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नकली दवाओं से भला कहां से ठीक होगी बीमारी

नकली दवाओं से भला कहां से ठीक होगी बीमारीफ्लैगडॉक्टर व कारोबारी की मिलीभगत से बाजारों में पहुंच रहीं नकली दवाएं – डॉक्टर ऐसी दवाएं लिखते हैं, जो उनके क्लिनिक या किसी खास दुकानों में मिलती हैं – हर स्थिति में मरीजों की ही होती परेशानी, पैसा भी होता खर्च व बीमारी भी घेरे रहती हैदवा […]

नकली दवाओं से भला कहां से ठीक होगी बीमारीफ्लैगडॉक्टर व कारोबारी की मिलीभगत से बाजारों में पहुंच रहीं नकली दवाएं – डॉक्टर ऐसी दवाएं लिखते हैं, जो उनके क्लिनिक या किसी खास दुकानों में मिलती हैं – हर स्थिति में मरीजों की ही होती परेशानी, पैसा भी होता खर्च व बीमारी भी घेरे रहती हैदवा की खबर का फॉलोअप संवाददाता, पटनाऔषधि व वाणिज्यकर विभाग की लापरवाही व कारोबारियों के साथ गंठबंधन का नतीजा है कि आज बिहार की विभिन्न दवा दुकानों से अवैध दवाइयां पकड़ी जा रही हैं. वहीं इन कारोबारियों का सहयोग डॉक्टरों के माध्यम से हो रहा है. इन सबों के कारण लोग नकली दवा खाने को मजबूर हैं. जिस तरह से बाजार में नकली व सब स्टैंडर्ड दवाओं को खुलेआम बेचा जा रहा है. उसे देख यह कहा जा सकता है कि लोगों में होनेवाली बीमारियां मजबूत नहीं हुई है, बल्कि नकली दवाओं के कारण ही बीमारी ठीक नहीं हो पा रही है. डॉक्टर मरीज को निजी नर्सिंग होम में देखें या अपने क्लिनिक में, दवा उनके परिसर या उनके द्वारा बतायी गयी दुकानों पर ही मिलती है. हालांकि अस्पतालों में मरीजों का लोड बढ़ा है और दवा का कारोबार भी, लेकिन इसका नुकसान सिर्फ मरीजों को ही भुगतना पड़ रहा है. एक तो मरीज महंगी दवा खरीद रहे हैं और वह भी उन्हें नकली मिल रही है. ऐसे में कहां से बीमारी ठीक होगी. हर जगह एमआर का दबदबा हर दिन बिहार में एक नयी कंपनी अपनी दवा बेचने पहुंच जाती है. उसका क्वालिटी टेस्ट कहां हुआ है, इसको लेकर कोई बात नहीं करता है. पीएमसीएच की बात करें, तो वहां के डॉक्टर दवा के साथ दुकान का नाम भी लिखते हैं, जिसकी शिकायत कई बार मरीजों ने अधीक्षक से की है. जब इसकी पड़ताल की गयी, तो मालूम चला कि अगर डॉक्टर दवा दुकान के बारे में नहीं बतायेंगे, तो वह दवा मरीज को मिल नहीं पायेगी. वह दवा हर जगह उपलब्ध नहीं है. इन सभी अस्पतालों में एमआर का दबदबा इतना है कि वे जब चाहेंगे, अपनी दवा लिखवा या बदलवा सकते हैं. डॉक्टरों को मिलता है नजरानाजिस दवा कंपनी का नाम सिर्फ डॉक्टर या एमआर जानते हैं, उसे लिखनेवाले डॉक्टरों को कंपनी की तरफ से हर माह मोटा नजराना दिया जाता है. नजराने में टूर पैकेज से लेकर बहुत चीजें शामिल रहती हैं. डॉक्टरों को कांफ्रेंस के नाम पर कंपनी उन्हें विभिन्न राज्यों समेत विदेश भी भेजती है. इसके एवज में कंपनी के अनुसार डॉक्टर दवा लिखते हैं. ऐसे में मरीजों को पैसा खर्च होने के बाद भी लाभ नहीं मिलता है. मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया भी ऐसे डॉक्टरों के खिलाफ समय-समय पर कार्रवाई करती है. हाल के दिनों में बिहार के 19 ऐसे डॉक्टर है, जिनके ऊपर कंपनी के पैसों पर विदेश घूमने का आरोप है.सबकी अपनी-अपनी ‘पीड़ा’मरीज पिछले सोमवार को उनके बच्चे को हल्की खांसी हुई. पिताजी ने उसे पीएमसीएच में ले जाकर दिखाया, लेकिन खांसी ठीक नहीं हुई. और बढ़ ही गयी. जब दोबारा डॉक्टर के पास पहुंचे, तो उन्होंने दवा बदल दी, लेकिन उससे भी ठीक नहीं हुई. इस पर एंटीबायोटिक चलाया, वह भी ब्रांडेड कंपनी का, तब जाकर बच्चा ठीक हुआ. – राकेश कुमार, बाजार समिति एसोसिएशन एक्सपायरी दवाएं जब दुकान से मरीजों को मिल रही है, तो इसमें डॉक्टर की कोई गलती नहीं है. लेकिन, नर्सिंग होम की दुकान में एक्सपायरी दवाओं को मिलना काफी गलत है. जहां तक सब स्टैंडर्ड दवा लिखने की बात है, तो ऐसे डॉक्टरों की संख्या पांच प्रतिशत के आसपास होगी. एसोसिएशन हमेशा इसको लेकर डॉक्टरों से आह्वान करता है कि वह मरीजों को अच्छी कंपनी की दवा लिखे. – डॉ रणजीत कुमार, भासा महासचिव पीएमसीएच अगर कोई मरीज भरती है या किसी डॉक्टर के यहां से इलाज कर कर आया है और उसे सब स्टैंडर्ड दवा दी जा रही है, तो वह ठीक नहीं हो पायेगा. हाल के दिनों में दवा कंपनियां बढ़ी हैं, इसलिए डॉक्टरों को भी दवा लिखते समय कंपनी का ख्याल रखना चाहिए. मरीजों ऐसी दवा मिले, जो उनकी बीमारी को ठीक करे. बढ़ाये नहीं. – डॉ अभिजीत सिंह, इमरजेंसी इंचार्ज, पीएमसीएचड्रग कंट्रोलरऔषधि विभाग छापेमारी कर दवा को पकड़ता है. अगर चिकित्सकों का भी सहयोग मिले, तो ये नकली या फर्जी दवाएं मरीजों तक नहीं पहुंच पायेंगी. हमारे विभाग की भी कमी है कि इतनी मात्रा में शहर में सब स्टैंडर्ड दवाइयां बिक रही हैं. – बिहार स्टेट ड्रग कंट्रोलर, रमेश प्रसाद\\\\B

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