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गरीबों के पैसे से खोल लिया डेंटल कॉलेज

पटना: नॉन बैंकिंग, चिट फंड व अन्य कंपनियों के तर्ज पर बनी स्वावलंबी को-ऑपरेटिव सोसाइटी ने गरीबों के पैसे से हजारीबाग में डेंटल कॉलेज खोल लिया. इसके लिए हजारीबाग शहर में 27 एकड़ जमीन खरीदी गयी. बिहार सरकार की आर्थिक अपराध इकाई के मुताबिक, सेंट्रल बैंक कर्मचारियों द्वारा यह सोसाइटी संचालित हो रही थी. यदि […]

पटना: नॉन बैंकिंग, चिट फंड व अन्य कंपनियों के तर्ज पर बनी स्वावलंबी को-ऑपरेटिव सोसाइटी ने गरीबों के पैसे से हजारीबाग में डेंटल कॉलेज खोल लिया. इसके लिए हजारीबाग शहर में 27 एकड़ जमीन खरीदी गयी. बिहार सरकार की आर्थिक अपराध इकाई के मुताबिक, सेंट्रल बैंक कर्मचारियों द्वारा यह सोसाइटी संचालित हो रही थी. यदि सरकार की नजर इस पर नहीं पड़ती, तो आम लोगों के पैसे से संचालकों ने एजुकेशनल हब बनाने की योजना तैयार कर ली थी. सोसाइटी ने स्वावलंबी एजुकेशनल चैरिटेबल ट्रस्ट बनाया.

इसके तहत डेंटल कॉलेज के अतिरिक्त स्वावलंबी मेडिकल कॉलेज, स्वावलंबी पारा मेडिकल, स्वावलंबी नर्सिग स्कूल व स्वावलंबी बीएड कॉलेज खोलने की योजना थी. ये सारे पैसे निवेशकों के थे. स्वावलंबी सोसाइटी ने अधिक ब्याज का लोभ देकर आम लोगों से उगाही की थी. सरकारी दस्तावेज के मुताबिक, 1997 में निबंधक, स्वावलंबी सहकारी समितियों के दफ्तर से ‘सेंट्रल बैंक कर्मचारी स्वावलंबी सहकारी समिति लिमिटेड’ नाम से रजिस्ट्रेशन हासिल किया गया. राज्य सरकार के दस्तावेज में इसका कार्यालय सकरी गली, गुलजारबाग दरसाया गया है. संचालकों का मेन खाता सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की मुरादपुर शाखा में है. फिलहाल आर्थिक अपराध इकाई सोसाइटी के कारनामों का अनुसंधान कर रही है. सोसाइटी के खिलाफ नालंदा जिले के लहेडी थाने में केस संख्या155/2012, सुपौल जिले के सदर थाने केस नंबर 05/2007, कटिहार जिले के नगर थाने में केस नंबर 564/2012 व 16/2008 और मुंगेर जिले के कोतवाली थाने में 185/2012 समेत पांच केस दर्ज है.

सूत्र बताते हैं सेंट्रल बैंक के कुछ कामगारों ने 1990 के दशक में ही को-ऑपरेटिव कानूनों का लाभ उठा कर सेंट्रल बैंक को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी का गठन किया था. पूरे राज्य में इसके डेढ़ करोड़ से अधिक सदस्य बनाये गये हैं. सरकारी बैंक से मिलते-जुलते नाम और बैंकक र्मियों की पैरवी से सोसाइटी क ा धंधा चल निकला. सोसाइटी ने पैसा दोगुना करने का लोभ देकर आम लोगों से करोड़ों की रकम वसूल ली थी. बैंक के अधिकारी बताते हैं कि जब प्रबंधन को अपने क र्मियों के बारे में इस तरह की जानकारी मिली, तो तत्काल उन्हें बैंक का नाम इस्तेमाल नहीं करने की चेतावनी दी गयी. साथ ही पब्लिक नोटिस जारी कर यह कहा गया कि सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया इस सोसाइटी में कहीं से भी नहीं है. इसके बाद भी सोसाइटी के संचालक चुप नहीं रहे. यह घटना 1996 की थी. इसके बाद 1997 एक दूसरी सोसाइटी बनायी गयी, जिसे बैंक कर्मचारी स्वावलंबी समिति लिमिटेड क ा नाम दिया गया.

