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बहाल किये जायेंगे तीन हजार ‘साइबर दारोगा’
तकनीकी कैडर के गठन की कवायद कौशिक रंजन पटना : मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘नमक के दारोगा’से लेकर अब तक दारोगा की भूमिका क्राइम कंट्रोल करने, विधि-व्यवस्था सुधारने या हनक जमाने के रूप में जानी जाती है. लेकिन, आज के बदलते परिवेश में साइबर क्राइम पुलिस महकमे के सामने एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा […]
तकनीकी कैडर के गठन की कवायद
कौशिक रंजन
पटना : मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘नमक के दारोगा’से लेकर अब तक दारोगा की भूमिका क्राइम कंट्रोल करने, विधि-व्यवस्था सुधारने या हनक जमाने के रूप में जानी जाती है. लेकिन, आज के बदलते परिवेश में साइबर क्राइम पुलिस महकमे के सामने एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है.
इससे निबटने के लिए राज्य में जल्द ही तकनीकी रूप से प्रशिक्षित ‘साइबर दारोगा’ की बहाली होने जा रही है. यह आम दारोगा से बिलकुल अलग बीसीए
एमसीए या कंप्यूटर इंजीनियर के रूप में ‘वेल क्वालिफायड’ होंगे. पुलिस विभाग ने इसके लिए एक अलग से ‘तकनीकी कैडर’ का गठन करने का प्रस्ताव गृह विभाग के पास भेज दिया है.
फिलहाल गृह विभाग इस प्रस्ताव पर मंथन कर इसे अंतिम रूप देने में जुटा हुआ है. हालांकि, विभाग की गति देख कर लग रहा है कि इसे अंतिम रूप विधानसभा चुनाव के बाद ही दिया जा सकेगा और नयी सरकार ही इसे अमलीजामा दे पायेगी.
मुख्य रूप से 3 तरह के मामले आते
राज्य में साइबर अपराध से जुड़े तीन तरह के मामले सामने आते हैं- इ-मेल के जरिये धोखाधड़ी, एटीम या क्रेडिट कार्ड के जरिये फ्रॉर्ड और फेसबुक समेत सोशल साइट्स पर परेशान करना या धोखाधड़ी करना. हाल के कुछ महीनों में पोर्नोग्राफी का प्रचलन बढ़ा है. इसे आधार बना कर ब्लैकमेल या अपराध करने के मामलों में पिछले तीन साल में छह गुना बढ़ोतरी हुई है. इन कारणों से साइबर अपराधियों पर शिकंजा कसने के लिए साइबर एक्सपर्ट की काफी जरूरत महसूस की जा रही है.
रैंक दारोगा, काम साइबर एक्सपर्ट का
इस तकनीकी कैडर के तहत करीब तीन हजार ‘साइबर दारोगा’ की भरती की जायेगी. इसके लिए सामान्य ग्रेजुएट नहीं, बल्कि बीसीए, एमसीए या बीटेक इन कंप्यूटर साइंस या इसके समकक्ष डिग्री की जरूरत होगी. राज्य के सभी 800 थानों में एक खास ‘साइबर सेल’ भी बनाया जायेगा, जिसमें 3-4 साइबर दारोगा की तैनाती की जायेगी. इनका रैंक दारोगा का ही होगा, लेकिन काम सामान्य दारोगा से बिलकुल अलग ‘साइबर एक्सपर्ट’ का होगा.
इन्हें साइबर से जुड़े अपराधों पर अंकुश लगाने और इससे संबंधित वारदातों का परदाफाश करना होगा. साथ ही तमाम सरकारी वेबसाइट में होनेवाली गड़बड़ी, हर तरह की साइबर धोखाधड़ी, ब्लैकमेलिंग, ऑनलाइन पैसे की चोरी जैसे तमाम अपराधों की छानबीन और दोषियों को पकड़ने का काम होगा. अपराधियों का मोबाइल ट्रैक करने से लेकर किसी अपराध में तकनीक का उपयोग कर उसे हल करने से जुड़े तमाम कार्य करने होंगे.
क्राइम के बदले आयाम के लिए यह जरूरी
लोग जैसे-जैसे ‘टेक्नो-सेवी’ होते जा रहे हैं, तकनीक के सहारे अपराध करने की प्रवृत्ति भी तेजी से बढ़ती जा रही है. इसी का नतीजा है कि बिहार में पिछले तीन सालों में साइबर अपराध से जुड़े करीब 450 मामले सामने आये हैं. ये सिर्फ वैसे मामले हैं, जो बड़े और जटिल होने के कारण थाने के स्तर पर हल नहीं हो पाने के कारण आर्थिक अपराध इकाई में ट्रांसफर किये गये हैं. इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि साइबर अपराध का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है.
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