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कृषि की बेहतरी के लिए बिहार में लैंड रिफॉर्म जरूरी
स्टेरॉयड पर चल रही है देश की कृषि, अधिक-से-अधिक नकदी लगाने पर जोर : सांइनाथ जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान में आयोजित व्याख्यान के दौरान जाने-माने ग्रामीण पत्रकार पी. सांईंनाथ ने रखे विचार पटना : वर्तमान दौर में देश की कृषि स्टेरॉयड (शारीरिक क्षमता बढ़ाने वाली दवा) पर चल रही है. हरित […]
स्टेरॉयड पर चल रही है देश की कृषि, अधिक-से-अधिक नकदी लगाने पर जोर : सांइनाथ
जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान में आयोजित व्याख्यान के दौरान जाने-माने ग्रामीण पत्रकार पी. सांईंनाथ ने रखे विचार
पटना : वर्तमान दौर में देश की कृषि स्टेरॉयड (शारीरिक क्षमता बढ़ाने वाली दवा) पर चल रही है. हरित क्रांति के दौर में जो उत्पादकता बढ़ाने का दौर शुरू हुआ, उसका असर कुछ सालों तक बना रहा. परंतु अब जिन राज्यों में इसकी स्थिति ज्यादा अच्छी रही थी, वहां हालात खराब होने लगे हैं.
20 साल बाद क्या स्थिति बनेगी, यह सोचने वाली बात है. अगर बिहार ने भी ऐसे कृषि मॉडल को अपनाया, तो इसकी स्थिति भी कुछ सालों बाद खराब हो जायेगी. ये विचार जाने-माने ग्रामीण पत्रकार और कृषि चिंतक पी सांईंनाथ ने रखे. शुक्रवार को वे जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान में आयोजित व्याख्यान में बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि अधिक उत्पादकता पाने के चक्कर में कृषि का बाजारीकरण होता है. अधिक मुनाफा के चक्कर में लोग कैश (नगदी) फसल ज्यादा से ज्यादा लगाने लगते हैं. इनके परिणाम 4-5 सालों तक अच्छे दिखते हैं, लेकिन बाद में कृषि पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है.
सांइनाथ ने कहा कि बिहार को अपनी आबादी को मानव संसाधन के रूप में उपयोग करनी चाहिए. मानव विकास सूचकांक (एचडीआइ) में बेहतर स्थिति हासिल करके सही मायने में कृषि समेत अन्य क्षेत्र में टिकाऊ विकास हासिल किया जा सकता है.
बिहार में कृषि के क्षेत्र में काफी क्षमता है. इसे सही रूप में उपयोग करने के लिए लैंड रिफॉर्म को बड़े स्तर पर करने की जरूरत है. कैश क्रॉप और फूड ग्रेन के उत्पादन में संतुलन बनाये रखने की जरूरत है.
स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की जरूरत : उन्होंने कहा कि बिहार को स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में काफी सुधार करने की आवश्यकता है. राज्य का इतिहास शिक्षा के क्षेत्र में बेहद स्वर्णिम रहा है. इसे फिर से दोहराने की जरूरत है. यहां रोजगार सृजन की स्थिति काफी खराब है. कृषि में सुधार से भी काफी बदलाव आ सकता है. यहां अगर कोई उद्योग आता भी है, तो वह सस्ती मजदूरी का दोहन करने के मकसद से ही आयेगा.
भूमि अधिग्रहण कानून लूट का अड्डा
उन्होंने कहा कि कांग्रेस के कार्यकाल में आया भूमि अधिग्रहण कानून लूट का माध्यम था. वहीं, भाजपा का लाया हुआ भूमि अधिग्रहण कानून जोरदार लूट का माध्यम है. इसमें गरीबों की जमीन सस्ते दर पर लेकर औद्योगिक घरानों को देने का उद्देश्य निहित है.
आज तक उद्योगों के लिए बड़े स्तर पर जितने भी जमीन का अधिग्रहण किया गया है. उनका उपयोग रियल एस्टेट के बिजनेस में होता है. भूमि अधिग्रहण कानून के लागू होने से शहरों में गरीबी बढ़ेगी, ग्रामीण क्षेत्र में नौकरी खत्म होगी, खाद्यान्नों का उत्पाद घटेगा और कॉरपोरेट घरानों के हाथों में ज्यादा से ज्यादा जमीन चली जायेगी. जिन राज्यों में तेजी से शहरीकरण हुआ और कृषि भूमि घटी है, वहां के किसानों में आत्महत्या करने की दर बढ़ी है. कृषि की बदहाली ज्यादा हुई है.
पलायन की समस्या भी काफी बढ़ी है. 2011 के जनगणना के आंकड़ों का उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में आबादी के घटने का संकेत मिलता है. पिछले 10 सालों में 4.6 करोड़ लोग ग्रामीण से शहरी क्षेत्र में जाकर बस गये. यह साउथ अफ्रीका की आबादी के बराबर है. 2001 में 113 मिलियन लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते थे, जो 2011 में घट कर 90 मिलियन हो गयी.
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