पटना: प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत केंद्र के पैसों से बिहार में बन रही गांव की सड़कों की गुणवत्ता असंतोषजनक है. केंद्र सरकार ने बिहार में बन रही ग्रामीण सड़कों की गुणवत्ता पर सख्त टिप्पणी की है. केंद्र के अनुसार पीएमजीएसवाइ में बन चुकी सड़कों में 20 प्रतिशत और बन रही में 23 प्रतिशत की गुणवत्ता कसौटी पर खरे नहीं उतरी है. राज्य को इस गुणवत्ता के आधार पर सड़क निर्माण नहीं करने की चेतावनी दी गयी है. अगर सुधार नहीं हुआ तो अगली सहायता राशि पर भी ग्रहण लग सकता है.
टूटने पर राज्य को करानी होगी मरम्मत
इसी महीने के प्रथम सप्ताह में नयी दिल्ली में हुई ग्रामीण विकास मंत्रलय की इम्पावर्ड कमेटी की बैठक में ग्रामीण कार्य विभाग के आलाधिकारी शामिल हुए थे. बैठक में विभाग के अधिकारियों ने बताया कि 51 राज्य गुणवत्ता अनुश्रवक (एसक्यूएम) कार्यरत हैं. 29 और एसक्यूएम बनाये जा रहे हैं. इस पर मंत्रलय के सचिव ने कहा कि राज्य सरकार इस टीम का सही उपयोग नहीं कर रही है. इस टीम को और सशक्त बनायी जाये. टीम की ओर से तीन निरीक्षण हर हाल में हो. अगर कार्यपालक अभियंता के स्तर पर निगरानी में लापरवाही बरती जा रही है, तो अधीक्षण अभियंता या मुख्य अभियंता के स्तर पर औचक निरीक्षण हो. निरीक्षण करनेवाली टीम को संस्थागत तरीके से काम करने का प्रशिक्षण दिया जाये. उसकी रिपोर्ट केंद्र को भेजी जाये. केंद्र ने यह भी कहा है कि अगर निर्माण के दौरान गुणवत्ता का सही ख्याल नहीं रखा गया है, तो उससे सड़क की सुरक्षा भी खतरे में रहती है. ऐसी सड़कों के टूटने पर उसका पूरा खर्च राज्य सरकार को वहन करना होगा. राज्य सरकार ने इस पर अपनी हामी भरी है.
नये सिरे से किया जायेगा निरीक्षण
केंद्र की आपत्ति के बाद राज्य सरकार सड़कों का नये सिरे से निरीक्षण करेगी. सड़क की गुणवत्ता ठीक है, तो वह उसकी जिम्मेवारी ले लेगी. अगर खराब हो तो नये सिरे से ठेका जारी किया जायेगा और दोषी अभियंताओं व ठेकेदारों पर विभागीय कार्रवाई की जायेगी.
क्या है निगरानी का सिस्टम
कनीय अभियंता व सहायक अभियंताओं को नियमित निरीक्षण करना होता है. निगरानी की पूरी जिम्मेवारी कार्यपालक अभियंताओं की होती है. गुणवत्ता जांच के लिए राज्य के 10 स्थान पर केंद्रीय लैब तो शेष 28 जिले में चलंत गुणवत्ता जांच प्रबंधन इकाई गठित है. कार्यपालक अभियंताओं को इन गुणवत्ता प्रबंधन इकाई की जिम्मेवारी दी जाती है. अभियंताओं की सहायता से ही ठेकेदार जैसे–तैसे सड़क का काम पूरा कर लेते हैं.