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कैग रिपोर्ट: दस जिला पर्षदों के तहत पंचायतों का जाना हाल, सोशल ऑडिट कहीं नहीं, पंचायतों के इन गड़बड़झालों पर सोचिए

पटना: पंचायत चुनाव के शोर में इन गड़बड़झालों पर कौन सोचेगा? पंचायतों को सरकार पैसा दे रही है, पर ज्यादातर पंचायतों में या तो पैसे खर्च नहीं हो रहे हैं या पैसे खर्च होने के बावजूद योजनाएं अधूरी रह गयीं. पंचायतों में पैसों का हिसाब-किताब बेहतर नहीं हो पाया है. यह अलग मसला है. कई […]

पटना: पंचायत चुनाव के शोर में इन गड़बड़झालों पर कौन सोचेगा? पंचायतों को सरकार पैसा दे रही है, पर ज्यादातर पंचायतों में या तो पैसे खर्च नहीं हो रहे हैं या पैसे खर्च होने के बावजूद योजनाएं अधूरी रह गयीं. पंचायतों में पैसों का हिसाब-किताब बेहतर नहीं हो पाया है. यह अलग मसला है. कई जगहों पर सूद के पैसे खाते में नहीं गये. ग्रामसभाओं के अनुमोदन के बगैर योजनाओं को मंजूरी दे दी गयी. 2006 के बाद पंचायतों के लिए तीसरे चुनाव की प्रक्रिया चल रही है, पर बड़ा सवाल यह है कि कामकाज के लिहाज से पंचायतें कब बेहतर होंगी? पंचायतों से जुड़े इन तथ्यों को कैग ने अपनी हालिया रिपोर्ट में सामने लाया है. ध्यान रहे ये रिपोर्ट दस जिलों में पंचातयों के नमूना जांच की है.
केवल 14 फीसदी खर्च : राज्य की पंचायती राज संस्थाओं को 2010 से 2015 के बीच 4972.93 करोड़ रुपये दिये, पर इनमें से केवल 4268.88 करोड़ रुपये ही खर्च हो सके. यह कुल पैसे का केवल 14 फीसदी है. राज्य सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं को यह पैसा 13 वें वित्त आयोग की अनुशंसा पर दी थी.
पैसा था, पर दिया नहीं गया : पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि की पांच फीसदी राशि पंचायतों को दी जानी था ताकि पंचायतों में जरूरत के हिसाब से कर्मचारियों का इंतजाम किया जा सके, पर इस काम के लिए 32 करोड़ अलॉट ही नहीं किया. दस जिला पर्षदों, औरंगाबाद, भागलपुर,भोजपुर, कटिहार, लखीसराय, मधेपुरा, पटना, सहरसा, समस्तीपुर और सीतामढ़ी को 648 करोड़ में से उन जिलों की पंचायतों को 32 करोड़ देना था. इससे पंचायत स्तर पर कर्मचारियों की संख्या में इजाफा नहीं हुआ और जो काम होने थे, वे बाधित हुए.
पैसा भेजा , पर खाते में आया ही नहीं : यह हैरान करनेवाली बात है कि पंचायत समिति रफीगंज और भदवा, चेव, छावड़ा, ढोसिला तथा लोहरा ग्राम पंचायतों के लिए अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के विकास अनुदान का 8.74 लाख रुपये जिला पर्षद से भेजा गया, लेकिन एक से तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी वह पैसा पंचायत समिति और ग्राम पंचायतों के खाते में नहीं आया.आखिर वह पैसा गया कहां? यह सवाल जब कार्यपालक पदाधिकारी और संबंधित पंचायत सचिवों से पूछा गया, तो उन्होंने जवाब दिया: बैंक और जिला पर्षद से इसके बारे में सूचना प्राप्त की जायेगी.
58 की जगह 80 ग्राम पंचायतों को चला गया पैसा : 58 ग्राम पंचायतों में अनुसूचित जनजाति की आबादी के मुताबिक अनुदान का पैसा दिया जाना था. इसके बदले 80 ग्राम पंचायतों को पैसा दे दिया गया. जाहिर है कि तीन पंचायत समितियों की 17 पंचायतों को अनियमित तौर पर पैसा चला गया. भागलपुर व लखीसराय जिला पर्षद के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी ने बताया कि पैसों की वापसी के लिए कार्यवाही की जा रही है.
