सिलेबस तैयार कर पढ़ाया जाये मानवाधिकार : राज्यपालफ्लैग : अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस व बिहार मानवाधिकार आयोग का सात वर्ष हुआ पूरा – पुलिस प्रताड़ना तक ही मानवाधिकार हनन की बात नहीं, जीवन में इसका दायरा है व्यापक- अक्टूबर 2015 तक आयोग में आये 5674 मामले, स्वत: संज्ञान लेकर निष्पादन किये गये 6829 मामलेसंवाददाता, पटनाअंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस और बिहार मानवाधिकार आयोग के सात वर्ष पूरे होने के मौके पर एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया. अधिवेशन भवन में आयोजित इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल रामनाथ कोविन्द ने कहा कि सभी शिक्षण संस्थानों में मानवाधिकार की पढ़ाई होनी चाहिए. इसके लिए मॉडल तैयार करके सिलेबस बनना चाहिए, ताकि अन्य विषयों की तरह ही इसका विधिवत सिलेबस तैयार हो. प्राइमरी से लेकर हायर स्तर तक इसकी पढ़ाई होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि मानवाधिकार का दायरा काफी व्यापक होता है. इसका दायरा सिर्फ पुलिस उत्पीड़न तक ही सीमित नहीं है, बल्कि जेल की अव्यवस्था, हॉस्पिटल की अव्यवस्था, डॉक्टरों द्वारा समुचित इलाज नहीं करना, स्कूल में पढ़ाई या बच्चों का नामांकन नहीं होना, बालश्रम, घरेलू हिंसा, सरकारी योजनाओं की जानकारी होने से लोगों को लाभ नहीं मिलना समेत ऐसे अन्य सभी मामले भी मानवाधिकार के अंतर्गत आते हैं. इन पर कार्रवाई होनी चाहिए.बेहतर कार्य कर रहा राज्य मानवाधिकार आयोग राज्यपाल ने मानवाधिकार आयोग को भी सुझाव दिया कि कई बार सरकारी अधिकारियों या पदाधिकारियों के भी पद के दुरुपयोग के मामले सामने आते हैं. इन पर संज्ञान लेकर कार्रवाई करने के प्रति आयोग को सजग व सतर्क रहना चाहिए. उन्होंने खुशी जतायी राज्य मानवाधिकार आयोग बेहतर कार्य कर रहा है. 2014-15 में अपना पहला प्रतिवेदन भी राज्य सरकार को सौंपा है. आयोग के पास जितने मामले आये हैं, उससे ज्यादा मामलों पर स्वत: संज्ञान लेकर सुलझाया है. अक्टूबर 2015 तक 5674 मामले आये, जबकि 6829 मामलों का निपटारा किया गया. उन्होंने कहा कि सरकार का प्रमुख दायित्व मानवाधिकार को बनाये रखना है. उपेक्षित व कमजोर वर्ग के प्रति खास ध्यान रखने की जरूरत है. आमलोगों से भी यह अपेक्षा होती है कि वे इसका ध्यान रखें कि दूसरे के मानवाधिकार का हनन नहीं हो.सरकार की पहली जिम्मेवारी मानवाधिकार को स्थापित करनाइस मौके पर हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इकबाल अहमद अंसारी ने कहा कि मानवाधिकार पूरी तरह से कानूून पर आधारित है. कानून में मानव व्यवहार को रेखांकित किया गया है. यह किसी मानव को सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार प्रदान करता है. हर कल्याणकारी राज्य को इसे स्थापित करने की जिम्मेवारी होती है. हम जिस किसी सरकार का चुनाव करते हैं, उसकी पहली जिम्मेवारी मानवाधिकार को स्थापित करने की होती है. उन्होंने कहा कि जितने भी तरह के अपराध होते हैं, वे सभी मानवाधिकार हनन की श्रेणी में ही आते हैं. अधिकारों का संरक्षण के लिए कानून की जरूरत पड़ती है. जरूरी है दर्द का एहसास राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष बिलाल नजकी ने कहा कि बिहार में चुनाव लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास का उदाहरण है. यह विश्वास है मानवाधिकार के व्यवस्था को स्थापित करने का. सरकार के तीनों अंग न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका की जिम्मेवारी मानवाधिकार के संरक्षण की होती है. राजधानी पटना से 150 किमी की दूरी पर आज भी बच्चियों को स्कूल जाने के लिए नदी पार करना पड़ता है, यह दुखद है. उन्होंने कहा कि जिस तरह बच्चे को जब तक दर्द नहीं होता, तब तक उसे किसी बीमारी का अहसास ही नहीं होता. इसी तरह जब तक हमें दर्द नहीं होता, तब तक मानवाधिकार की बात नहीं समझ पाते हैं. उन्होंने कहा कि आने वाले दो-तीन साल में राज्य में मानवाधिकार की स्थिति बेहद अच्छी हो जायेगी. चाणक्या विधि विवि के कुलपति प्रो. ए लक्ष्मीनाथ ने भी संबोधित किया. इससे पहले स्वागत संबोधन आयोग के सदस्य नीलमणि ने किया.
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सिलेबस तैयार कर पढ़ाया जाये मानवाधिकार : राज्यपाल
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