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बिचौलिये के साये में होती है बालू की ठेकेदारी
कौशिक रंजन पटना : राज्य में बालू घाटों का ठेका लेने के खेल में पूरा बिचौलिया गिरोह सक्रिय रहता है. इसमें राजनीतिक बाहुबलियों का भी हस्तक्षेप होता है, तो स्पॉट पर वांटेडों का खौफ काम करता है. हालांकि ये सब पर्दे के पीछे और इतने सुनियोजित ढंग से होता है कि किसी को पता ही […]
कौशिक रंजन
पटना : राज्य में बालू घाटों का ठेका लेने के खेल में पूरा बिचौलिया गिरोह सक्रिय रहता है. इसमें राजनीतिक बाहुबलियों का भी हस्तक्षेप होता है, तो स्पॉट पर वांटेडों का खौफ काम करता है. हालांकि ये सब पर्दे के पीछे और इतने सुनियोजित ढंग से होता है कि किसी को पता ही नहीं चलता है.
कुछ वर्ष पहले तक बिचौलिया ही इसका ठेका लेते थे और इसमें खूनी रंजिश भी होती थी. परंतु सरकार ने अवैध खनन बिचौलियों पर शिकंजा कसना शुरू किया, तो इन्होंने अपना मोड बदल लिया. इन्होंने 2013 से कंपनी और सिंडिकेट बनाकर ठेका लेना शुरू कर दिया.
इसका परिणाम यह भी हुआ कि एक-एक कंपनी ने एक से ज्यादा जिलों का ठेका ले लिया. कुछ कंपनियों के बारे में यह भी कहा जाता है कि इसमें यूपी के एक बड़े शराब और बालू बिचौलिया का भी पैसा लगा हुआ है. स्थिति यह है कि खनन विभाग को कई कंपनियों के सही मालिकों के बारे में विस्तृत जानकारी तक नहीं होती है. कंपनी के मालिक के रूप में बतौर ऐसे आदमी का नाम रजिस्टर्ड होता है, जिसकी छवि बिलकुल साफ-सुथरी है. किसी तरह का उस पर कोई क्रिमिनल या ब्लैक रिकॉर्ड नहीं होता है. इस ‘व्हाइट फेस’ वाली कंपनी के पीछे सारा ब्लैक गेम चलता है.
सूत्र बताते हैं कि कुछ ऐसे सफेदपोश बाहुबली इस बालू के खेल में संलिप्त हैं, जिनके कई जिलों में ठेके में मोटी हिस्सेदारी है या वे ऐसी कई सफेदपोश कंपनियों के फाइनेंसर होते हैं. कुछ जानकार यह भी कहते हैं कि इसमें बिचौलिया की ब्लैक मनी भी काफी इंवेस्ट होती है. यह भी जानकारी मिली है कि एक ही आदमी अलग-अलग कंपनियों के नाम से हर साल ठेका लेता है. आरा, भोजपुर, सारण इलाके में होने वाले बालू घाट के ठेके में एक सफेदपोश बाहुबली का ही पैसा हर साल लगता है. सिर्फ ठेका लेने वाले लोगों के नाम बदल जाते हैं. अब ऐसे लोग घाटों के ठेके में शामिल हैं, तो अवैध खनन रोकने की बात सोचना ही मुश्किल है. बालू का रेट भी इसी वजह से नियंत्रित नहीं हो पाता है.
ठेका प्रक्रिया में उठते सवाल
– ठेका की बोली के दिन कई दबंग जुटते हैं, जबकि ये ऑन-पेपर प्रक्रिया में शामिल नहीं होते
– नीलामी प्रक्रिया में शामिल लोगों की विधिवत चेकिंग होनी चाहिए
– नियमानुसार, सबसे अधिक डाक बोल कर ठेका लेने वाले को 25 फीसदी रुपये बैंक ड्राफ्ट से कुछ ही दिनों में देना पड़ता है
– ऐसे में यह जांच करना आवश्यक है कि इतने रुपये उनके पास आये कहां से
– इनके आय का सही स्नेत क्या है, इनकी कंपनी क्या काम करती है, टर्न ओवर इतना ज्यादा कैसे है?
– इसके लिए खनन एवं भूतत्व के अलावा अन्य विभागों को भी शामिल करना चाहिए
– अक्सर यह देखा जाता है कि डाक लेने वाले के खाते में नीलामी शुरू करने के पहले लाखों का ही बैलेंस होता है, लेकिन बोली खत्म होते ही करोड़ों रुपये खाते में कहां से आ जाते हैं. यह कैसे होता है, इसकी जांच करनी चाहिए.
– किससे पैसे लिये गये या किसने इसमें मदद की, इसकी समुचित जानकारी प्राप्त की जाये
– जो व्यक्ति या कंपनी नीलामी में शामिल होती है, उनका इनकम डिटेल पता करना चाहिए.
– जितने का जो ठेका ले रहा है, उतने का वह इनकॉम टैक्स दे रहा है या नहीं, इसकी जांच नहीं होती.
– एक साल में किसी-किसी घाट की बोली में 100 करोड़ तक का इजाफा हो जाता है, इसकी जांच होनी चाहिए.
– जरूरत से ज्यादा या अनहेल्दी बिडिंग पर रोक लगनी चाहिए.
– ऐसे घाटों की दूसरे साल बिडिंग होने में काफी परेशानी होती है, कई घाट इस वजह से 2015 में बंदोबस्त नहीं हुए.
– औरंगाबाद, कैमूर, गया समेत अन्य जिलों के घाटों की इस वर्ष बंदोबस्ती करने में रेट रिवाइज करना पड़ा
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