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वर्ण व्यवस्था को उजागर करता चंडालिका

वर्ण व्यवस्था को उजागर करता चंडालिकागुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के नाटक का हुआ मंचनकालिदास रंगालय में हुआ नाटकलाइफ रिपोर्टर पटनाहमारे समाज में वर्ण व्यवस्था आदिकाल से चली आ रही है. इस व्यवस्था से किसी को मानसिक और शारीरिक पीड़ा होती है, तो कोई इसी व्यवस्था की आड़ में दूसरों का मजाक भी उड़ाता है. कालिदास रंगालय […]

वर्ण व्यवस्था को उजागर करता चंडालिकागुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के नाटक का हुआ मंचनकालिदास रंगालय में हुआ नाटकलाइफ रिपोर्टर पटनाहमारे समाज में वर्ण व्यवस्था आदिकाल से चली आ रही है. इस व्यवस्था से किसी को मानसिक और शारीरिक पीड़ा होती है, तो कोई इसी व्यवस्था की आड़ में दूसरों का मजाक भी उड़ाता है. कालिदास रंगालय में आयोजित अनिल कुमार मुखर्जी शताब्दी विशेषांक में नाटक चंडालिका में इसी वर्ण व्यवस्था पर सवाल उठाये गये हैं कि आखिर क्यों निम्न वर्ण, उच्च वर्ण के समान समाज में उचित स्थान नहीं ले पाता है?और प्रकृति को मिलता है बुद्ध का संदेशचंडालिका में प्रकृति नाम की ऐसी लड़की की कहानी है, जो अछूत माने जाने वाले चंडाल तबके की कन्या है. वह अपनी मां माया के साथ रहती है. उसका वर्ण जानकर कोई भी उसे सामान नहीं बेचता है दूसरी ओर गांव की उच्च वर्णों की लड़कियां उसका मजाक उड़ाती हैं. इस बात को लेकर वह अपनी मां से लड़ती है. वह चाहती है कि जैसे दूसरे वर्णों की लड़कियाें को कही भी आने जाने के लिए छूट है, वैसी ही छूट उसे भी मिले. वह गांव की दूसरी लड़कियों की तरह कहीं भी कभी भी क्यों नहीं आ-जा सकती है? आखिर उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों होता है? वह जब भी ऐसे सवाल करती है, उसकी मां माया प्रकृति को अपने हद में रहने की बात कहती है और समझाती है कि व्यवस्था ही ऐसी बनायी गयी है और हमें ऐसे ही रहना होगा. इस बात को लेकर प्रकृति हीनता के गर्त में जीवन जीने को अभिशप्त है. एक दिन महात्मा बुद्ध का एक अनुयायी आनंद आता है. वह प्यासा है और प्रकृति को पानी पिलाने का आग्रह करता है. प्रकृति उसे मना कर देती है. आनंद इन सारी बातों को जानता और समझता है और प्रकृति को यह शिक्षा देता है कि हम सब मनुष्य हैं और इसमें कोई अंतर नहीं है. इन सारी बातों को जानकर प्रकृति काफी प्रसन्न होती है और भिक्षुक आनंद को पानी पिलाती है. इन सारी घटनाओं का गहरा सार्थक असर प्रकृति पर होता है और उसके जीवन में आत्मविश्वास का संचार होता है. प्रकृति मन ही मन आनंद को चाहने लगती है और उसकी यादों में खोई रहती है. उसकी मां माया उसे आनंद के बारे में समझाती है कि वह बौद्ध भिक्षु है और सांसरिक जीवन में नहीं आ सकता है लेकिन प्रकृति अपने उल्लास में रहती है और मां की इन बातों पर ध्यान नहीं देती है. बाद में उसे इस बात का अनुभव होता है कि सही में आनंद अब उसके जीवन में नहीं आ सकता है. वह अवसादग्रस्त हो जाती है. वह अपनी मां से अनुरोध करती है कि वह अपने मंत्र शक्ति का प्रयोग करें और आनंद को उसे पास बुला ले अन्यथा वह मर जायेगी. बेटी की बातों को मां मानती है और तंत्र शक्ति का प्रयोग कर के आनंद को सम्मोहित करती है. तंत्र के प्रभाव से एक तरफ माया की तबियत बिगड़ने लगती है तो दूसरी तरफ आनंद भी मानसिक प्रताड़ना को झेलने के लिए विवश हो जाता है. इन सभी घटनाओं को देख कर प्रकृति को बहुत बुरा लगता है, लेकिन अपने प्यार के मोह में बंधी प्रकृति सबकुछ देखती रहती है. एक दिन अचानक उसे यह अहसास होता है कि ऐसे प्यार को पाने का क्या फायदा जो अपनी मां और अपने प्रेमी को इतना कष्ट देने के बाद हासिल हो. वह हवन कुंड में पानी डाल कर उसे बुझा देती है हालांकि आनंद मंत्र के प्रभाव से उसके घर तक चले जाते हैं और अंत में सारी सच्चाई जानकर उन दोनों को बुद्ध का संदेश देकर विदा हो जाते हैं.किया शानदार अभिनय रंग मार्च पटना के द्वारा प्रस्तु किये गये इस नाटक में चंडालिका की भूमिका में नुपूर चक्रवर्ती और माया की भूमिका में सरिता कुमारी ने बेहतर अभिनय किया. वहीं आनंद के रोल में शंभू कुमार ने भी अच्छा अभिनय किया. इस नाटक का नाट्य रूपांतरण व निर्देशन नुपूर चक्रवर्ती ने किया.

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