सरकार के राष्ट्रीय अंधापन नियंत्रण कार्यक्रम को ही देखा जाये तो हर साल करीब तीन लाख मरीजों को मोतियाबिंद के आॅपरेशन होते हैं. इसमें निजी क्षेत्र व स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग संपन्न किया जाता है. इसी तरह से स्कूली बच्चों में अंधापन नियंत्रण के लिए नेत्र परीक्षण कार्यक्रम कराये जा रहे हैं. इसमें परेशानी होने पर चिकित्सकों के पास जाना पड़ता है. सरकार के पास इतने चिकित्सक नहीं हैं कि स्कूली बच्चों के इलाज की पूरी व्यवस्था हो सके. जानकारों का मानना है कि राज्य में 36 जिला अस्पताल है. इसमें हर जिला में कम से कम ती न नेत्र रोग विशेषज्ञ की आवश्यकता है.
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राज्य के नौ जिलों में एक भी नेत्र रोग विशेषज्ञ नहीं
पटना: राज्य में अंधापन नियंत्रण कार्यक्रम गति ही नहीं पकड़ रही है. यहां बच्चों से लेकर वरीय नागरिकों को रोशनी देने के लिए नेत्र रोग विशेषज्ञों का घोर अभाव है. निजी क्षेत्र में कुछ चिकित्सक मिल भी जाये तो सरकारी अस्पतालों की स्थिति चिंता जनक बनी हुई है. राज्य के सरकारी अस्पतालों (मेडिकल कॉलेज को […]
पटना: राज्य में अंधापन नियंत्रण कार्यक्रम गति ही नहीं पकड़ रही है. यहां बच्चों से लेकर वरीय नागरिकों को रोशनी देने के लिए नेत्र रोग विशेषज्ञों का घोर अभाव है. निजी क्षेत्र में कुछ चिकित्सक मिल भी जाये तो सरकारी अस्पतालों की स्थिति चिंता जनक बनी हुई है. राज्य के सरकारी अस्पतालों (मेडिकल कॉलेज को छोड़कर) में महज 66 नेत्र रोग विशेषज्ञ काम कर रहे हैं. इसमें भी नौ ऐसे जिले हैं, जहां पर एक भी नेत्र सर्जन नहीं है.
बिहार के सघन आबादी वाले नौ जिलों में एक भी नेत्र रोग विशेषज्ञ नहीं होने से गरीब मरीजों को निजी चिकित्सकों के यहां इलाज कराना पड़ता है. थोड़ी गंभीर समस्या होने के बाद तो यह परेशानी और बढ़ जाती है. .ये नौ जिले हैं सुपौल, मधुबनी, औरंगाबाद, बक्सर, शिवहर, किशनगंज, लखीसराय व मधेपुरा. सहरसा जिला में महज एक नेत्र सर्जन नियुक्त है.
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