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45 फीसदी घट गया पटाखों का कारोबार, पर बढ़ गया प्रदूषण

अमिताभ श्रीवास्तव पटना सिटी : बदलते समय के साथ आतिशबाजी का शोर कम होने लगा है. लोग अब उंची आवाज के पटाखों की बजाय फैंसी और परंपरागत पटाखे अधिक पसंद करने लगे हैं. यही नहीं, बीते चार सालों में इसके कारोबार में भी 45 फीसदी से अधिक की कमी आयी है. इसकी पुष्टि पटाखा कारोबारी […]

अमिताभ श्रीवास्तव
पटना सिटी : बदलते समय के साथ आतिशबाजी का शोर कम होने लगा है. लोग अब उंची आवाज के पटाखों की बजाय फैंसी और परंपरागत पटाखे अधिक पसंद करने लगे हैं. यही नहीं, बीते चार सालों में इसके कारोबार में भी 45 फीसदी से अधिक की कमी आयी है.
इसकी पुष्टि पटाखा कारोबारी भी करते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह जागरूकता बतायी जा रही है. पटाखा कारोबारियों के मुताबिक लोग अब पटाखों से होने वाले ध्वनि व वायु प्रदूषण को लेकर जागरूक होने लगे हैं, इसलिए अधिक शोर वाले पटाखों की बजाय परंपरागत पटाखे इस्तेमाल करना अधिक पसंद करते हैं.
थोक मंडी खाजेकलां के व्यापारियों की मानें, तो बीते आधा दशक में कारोबार का आंकड़ा घटा है. दीपावली के आतिशबाजी बाजार में हर वर्ष फैंसी आइटम के आधा दर्जन नये आइटम बाजार में आते हैं. त्योहार के दरम्यान भी लोग परंपरागत पटाखों को ज्यादा तरजीह देते हैं, वह भी रोशनी व आवाज वाले. पटना की मंडियों में तमिलनाडु के उत्तरकाशी जिला से परंपरागत और फैंसी पटाखे बिक्री के लिए आते हैं. यहां पर दुर्गापूजा के समय ही पटाखे थोक दुकानदार मंगा लेते हैं. दुर्गापूजा समाप्त होते ही इसे खुदरा दुकानदारों को बेचने के लिए दिया जाता है़
पटना : पटना में दीवाली की रात हम सबने खूब पटाखे फोड़े, लेकिन क्या कभी हमने सोचा कि इससे कितना प्रदूषण बढ़ा और यह भविष्य में हमारे लिए कितना नुकसानदायक होगा? शायद नहीं, इसी का परिणाम है कि राजधानी में वायु और ध्वनि प्रदूषण चिंताजनक स्तर तक बढ़ गया.
सामान्य दिनों की तुलना में तो प्रदूषण बढ़ा ही, पिछले साल की तुलना में भी हमने काफी प्रदूषण बढ़ाया. इस दीवाली यानी बुधवार को वायु प्रदूषण को मापने वाले सभी स्तरों में भारी बढ़ोतरी हुई है. बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद ने बोरिंग रोड चौराहे पर पांच नवंबर को प्रदूषण के स्तरों को मापा और इसके बाद 11 नवंबर को. दोनों की तुलना पर चौंकाने वाले नतीजे मिले. दिवाली के दिन सांस लेने योग्य धूल कण की मात्रा सामान्य दिनों की जगह 100 माइक्रोन प्रति घन मीटर से भी ज्यादा रही यानी यह इतना बदतर है कि हमारी सांस फूल सकती है और फेफड़े की बीमारी हो सकती है.
साथ ही सल्फर डाइ आॅक्साइड व नाइट्रोजन डाइ आॅक्साइड की की मात्रा में भी बढ़ोतरी हुई. इस बार रात दस बजे से सुबह छह बजे तक श्वसन योग्य धूल कण की मात्रा दीवाली के दिन और अन्य दिनों में भी ज्यादा पायी गयी है. सामान्य दिनों की अपेक्षा ध्वनि स्तर में दिन के समय शाम छह से रात दस बजे तक 79.12 डेसिबल पायी गयी, जबकि दीवाली के दिन यह स्तर 82.15 डेसिबल हो गया.
गैस स्वास्थ्य के लिए घातक
पटाखों से खतरनाक गैसें निकलती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं. पटाखों से होनेवाले शोर का बच्चों, गर्भवती महिलाओं और सांस संबंधी समस्या से पीड़ित लोगों पर सबसे अधिक असर पड़ता है. इससे पशु-पक्षी भी प्रभावित होते हैं. ध्वनि प्रदूषण से सुनने में दिक्कत पैदा हो सकती है.
ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है. दिल का दौरा पड़ सकता है और लोगों को अनिद्रा की शिकायत हो सकती है. मनुष्यों के लिए सामान्य डेसिबल स्तर 60 है, जबकि इसमें 10 प्रतिशत की वृद्धि का मतलब दोगुना ध्वनि प्रदूषण है. जाड़े में प्रदूषित वायु ऊपर नहीं जा पाती. इस कारण यह वायुमंडल में नीचे तैरती रहती है, जिससे कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं.

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