अन्य विभागों के मामले को जोड़ दिया जाये तो यह संख्या दो हजार को पार कर जायेगी. यह खुलासा मुख्य सचिव द्वारा बिहार राज्य मुकदमा नीति के तहत विभागों वर लदे मुकदमों की समीक्षा के दौरान हुआ. विभागों के ऐसे मामलों के नजर अंदाज करने के कारण राज्य सरकार की मुकदमा नीति 2011 बेअसर साबित हो रही. इसके कारण विभागों पर अपने ही सेवानिवृत कर्मियों को मुकदमा दर्ज करना पड़ रहा है.
मुख्य सचिव की अध्यक्षता में इम्पावर्ड कमेटी की बैठक में मुख्य सचिव ने विभागीय प्रधान सचिवों और सचिवों से कहा कि सिर्फ संसदीय कार्य विभाग, पिछड़ा एवं अति पिछड़ा कल्याण विभाग और परिवहन विभाग ही ऐसा विभाग है, जहां कर्मियों के किसी प्रकार के सेवांत लाभ का मामला दर्ज नहीं है. मुख्य सचिव ने कुछ चुने हुए विभागों के बारे में बताया कि स्वास्थ्य विभाग पर 698, शिक्षा विभाग पर 203, राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग पर 186, ग्रामीण कार्य विभाग पर 170, लघु जल संसाधन विभाग पर 169, सामान्य प्रशासन विभाग पर 119, भवन निर्माण विभाग पर 107 और निबंधन, उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग पर 107 मुकदमा दर्ज है. इसके अलावा अन्य विभागों पर भी कुछ न कुछ सेवांत लाभ लंबित रहने का मामला दर्ज है. मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह ने कहा कि सेवांत लाभ के लिए विभागों द्वारा नियमित पेंशन अदालत के आयोजन का प्रावधान है. इसके बावजूद कई विभागों से पेंशन अदालत आयोजित करने की सूचना नहीं मिली है.