11.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अपने सिनेमा के पक्ष में

अपने सिनेमा के पक्ष मेंविनोद अनुपमशायद 2012 में बिहार के युवा फिल्मकार नीतिन चंद्रा की भोजपुरी फिल्म बनी थी ‘देसवा’. बिहार की कहानी, बिहार के लोकेशन, बिहार के कलाकार और सबसे बढ़ कर ईमानदार बिहारी सौंदर्यबोध से सजी यह फिल्म भोजपुरी सिनेमा के पसरे कीचड़ में कमल की तरह महसूस हुई. बिहार के तत्कालीन राजनीतिक […]

अपने सिनेमा के पक्ष मेंविनोद अनुपमशायद 2012 में बिहार के युवा फिल्मकार नीतिन चंद्रा की भोजपुरी फिल्म बनी थी ‘देसवा’. बिहार की कहानी, बिहार के लोकेशन, बिहार के कलाकार और सबसे बढ़ कर ईमानदार बिहारी सौंदर्यबोध से सजी यह फिल्म भोजपुरी सिनेमा के पसरे कीचड़ में कमल की तरह महसूस हुई. बिहार के तत्कालीन राजनीतिक हालातों पर टिप्पणी करती यह फिल्म भोजपुरी के धुरंधरों के लिए एक सबक की तरह थी कि देखो, ऐसा भी हो सकता है भोजपुरी सिनेमा. ‘देसवा’ कई राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में प्रदर्शित प्रशंसित हुई और और शायद पहली बार बिहार को उसके यथारुप प्रदर्शित करने में भी सफल हुई, लेकिन भोजपुरी सिनेमा के विशाल दलदल से उबरना इस फिल्म के लिए मुश्किल हो गया, अश्लीलता के जाल में फंसे भोजपुरी दर्शकों को यह अपना सिनेमा ही नहीं लगा और जो भोजपुरी बुद्धिजीवी दर्शक भोजपुरी में बेहतर सिनेमा के लिए स्यापा भर रहे थे, वे इसके समर्थन में अपने खोल से बाहर निकलने को तैयार नहीं हुए. जाहिर है यह फिल्म निजी प्रदर्शनों और समारोहों तक सिमटी रह गयी.अब एक बार फिर नीतिन ने ‘देसवा’ को हिंदी दर्शकों के लिए ‘वंस अपॉन ए टाइम इन बिहार’ के टाइटिल से नेशनल रिलीज करने की कोशिश की है. पहले ही दिन नीतिन ने फेसबुक पर लिखा ‘वंस अपॉन ए टाइम’ इन बिहार को चेन्नई से कम थियेटर पटना में मिले. वास्तव में पटना में दर्शकों के लिए चाहते हुए भी इसे देख पाना आसान नहीं. अपनी फिल्म के प्रति बिहार की यह निरपेक्षता चिंतित करती है. एक ओर सेमिनारों भाषणों वक्तव्यों में हम बिहार में फिल्म स्टूडियो, सरकार की भूमिका वगैरह वगैरह पर बड़ी-बड़ी बाते करते हैं दूसरी ओर बिहार में हो रही सार्थक कोशिशों को स्वीकार करने के लिए भी तैयार नहीं होते. आखिर कैसे बिहार के अपने फिल्म इंडस्ट्री की हम कल्पना कर सकते हैं?वाकई आज तकनीक ने फिल्म निर्माण को आसान और सस्ता भी बना दिया है, अब एक बेहतर स्टील कैमरे से फीचर फिल्म बनायी जा सकती है. बीआइटी पटना के कुछ छात्रों ने अपने संसाधनों से छात्र जीवन पर सवा घंटे लंबी फीचर फिल्म स्माइलिंग टीयर्स बनायी है. फिल्म कैसी बनी, इसके विश्लेषण से महत्वपूर्ण उनकी हौसला आफजाई है ताकि अगली फिल्म के लिए उनका हौसला कायम रह सके. कोई भी क्षेत्रीय सिनेमा क्षेत्र के समर्थन पर ही विकसित हो सकता है. कोशिश करें इस बार नितिन निराश न हों, नितिन की सफलता एक परंपरा की बुनियाद रख सकती है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें