजय प्रकाश ने कहा कि हिमालय से बिहार में आनेवाली कोसी, कमला, गंडक, बागमती, महानंदा नदियों की रेत से उत्तर बिहार का तराई क्षेत्र पाट जा रहा है. इसके कारण राज्य के बड़े भू-भाग में कृषि की उत्पदकता और मिट्टी की उर्वरता में लगातार कमी आ रही है.
उन्होंने कहा कि इसकी जांच के लिए विभिन्न संस्थानों द्वारा इस संसाधन के आर्थिक और औद्योगिक व्यवहार के लिए परीक्षण किया जा रहा है. कोसी आपदा के दौरान उत्तर बिहार के विभिन्न जिलों में जमा हुई रेत के आर्थिक और औद्योगिक व्यवहार के परीक्षण के लिए प्रथम चरण में सुपौल जिला की सीमा अंतर्गत वीरपुर से जदिया के बीच जमा रेत का भौतिक,
रासायनिक और अन्य परीक्षण भारत सरकार के विभिन्न संस्थानाें द्वारा किया गया.
डॉ टीके मुखोपाध्याय, वरीय वैज्ञानिक केंद्रीय कांच और एवं सेरेमिक शोध संस्थान, कोलकाता ने रेत और गाद भवन निर्माण में ग्लास, बरतन, मूर्ति, टाइल्स, सैनिटरी, मेज पर लगने वाला बरतन आदि के क्षेत्र में इसके उपयोग की संभावना पर प्रतिवेदन दिया. बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के सहायक प्राध्यापक मृदा विभाग डा राज किशोर ने सुपौल जिले में विश्वविद्यालय द्वारा किये गये शोध कार्य को प्रस्तृत किया. उन्होंने कहा कि ओल, लत्तेदार सब्जी, अन्य फसलों तथा कृषि वानिकी की संभावना की जानकारी दी. डॉ अमरनाथ हेगड़े, आईआईटी, पटना के वैज्ञानिक ने कोसी क्षेत्र में जमा रेत का उपयोग सड़क निर्माण में करने के लिए जियो सिन्थेटिक तकनीक की जानकारी दी.
केंद्रीय सड़क शोध संस्थान, नयी दिल्ली ने इससे विभिन्न प्रकार के टाइल्स के निर्माण की जानकारी दी. धन्यवाद ज्ञापन बामेती के निदेशक गणेश राम ने किया. कार्यशाला में जल संसाधन विभाग, बिहार सरकार, ग्रामीण कार्य विभाग, सहकारिता विभाग, उद्योग विभाग, लघु जल संसाधन विभाग, पथ निर्माण विभाग, बिहार राज्य पुल निर्माण निगम, बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, राजेंद्र कृषि विवि, पूसा, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना के पदाधिकारी और कृषि विभाग के वरीय पदाधिकारियों ने भाग लिया.