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सही को सर्टिफिकेट की नहीं है जरूरत
भागवत कथा के तीसरे दिन बोले रमेश ओझा पटना : आपको अपने मन से ही सावधान होना होगा. यह किधर जायेगा कुछ पता नहीं. जो हमारे कर्तव्य हैं उन्हें करते रहें और अंत:करण से प्रभु का चिंतन करते रहे. मन पूरी तरह से भगवान को अर्पित कर दें. शरीर किसी भी अवस्था में रहे. अंत: […]
भागवत कथा के तीसरे दिन बोले रमेश ओझा
पटना : आपको अपने मन से ही सावधान होना होगा. यह किधर जायेगा कुछ पता नहीं. जो हमारे कर्तव्य हैं उन्हें करते रहें और अंत:करण से प्रभु का चिंतन करते रहे. मन पूरी तरह से भगवान को अर्पित कर दें. शरीर किसी भी अवस्था में रहे. अंत: करण में ईश्वर का चिंतन करें. दया धर्म का मूल है और मोह पतन का कारण.
ये बातें गांधी मैदान में चल रहे भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन प्रख्यात कथा वाचक रमेश भाई ओझा ने कहीं. श्रद्धालुओं को कथा का अमृत पान कराते हुए रमेश भाई ने कहा कि अपने को समझने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है. आप अच्छे हैं या बुरे. खुद को दर्पण के सामने देखें. सच्चई अपने आप पता चल जायेगी, क्योंकि दर्पण कभी छूट नहीं बोलता.
आखिर मैच का क्या मतलब?
वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल मैच पर उन्होंने कहा कि अगर इंडिया मैच हार जाती है, तो लोग क्रोध में आ टीवी फोड़ देते हैं या फिर खिलाड़ियों पर गुस्सा निकालते हैं. लेकिन यह क्रोध उनके शरीर को नाश करता है. जीवन में हार और जीत लगी रहती है. अगर सब जीतने लगे,तो मैच का मतलब ही नहीं रहेगा. जीवन सही से चले और लक्ष्य की प्राप्ति हो. इसके लिए रमेश भाई ने कहा कि मनुष्य को किसी महापुरुष के संसर्ग में रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण व राम समेत सभी ने देववर्षियों के सान्निध्य में रह कर लक्ष्य को पूरा किया है.
रुचि के अनुरूप करो काम, तो मिलेगा लाभ
आलस्य मनुष्य को कमजोर बनाता है, तो प्रमाद लक्ष्य से दूर भगाता है. श्रद्धालुओं को आलस्य त्याग कर तुरंत काम करने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि जिस काम में रुचि हो उसे तुरंत कर देना चाहिए. आज का काम कल पर छोड़ने से खुद का नुकसान होता है. उन्होंने कहा कि वही मनुष्य महान है, जो आलस्य को त्याग अपने काम को समय पर पूरा करे. साथ ही क्रोध,लोभ एवं मोह से ऊपर उठ कर ईश्वर की पूजा करता है. भगवान तो मनुष्य के हृदय में वास करते हैं. मानव की सेवा भी एक धर्म ही है. रमेश भाई ने कहा कि मनुष्य के चार कर्म हैं. इनमें व्यर्थ,अनर्थ, स्वार्थ एवं परमार्थ है. लोभ और मोह का त्याग करने से विवेक जागृत होता है. उन्होंने मोह को अंधा बताया और राजा धृतराष्ट्र का उदाहरण दिया.
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