सूद का पैसा खाते में नहीं गया. पंचायत समिति आलमनगर के सहायक अभियंता को 52 कामों के लिए 2011-14 में 71.30 लाख दिये गये. इस पैसे पर 2.17 लाख का सूद मिला, पर यह पैसा पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि के खाते में जमा नहीं हुआ. कार्यपालक पदाधिकारी ने कहा कि सूद का पैसा उसी खाते में अब जमा किया जायेगा.
पांच साल में केवल 17.72 फीसदी पैसा खर्च : पंचायत राज समितियों की ओर से 6.15 करोड़ की लागत पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए केवल 1.09 करोड़ में से 60 काम पूरे हुए, जबकि पूरे पैसे से 268 काम होने थे. इन 60 तरह के काम में से दो ही उस आबादी की प्राथमिकता से जुड़े थे. इस तरह अनुसूचित जाति व अनुसूचित न केवल अपनी आबादी के अनुपात में सुविधाओं से वंचित रही, बल्कि उनकी प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को भी नजरअंदाज किया गया.
बेगूसराय में 47 लाख ज्यादा देकर सोलर लाइट की खरीद : बेगूसराय पंचायत समिति ने राज्य क्रय समिति के दिशा-निर्देशों को किनारे लगाते हुए खुले बाजार से 339 सौर स्ट्रीट लाइट की खरीद कर ली. इससे 47.43 लाख ज्यादा खर्च हो गया.
इन जिलों के नमूना जांच में सामने आये तथ्य : औरंगाबाद, भागलपुर, भोजपुर, कटिहार, लखीसराय, मधेपुरा, पटना, सहरसा, समस्तीपुर और सीतामढ़ी.
ग्रामसभा की मंजूरी के बगैर 1.32 करोड़ की योजना शामिल
एक पंचायत समिति और छह ग्राम पंचायत की 1.32 करोड़ की 91 काम को पंचायत समिति तथा ग्रामसभा की बिना मंजूरी के ही वार्षिक कार्ययोजना में शामिल कर लिया गया. पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव के सामने जब यह मसला उठा, तो उनका कहना था: विकास योजनाओं का चयन वार्ड सभा से कराने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं.
पैसे खर्च, पर योजनाएं अधूरी
दस जिला पर्षदों, तीन पंचायत समितियों और 12 ग्राम पंचायतों में वर्ष 2010-15 के दौरान 1555 काम अप्रुव हुए, जिसमें केवल 401 (26 फीसदी ) ही काम लिये गये. इसमें भी 72 काम (18 फीसदी) काम एक से चार साल से अधूरे पड़े रहे, वह भी 1.16 करोड़ खर्च होने के बावजूद. इसी तरह वर्ष 2012-14 के दौरान एक पंचायत समिति और दो पंचायतों ने 20.90 लाख का अनुदान मिलने के बावजूद सड़क, नाली तथा सामुदायिक भवन वगैरह का काम नहीं किया.
जाली सिग्नेचर से पांच लाख निकाले
सिंघी पंचायत (दुल्हिनबाजार पंचायत समिति) के मुखिया के मुताबिक पूर्व पंचायत समिति ने जून 2015 के पूर्व पंचायत सचिव ने जाली हस्ताक्षर कर केनरा बैंक से अलग-अलग चेक से पांच लाख रुपये निकाल लिये. पूर्व पंचायत सचिव ने इन पैसों का गबन कर लिया. इसके बारे में पंचायती राज विभाग ने सरकार को बताया है कि पंचायत सचिव के खिलाफ साबित हो चुके गबन के मामले में प्राथमिकी दर्ज की गयी है. यह पैसा वर्ष 2012 व 13 में निकाली गयी ,जबकि प्राथमिकी दर्ज हुई अगस्त , 2015 में.

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