इसमें इस प्रकार की व्यवस्था हो कि प्रत्येक दो वर्ष पर एक तिहाई सदस्य का कार्यकाल खत्म हो सके. इसका मतलब यह हुआ कि कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह तय करने को कहा कि 24 सीटों में यह तय कर ले कि जिन सीटों पर चुनाव कराये जा रहे हैं, उनमें किस सीट का कार्यकाल कितने समय का होगा. इसके लिए कोर्ट ने कहा कि आयोग पर निर्भर है कि वह किस प्रकार सीटों का कार्यकाल तय करे. लॉटरी से भी यह मामला तय किया जा सकता है. कोर्ट के निर्देश पर सात दिनों में आयोग को सभी सीटों के कार्यकाल को नये सिरे से परिभाषित करना होगा. वर्तमान में आयोग ने सभी 24 सीटों के लिए चुनाव कराने का आदेश दिया है. इन सीटों का कार्यकाल अभी छह वर्ष तक के लिए है. विधान पार्षद देवेश चंद्र ठाकुर ने जनहित याचिका दायर कर कोर्ट से कहा था कि गलत तरीके से स्थानीय निकाय कोटे का चुनाव कराया जा रहा है. राज्यसभा के तर्ज पर विधान परिषद की 24 सीटों पर एक तिहाई सदस्यों का मनोनयन किया जाये. कोर्ट ने निर्देश के साथ ही याचिका को निष्पादित कर दिया.
लेकिन, मनोनयन कोटे और स्थानीय निकाय कोटे के चुनाव में यह ब्रेक कर गया. स्थानीय कोटे की सीटों पर 1978 के बाद से चुनाव नहीं हुए. 2003 में तत्कालीन सीएम राबड़ी देवी के आदेश से छह साल के स्थानीय कोटे के चुनाव की अधिसूचना जारी हुई. इसके खिलाफ याचिका दायर की गयी. 2009 में सरकार ने भी याचिका दायर की. सबने माना कि त्रुटि हुई.
लेकिन, सुधार नहीं हुआ. चुनाव आयोग को इस संबंध में पत्र लिखे गये. इसी बीच मौजूदा चुनाव आ गया. देवेशचंद्र ठाकुर और भाजपा के बैजनाथ प्रसाद ने याचिका दायर की. हाइकोर्ट ने 21 मई को चुनाव आयोग से जवाब मांगा कि किस तरीके से चुनाव कराया जायेगा. कोर्ट ने फिर आयोग को 22 जून को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया. चुनाव आयोग ने हलफनामा दायर नहीं किया. मंगलवार को फिर आयोग के निर्देश को चुनौती दी गयी. कोर्ट ने 1952 की चुनाववाली अधिसूचना की मांग की. कोर्ट को याचिकाकर्ता बैजनाथ प्रसाद की ओर से अधिसूचना पत्र दिखाये गये. इस आधार पर कोर्ट ने कहा स्थानीय निकाय कोटे का यह चुनाव सांविधानिक प्रक्रिया के तहत ही कराया जा सकता है. कोर्ट ने आयोग को 30 जून तक इस पर निर्णय लेने को कहा.