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बिहार चुनाव में आमने-सामने कर्नाटक के दो दिग्गज

मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस और अनंत कुमार भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता हैं. इस अंतर को छोड़ दिया जाये तो दोनों में बहुत समानता है. खड़गे और अनंत कुमार कर्नाटक से आते हैं. दोनों नेताओं की अपनी-अपनी पार्टियों में अच्छी पैठ है. दोनों को समझदार और बुद्धिमान राजनीतिज्ञ समझा जाता है. चुनाव प्रबंधन का दोनों […]

मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस और अनंत कुमार भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता हैं. इस अंतर को छोड़ दिया जाये तो दोनों में बहुत समानता है. खड़गे और अनंत कुमार कर्नाटक से आते हैं. दोनों नेताओं की अपनी-अपनी पार्टियों में अच्छी पैठ है. दोनों को समझदार और बुद्धिमान राजनीतिज्ञ समझा जाता है. चुनाव प्रबंधन का दोनों नेताओं के पास लंबा अनुभव है. कनार्टक में दोनों की छवि साफ-सुथरे नेता की है. अलग-अलग समय में दोनों ने अपने गृह राज्य में अपनी-अपनी पार्टियों का नेतृत्व किया है.
चुनाव के दौरान अब तक इन दोनों नेताओं का सामना अपने गृह राज्य कर्नाटक में नहीं हुआ है. लेकिन, बिहार विधानसभा चुनाव में खड़गे और अनंनत कुमार अपनी-अपनी पार्टयिों की कमान संभालेंगे. अनंत कुमार को भाजपा ने बिहार में चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी सौपी है. वहीं कांग्रेस ने लोकसभा में अपने नेता मल्लिकार्जु न खड़गे को उम्मीदवारों के चयन के लिए बनी कमेटी का प्रमुख बनाया है.
मल्लिकार्जुन खड़गे
कर्नाटक के गुलबर्ग से सांसद हैं. वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ने से पहले वह विधानसभा में विपक्ष के नेता थे. खड़गे ने लगातार दसबार चुनाव जीता है. 1972 से 2009 तक उन्होंने लगातार नौबार विधानसभा चुनाव और 2014 में लोकसभा चुनाव जीता.
अनंत कुमार
कर्नाटक के बेंगलुरु दक्षिण से लोकसभा के सदस्य हैं. उन्होंने लगातार छहबार लोकसभा चुनाव जीता है. वर्तमान में वह केंद्र की एनडीए सरकार में रसायन एवं उर्वरक मंत्री हैं. वर्ष 2003 में अनंत कुमार ने कर्नाटक प्रदेश भाजपा की कमान संभाली थी.
दूसरी बार अनंत कुमार
अनंत कुमार को दूसरी बार बिहार में चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी सौपी गयी है. भाजपा के लोगों का मानना है कि उन्हें बिहार की समझ है और दूसरे राज्यों में भी चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी संभालने का अनुभव है. वही खड़गे ने अपने आप को कर्नाटक तक ही सीमित रखा था. दोनों ने अपने-अपने काम को संभाल लिया है. भाजपा के एक बड़े नेता ने कहा कि कर्नाटक के इन दोनों कद्दावर नेताओं को चुनाव में आमने-सामने होने के लिए बिहार जाना पड़ा है.
बिहार की चुनावी राजनीति पर नजर रखने वालों का मानना है कि भाजपा और कांग्रेस ने चुनाव के दौरान इस तरह का कदम ‘निष्पक्षता’ को ध्यान में रखकर उठाया है. इसके पीछे का तर्क यह है कि कोई भी स्थानीय व्यक्ति या वैसा व्यक्ति जिसका बिहार से पुराना नाता रहा हो के लिए टिकट बंटवारे और चुनाव प्रचार के दौरान स्थानीय दबाव से मुक्त होकर काम करने में दिक्कत होगी.
इस बार का चुनाव मु्द्दों पर नहीं लड़ा जा रहा है. चुनाव में किसी बाहरी को जिम्मेदारी देने का नुकसान निष्पक्षता के ढकोसले से ज्यादा है.
नवल के चौधरी, पूर्व विभागाध्यक्ष पटना विश्वविद्यालय

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