सोसाइटी ने हाल के दिनों तक कम-से-कम 40 करोड़ से अधिक की रकम जमा कर ली है. जांच के बाद यह रकम कई गुनी अधिक हो सकती है. शुरू में सोसाइटी में आधा दर्जन लोग ही सदस्य थे. बाद में इसकी संख्या बढ़ने लगी. सोसाइटी क ानून के तहत इसे सेंट्रल बैंक कर्मचारियों को सदस्य बनाने और सदस्यता राशि जमा लेने का अधिकार था. पर, किसी भी स्थिति में आम लोगों को सदस्य बनाने और पैसे जमा लेने की अनुमति नहीं थी. को-ऑपरेटिव कानूनों के तहत राज्य में 400 सोसाइटी रजिस्टर्ड हैं. अब तक करीब 166 की पहचान हुई है. इनके खिलाफ गलत तरीके से पैसा दोगुना करने के नाम पर उगाही करने क ा आरोप है.

कैसे फंसाया जाता था
सांस्थिक वित्त विभाग के अधिकारी बताते हैं कि क ोसी प्रमंडल में त्रिवेणीगंज, क टिहार, सहरसा और सुपौल और अन्य जगहों पर सोसाइटी का कार्यालय उसी भवन में ऊपर या नीचे खोले जाते थे, जिनमें सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की शाखा होती थी. बैंक में पैसे जमा कराने गये लोगों से बैंक से बेहतर सोसाइटी में धन जमा कराने की सलाह दी जाती थी. सोसाइटी के क ामकाज और नियम-कानूनों की जानकारी के अभाव में भोले-भाले लोग राष्ट्रीयकृत बैंक से मिलता-जुलता नाम और उन्हीं कर्मचारियों क ो इसमें भी कार्य करता देख भ्रमित हो जाते थे.

हाल के दिनों में उपमुख्यमंत्री के जनता दरबार में भी इस तरह की शिकायतें मिली थीं. जब उन्होंने शिकायतकताओं के कागजात देखे, तो तत्काल आर्थिक अपराध इकाई के आइजी को इसकी जांच करने का निर्देश दिया. फिलहाल पूरे मामले की जांच आर्थिक अपराध इकाई कर रही है.

आधा दर्जन निलंबित
सेंट्रल बैंक प्रबंधन ने अपने आधा दर्जन कर्मचारियों को सोसाइटी के नाम पर गलत तरीके से पैसा वसूलने के आरोप में निलंबित किया है. कई मामलों में विभागीय कार्रवाई भी की जा रही है. बैंक के जोनल मैनेजर एससी सिंह ने स्वीकार किया है कि स्वावलंबी को-ऑपरेटिव सोसाइटी को उनके ही कुछ कर्मचारी संचालित कर रहे थे. बैंक ने बिहार सरकार से भी अनुरोध किया है कि वह इस सोसाइटी का निबंधन रद्द कर दे. श्री सिंह के मुताबिक, प्रबंधन को इस बात की जानकारी मिली थी कि कुछ कर्मचारी सेंट्रल बैंक के नाम पर सोसाइटी का गठन कर बिहार सरकार के क ो-ऑपरेटिव एक्ट के तहत निबंधन कराया है. जब यह पता चला कि यह सोसाइटी बिना किसी अनुमति के आम लोगों से भी पैसा वसूल रही है, तो खलबली मच गयी.

बैंक ने तत्काल ऐसे कर्मचारियों को चेतावनी दी और सरकार और आम लोगों को सूचित किया कि सेंट्रल बैंक का इस सोसाइटी से कुछ भी लेना-देना नहीं है. इसके बाद शातिर कर्मचारियों ने पूर्व की सोसाइटी का नाम बदल कर स्वावलंबी को-ऑपरेटिव सोसाइटी का गठन कर सहकारिता विभाग से निबंधन करवा लिया. उन्होंने कहा कि अब तक आधा दर्जन कर्मचारियों की पहचान की गयी है.

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