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क्रांति-धर्मी साहत्यिकार थे कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी

क्रांति-धर्मी साहित्यकार थे कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी- जयंती पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुई कथा-गोष्ठी पटना. कलम के जादूगर थे बेनी पुरी. एक क्रांति-धर्मी साहित्यकार थे. उनके भीतर निरंतर ही परिवर्तन की एक आग जला करती थी. एक ऐसी आग, जो कलम के जरिये साहित्य का मशाल भी बनती है और सामाजिक-राजनैतिक आंदोलनों को […]

क्रांति-धर्मी साहित्यकार थे कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी- जयंती पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुई कथा-गोष्ठी पटना. कलम के जादूगर थे बेनी पुरी. एक क्रांति-धर्मी साहित्यकार थे. उनके भीतर निरंतर ही परिवर्तन की एक आग जला करती थी. एक ऐसी आग, जो कलम के जरिये साहित्य का मशाल भी बनती है और सामाजिक-राजनैतिक आंदोलनों को भी जन्म देती है. उनके भीतर धधकती ज्वाला बदलाव के समक्ष खड़ी होने वाली खल-शक्तियों को भी निगलने के लिये आतुर रहती थी. वे एक राष्ट्रभक्त स्वतंत्रता सेनानी भी थे. आजादी की लड़ाई भी लड़े. जेल की यातनाएं भी भोगी, किंतु प्रत्येक जेल-यात्रा उनके लिए साहित्यिक वरदान ही बनी. जेल से वे जब-जब निकले, साहित्य की मोटी-मोटी पांडुलिपियों के साथ निकले, जो आज हिंदी संसार के अनमोल धरोहर हैं. यह बातें बुधवार को हिंदी के महान साहित्यकार और साहित्य सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष आचार्य रामवृक्ष बेनीपुरी की जयंती पर, साहित्य सम्मेलन द्वारा आयोजित समारोह व लघु-कथा गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डॉ अनिल सुलभ ने कही. डॉ सुलभ ने कहा कि बेनीपुरी जी का साहित्य-कर्म और क्रांति-धर्म एक था. दोनों साथ-साथ चले. छात्र-जीवन से ही असहयोग-आंदोलन में कूद पड़े और जीवन पर्यन्त स्वतंत्रता और समाज के लिये संघर्ष करते रहे. वो कभी ठहरे नहीं. जागरण के गीत गाते हुए निरंतर चलते रहे. लिखते रहे. लड़ते रहे. उन्हें विश्रांति तभी मिली, जब वे मृत्यु की गोद में सदा-सदा के लिए सो गये. आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने बेनीपुरी जी के साहित्यिक अवदानों की विस्तृत चर्चा की तथा कहा कि जिस प्रकार मुंशी प्रेमचंद उपन्यास सम्राट के रूप में साहित्य-संसार में जाने गये, उसी प्रकार बेनीपुरी जी कथा-सम्राट के रूप में प्रतिष्ठित हैं. ‘मांटी की मूरतें’, ‘पतितों के देश में’ ‘अम्बपाली’ आदि ग्रंथ हिंदी के अनमोल-रत्नों में गिने जाते हैं. उन्होंने कथा-साहित्य में ही नहीं, नाट्य-साहित्य में भी बड़ा योगदान दिया. उनके नाटकों की अनेक प्रस्तुतियां हिंदी साहित्य सम्मेलन के मंच से भी हुई. वरिष्ठ लेखक दिनेश कुमार शर्मा, डॉ वासुकीनाथ झा, डॉ उपेन्द्र राय, प्रो सुशील झा, डॉ विजय कुमार सिन्हा तथा नरेन्द्र देव ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किये. इस अवसर पर आयोजित लघु कथा गोष्ठी में मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति मेजर बलबीर सिंह ‘भसीन’ ने ‘प्रेम उपहार’, सुशील जायसवाल ने ‘संवेदन हीनता’ , डॉ मेहता नगेन्द्र सिंह ने ‘वन-महोत्सव’, पं शिवदत्त मिश्र ने ‘बुजुर्गों का दर्द’, डॉ विनय कुमार विष्णुपुरी ने ‘दयालु शीला’, राज कुमार प्रेमी ने ‘मुफ्त का छाता’, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री ने ‘शादी-शादी’, प्रभात कुमार धवन ने ‘नसीहत’, सागरिका राय ने ‘मुस्कान’, नंद कुमार ने ‘फेर नजर का’ तथा कमलेन्द्र झा कमल ने ‘काम का न काज का दुश्मन अनाज का’ शीर्षक कहानी का पाठ किया. मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया.

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