पटना सिटी: बीमारी से कराहते मरीज हाथ में दवा का पुरजा लिए कतार में खड़े हैं, ताकि अपना नंबर आने पर दवा ले सकें. बीच में अगर किसी मरीज ने कर्मचारियों से कुछ पूछा, तो कर्मचारियों की तेज आवाज में मरीज की आवाज दब जाती है. यह स्थिति है नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के दवा काउंटरों की.
महिला काउंटरों पर होती है भीड़
महज चार काउंटरों से ही हर दिन 1500 से 1600 मरीजों को दवा दी जाती है. हद तो यह है कि अक्सर मरीजों के सब्र का बांध दवा काउंटरों पर टूटता है. वह हंगामा मचाते हैं, फिर भी व्यवस्था में सुधार नहीं होता. नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के ओपीडी में आनेवाले मरीजों के लिए अस्पताल से 21 तरह की दवाएं दी जाती हैं. दवाओं के वितरण के लिए महज चार काउंटर हैं. इनमें दो काउंटर महिलाओं व दो पुरुषों के लिए हैं. इन काउंटरों पर सुबह आठ बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक दवाओं का वितरण किया जाता है. दवा लेने के लिए महिलाओं की भीड़ अधिक होती है. पुरुष काउंटरों पर मरीज नहीं होने के कारण कर्मचारी समय से पहले ही काउंटर बंद देते हैं.
जानकारी देने में आनाकानी
डॉक्टर ने जो दवा लिखी है वह अस्पताल मिलेगी या बाजार में, इस बात की जानकारी भी मरीज को नहीं मिल पाती है. हाथ में पुरजा लिये मरीज जब दवा काउंटर के पास आता है, तो कोई भी कर्मचारी यह बताने को तैयार नहीं होता है कि दवा अस्पताल से मिलेगी या उसे बाजार से खरीदना होगा. किसी से पूछने पर जवाब मिलता कि डॉक्टर से पूछें. इस कारण मरीजों को परेशानी होती है.