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वाणिज्यकर चोरी का बड़ा माध्यम रेलवे
परमिट में हेरफेर कर व्यापारी कर रहे टैक्स की चोरी,150 मामले सामने आये कौशिक रंजन पटना : राज्य में इस वर्ष अब तक वाणिज्यकर चोरी के करीब 150 मामले सामने आये हैं. इन सभी मामलों में परमिट में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी या हेराफेरी करने की बात सामने आयी है. रेलवे के जरिये भी बड़े […]
परमिट में हेरफेर कर व्यापारी कर रहे टैक्स की चोरी,150 मामले सामने आये
कौशिक रंजन
पटना : राज्य में इस वर्ष अब तक वाणिज्यकर चोरी के करीब 150 मामले सामने आये हैं. इन सभी मामलों में परमिट में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी या हेराफेरी करने की बात सामने आयी है. रेलवे के जरिये भी बड़े पैमाने पर बिना वाणिज्यकर दिये सामान की ढुलाई होती है. व्यापारी रेलवे पार्सल से बड़ी मात्र में ऐसे सामान मंगवा लेते हैं, जिसके टैक्स पेमेंट में बड़े स्तर पर हेरफेर रहता है, लेकिन इसकी चेकिंग का कोई ठोस बंदोबस्त नहीं होने से ये माल आसानी से व्यापारियों तक पहुंच जाते हैं. रेलवे को सिर्फ अपने भाड़े से मतलब होता है. व्यापारी भले ही सरकार को वाणिज्यकर नहीं दें, लेकिन इनकी वसूली वे ग्राहकों से कर लेते हैं.
ऐसे होती है रेलवे में गड़बड़ी
रेलवे में छह टन से अधिक के माल की ढुलाई के लिए ‘लीज्ड बोगी’ लेने का प्रावधान है. यह बोगी किसी भी ट्रेन में जुट जाती है और गंतव्य स्थान पर इसे काट कर अलग कर दिया जाता है. इसके अलावा कुछ बड़े व्यापारी ‘वीपी ऑन डिमांड पार्सल सिस्टम’ के माध्यम से भी पूरी लगेज बोगी बुक कर माल की ढुलाई करते हैं. वीपी ऑन डिमांड के तहत व्यापारी पूरी बोगी बुक करते हैं. एक बोगी में करीब 23 टन माल आता है. रेलवे में माल ढोने के इन दोनों तरीकों में रेलवे की जवाबदेही सिर्फ किराया लेने की होती है. कौन-कौन माल ढोये जा रहे हैं और किसका वाणिज्यकर पेमेंट हुआ है, किसका नहीं, इसकी कहीं कोई जांच नहीं होती. रेलवे के माल गोदामों से इन सामान को आसानी से बाहर निकाल लिया जाता है. माल ढोने के इस लीज प्रोसेस पर रेलवे का कोई नियंत्रण नहीं है.
सुविधा के नाम पर गड़बड़झाला
वाणिज्यकर विभाग ने व्यापारियों को ऑनलाइन टैक्स जमा करने के लिए ‘सुविधा’ नामक एक व्यवस्था कर रखी है. इसके तहत हर व्यापारी अपना लॉग इन और पॉसवर्ड डाल कर जरूरी सुविधा जमा कर सकते हैं. यह सामान का परमिट होता है, लेकिन इसमें कई तरह की हेराफेरी करने के मामले सामने आये हैं. जितने का माल होता है, उसके हिसाब से कम मूल्यांकन की सुविधा जेनेरेट की जाती है. राज्य के बाहर से माल मंगानेवालों को डी-9 परमिट की जरूरत पड़ती है. इसमें सबसे ज्यादा गड़बड़ी होती है. इसके अलावा बिहार होकर दूसरे राज्यों में जानेवाले सामान के लिए डी-7 परमिट (या ऑउट टू ऑउट परमिट) लेना होता है.
इसमें किसी तरह का टैक्स नहीं देना होता है. यह पाया गया कि डी-7 परमिट लेकर माल को अवैध तरीके से दूसरे राज्य से लाकर बिहार में उतार दिया जाता है. इससे कर में बड़ी चोरी होती है. इसी तरह बिहार से दूसरे राज्य ले जाने के लिए डी-10 और बिहार के अंदर एक जिले से दूसरे जिले में माल ले जाने के लिए डी-8 परमिट की जरूरत पड़ती है. परंतु, इसमें भी व्यापारी गड़बड़ी करते हैं. कुछ मामलों में यह भी देखा गया है कि किसी दूसरे व्यापारी के लॉग इन से दूसरे का परमिट बना दिया गया है. इस तरह से कर चोरी के कई तरीके अपनाये जाते हैं.
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