पटना: साल भर बाद भी चीख-पुकार का भयानक मंजर भूल नहीं पाया. छोटे-छोटे बच्चों की रोने की आवाज.परिजनों का विलाप.छठ पूजा पर जब प्रशासन से घाटों की तैयारी की खबर मिली तो अनायास ही पूरा दृश्य एक बार फिर आंखों के सामने आ गया. वह पल जिसने कुछ ही क्षण में दर्जनों से अधिक मासूम की जिंदगी ले ली. कई मां की गोद सूनी कर दी, तो कई बच्चों को अनाथ कर दिया.
पिछले साल छठ के तीन घंटे जीवन को कभी भूला न पाने वाला पल था. वैसे तो हजारीबाग में रहता हूं, लेकिन छठ में अपने बड़े भाई के घर पटना आया था.
डूबते सूर्य को अर्घ देने के बाद शाम 4.30 बजे हमारा परिवार दियारा घाट से वापस लौट रहा था. महेंद्रू घाट के चचरी पुल के पास पहुंचते ही पता चला कि इसका एक हिस्सा धंस गया है. स्वयंसेवकों ने कहा कि पीपा पुल की तरफ से ही जाना होगा. पीपा पुल की तरफ बढ़ते ही ठसमठस भीड़ से सामना हो गया. अदालत घाट की स्थिति से अंजान हम (पत्नी, दो छोटी बच्ची और भतीजा) पीपा पुल की भीड़ में शामिल हो गए. भीड़ का आलम यह था कि लगभग 20 मीटर लंबे इस पुल को पार करने में घंटों लग गये. पुल से उतर कर घाट की खड़ी सीढ़ियां चढ़ना उससे भी विकट था. खबर मिली कि बाहर निकलने का रास्ता काफी संकरा है. दूसरी तरफ से भी लोग लगातार चले आ रहे हैं.
इस कारण रास्ता पूरी तरह जाम है. घंटों तक वजनी दउरा पकड़े और बगल में बच्चे को संभाले चल रहे लोगों का धैर्य जवाब देने लगा. बच्चों के रोने की आवाज गूंजने लगी. महिलाएं छठी माई से बचाव की प्रार्थना करने लगीं. यह माहौल धैर्य रखे लोगों को डराने के लिए काफी था. रास्ता निकालने के प्रयास में रस्समकस्सी होने लगी. इसी दौरान खबर मिली कि आगे बिजली का तार टूट गया है. फिर अचानक बिजली गुल हो गयी. अब तो लोगों का धैर्य पूरी तरह जवाब दे चुका था.
भीड़ में दबी सांस भी फूलने लगी. इसी बीच ऊंचाई पर खड़े दो-तीन युवकों ने मेरे सिर पर रखे दउरा को लेकर मुझे ऊपर खींच लिया. उसके बाद मैंने कुछ बच्चों को भीड़ से बाहर निकाला और उनको एक संकरी गली के रास्ते नदी किनारे बोल्डर तक ले गया. कुछ देर बाद खबर मिली कि घाट के मुहाने पर भगदड़ मच गयी है. इसमें कई लोग मरे गये हैं. यह खबर सुन मेरे बच्चे डर से रोने लगे. उन्हें चुप कराते हुए हम लगभग डेढ़ घंटे तक वहीं बैठे रहे. करीब 7.30 बजे घाट पर पुलिस के जवानों को देख कर हिम्मत बंधी. पता चला कि रास्ता अब क्लियर हो गया है. हालांकि हमारा परिवार और आस-पास बैठे लोग अब भी इस आश्वासन से संतुष्ट नहीं थे. खुद खाली सीढ़ियों को देखा और फिर आश्वस्त होकर मंदिर के रास्ते बाहर निकले. बाहर आने पर पता चला कि घाट पर हुई भगदड़ में 17-18 लोगों की मौत हो चुकी है. इस बार छठ में जब भैया-भाभी ने आने को कहा,तो बच्चियों ने साफ इनकार कर दिया.
( हादसे के समय मौजूद संतोष कुमार से बातचीत पर आधारित खबर )