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सीयूएसबी में पुरस्कार वापसी के औचत्यि विषय पर संगोष्ठी का आयोजन

सीयूएसबी में पुरस्कार वापसी के औचित्य विषय पर संगोष्ठी का आयोजनगया कैंपस में हुआ आयोजनशिक्षक, छात्रों ने लिया भागलाइफ रिपोर्टर पटनावीकली एक्टिविटी सीरीज के तहत दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के गया कैंपस में राजनीतिक अध्ययन केंद्र के द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस करने के मुद्दे पर साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस करने का औचित्य विषय पर […]

सीयूएसबी में पुरस्कार वापसी के औचित्य विषय पर संगोष्ठी का आयोजनगया कैंपस में हुआ आयोजनशिक्षक, छात्रों ने लिया भागलाइफ रिपोर्टर पटनावीकली एक्टिविटी सीरीज के तहत दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के गया कैंपस में राजनीतिक अध्ययन केंद्र के द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस करने के मुद्दे पर साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस करने का औचित्य विषय पर एक संगोष्ठी आयोजित की गयी. इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं और शिक्षकों ने भागीदारी की. इस कार्यक्रम में विषय का प्रवर्तन राजनीति विज्ञान की दो छात्राओं ने किया. इसमें एम.ए की छात्रा वंदना मिश्र ने पुरस्कार वापस किये गये मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि इसकी शुरुवात कन्नड़ के लेखक कुलबर्गी की हत्या के विरोध में हुई. वहीं अंजू कुमारी ने साहित्य अकादमी पुरस्कार के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी. पैनल स्पीकर्स ने भी रखे विचारइसके बाद विषय पर मंचासीन पैनल वक्ताओं ने अपने विचार रखे. इसमें सबसे पहले समाजशास्त्र विभाग के प्राध्यापक डॉ. जीतेंद्र राम ने समाज में बढ़ रही असहिष्णुता के बारे में अपनी चिंता जाहिर की और इसे देश व समाज के लिए अहितकारी बताया. राजनीति विज्ञान विभाग के प्राध्यापक डॉक्टर सुमित पाठक ने समाज में बढ़ रही असहिष्णुता को गवर्नेंस की असफलता बताया. उन्होंने दादरी जैसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन की सजगता पर बल दिया. अंग्रेजी विभाग के प्राध्यापक डॉक्टर आशीष पाठक ने आपातकाल की घटनाओं का जिक्र करते हुए पुरस्कार लौटा रहे साहित्यकारों की प्रवृत्ति पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह उनका दोहरा व्यवहार है. उन्होंने अरुंधती राय पर सवाल उठाते हुए कहा कि वह बुकर सम्मान तो स्वीकार करती हैं लेकिन साहित्य अकादमी सम्मान को अस्वीकार करती है. हिंदी विभाग के डॉक्टर अनुज लुगुन ने कहा कि पुरस्कार वापसी साहित्यकारों का सांस्कृतिक प्रतिरोध है और इसे सांस्कृतिक नजरिये से ही समझने का प्रयास किया जाना चाहिए. हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. कमलानंद झा ने कहा कि बीच का रास्ता नहीं होता है. उन्होंने पाश की कविता का हवाला देते हुए कहा कि तय करो तुम किस ओर हो / आदमी के पक्ष में हो या आदमखोर हो. उन्होंने कहा कि समाज में असहिष्णुता बढ़ी है और यह संस्थागत रूप में प्रयोजित की जा रही है. उन्होंने अभिव्यक्ति के ऊपर हो रहे संस्थागत एवं सांगठनिक हमले को आज के समय में सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण कहा. उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि लेखक गोविंद पंसारे, नरेंद्र दाभोलकर और कलबुर्गी की हत्या हो गयी लेकिन सरकार ने उस पर प्रतिक्रिया करना भी उचित नहीं समझा. कार्यक्रम के प्रश्नोत्तर वाले सत्र में छात्र-छत्राओं ने ज्वलंत सवाल पूछे. छात्रों ने साहित्यकारों एवं कलाकरों के जन सरोकारों पर सवाल पूछे. कार्यक्रम में पुरस्कार वापसी के मुद्दे पर पक्ष-विपक्ष दोनों ओर से संवाद हुआ. कार्यक्रम को सफल बनाने में राजनीति विज्ञान विभाग के छात्र कमलाकांत पाठक, राहुल कुमार, शिवानी सिन्हा, सुन्दरलाल शर्मा, सलमा जफर और प्रशांत कुमार की महत्वपूर्ण भागीदारी रही. इस मौके पर विश्वविद्यालय के शिक्षकों की ओर से डॉक्टर आलोक कुमार गुप्ता, डॉक्टर प्रणव कुमार, डॉक्टर अबोध कुमार, डॉक्टर सुरेश कुरपति, डॉक्टर सुधांशु झा, डॉक्टर कर्मानंद आर्य, डॉक्टर ऋचा इत्यादि उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन वीकली एक्टिविटी सीरिज के संयोजक डॉक्टर अभय कुमार ने किया.

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