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कुछ मौसम की मेहरबानी, कुछ जागरूकता से बीमारी में कमी
जेइ व एइएस से इस साल अब तक महज 17 मौत पिछले साल इस सीजन ने स्वास्थ्य विभाग का उड़ा दिया था होश 2014 में जून तक सूबे में 378 बच्चों की हुई थी मौत पटना : जून का महीना समाप्त होने को है, पर शुक्र है कि जेइ व एइएस ने अब तक कोहराम […]
जेइ व एइएस से इस साल अब तक महज 17 मौत
पिछले साल इस सीजन ने स्वास्थ्य विभाग का उड़ा दिया था होश
2014 में जून तक सूबे में 378 बच्चों की हुई थी मौत
पटना : जून का महीना समाप्त होने को है, पर शुक्र है कि जेइ व एइएस ने अब तक कोहराम नहीं मचाया. इस स्थिति को देख कर विशेषज्ञ भी अचंभित हैं. आखिर इस वर्ष इस बीमारी का प्रकोप कम होने का कारण क्या है?
अब तक 69 बच्चे इस बीमारी से पीड़ित हुए हैं, जबकि 15 बच्चों की की मौत हुई है. ऐसी स्थिति पांच सालों बाद हुई है. वर्ष 2010 में जेइ/एइएस केस में कमी आयी थी. उस वर्ष 97 बच्चे पीड़ित हुए थे, जिसमें 17 की मौत हुई थी.
पिछले साल मुजफ्फरपुर के इलाके में जब मौत की खबरें आने लगीं थी तो स्वास्थ्य विभाग के होश उड़ गये थे. पिछले साल 1341 बच्चे तेज बुखार और बेहोशी की हालत में विभिन्न अस्पतालों में भरती कराये गये थे. इनमें से 378 बच्चों की मौत हो गयी थी.
दस वर्षो में 1635 मौत : स्वास्थ्य विभाग द्वारा तैयार किये गये आंकड़े के अनुसार 2005-15 तक जेइ/एइएस के कारण 5290 बच्चे पीड़ित हुए हैं. इसमें 1635 बच्चों की मौत हुई है. औसत मृत्यु दर 30.9 फीसदी रही है. इस बीमारी का दुष्परिणाम यह है कि जो बच्चे मस्तिष्क ज्वर से पीड़ित होने के बाद इलाज से ठीक होकर घर लौटे हैं, उनमें से 50-60 फीसदी बच्चों में पैरालाइसिस व ब्रेन डैमेज की शिकायत पायी गयी है.हालांकि अब तक इस दिशा में कोई काम नहीं किया जा सका.
किया जायेगा विश्लेषण : डॉ दास
जेइ/एइएस के केस के लंबे इतिहास को देखने के बाद यह पाया जाता है कि पांच साल के बाद बीमारी की गंभीरता व जोखिम में अचानक कमी आ जाती है. वर्ष 2006 में भी महज 21 केस दर्ज हुए थे, जिनमें से महज तीन बच्चों की मौत हुई है. राजेंद्र स्मारक शोध संस्थान, पटना के निदेशक डॉ प्रदीप दास भी इस वर्ष बीमारी की गंभीरता को लेकर अचंभित है कि इस साल इसकी तीव्रता में कमी आयी है. उन्होंने बताया कि यह जांच का विषय है, जिस पर मौसम के बदलने के बाद विश्लेषण किया जा सकता है.
लोगों में बढ़ी है जागरूकता : डॉ सिंह
पटना एम्स के निदेशक डॉ जीके सिंह का मानना है कि पांच साल के चक्र को सही भी माना जा सकता है, नहीं भी माना जा सकता है. पहले दो स्थलों पर इलाज होता था, अब 20 से अधिक जगहों पर इलाज किया जा रहा है. रिपोर्टिग की गुणवत्ता को देखना होगा. अभी बारिश नहीं हुई है. जनता की जागरूकता के स्तर में वृद्धि हुई है.
सुनिश्चित वैज्ञानिक जानकारी नहीं : डॉ ठाकुर
श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल, मुजफ्फरपुर के अधीक्षक डॉ जीके ठाकुर ने बताया कि अब तक इस बीमारी के बारे में कोई सुनिश्चित वैज्ञानिक जानकारी नहीं हो सकी, पर एक बात सत्य है कि यह बीमारी हर साल घटती-बढ़ती रहती है.
सबसे बड़ी बात है कि जेइ व एइएस को लेकर विभागीय स्तर पर स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल तैयार हुआ है, इसका लाभ मिल रहा है. लोगों में जागरूकता बढ़ने से जैसे ही बच्चे पीड़ित होते हैं, अभिभावक उनको लेकर अस्पताल चले आते हैं.
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