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झरनी की परंपरा रही है पुरानी

पुस्तक मेले में आयोजित देशज कार्यक्रम में रविवार को भिखारी ठाकुर द्वारा लिखित लोकनाट्य गबरघिचोर का मंचन किया गया. भोजपुरी क्षेत्रों में यह मंचित होता है. इस नाटक को प्रभुनाथ ठाकुर एवं साथी कुतुबपुर सारण द्वारा प्रस्तुत किया गया. इस नाटक में शिवलाल, लखीचन्द्र, रामचन्द्र, रघु, रमानंद, भरत ठाकुर, कृष्ण देव शर्मा, जलेशर भगत, लक्ष्मी, […]

पुस्तक मेले में आयोजित देशज कार्यक्रम में रविवार को भिखारी ठाकुर द्वारा लिखित लोकनाट्य गबरघिचोर का मंचन किया गया. भोजपुरी क्षेत्रों में यह मंचित होता है. इस नाटक को प्रभुनाथ ठाकुर एवं साथी कुतुबपुर सारण द्वारा प्रस्तुत किया गया. इस नाटक में शिवलाल, लखीचन्द्र, रामचन्द्र, रघु, रमानंद, भरत ठाकुर, कृष्ण देव शर्मा, जलेशर भगत, लक्ष्मी, शंकर, जगदीश, रशीद, प्रभुनाथ, राम, विरन, रामाकांत मौजूद थे.दूसरी प्रस्तुति के रूप में मुसलमान समुदायों द्वारा मुहर्रम पर्व में बजाये जानेवाले झरनी नृत्य को प्रस्तुत किया गया. झरनी बांस की बनी होती है. इसे ताल के रूप में प्रयुक्त किया जाता है. जिस तरह डांडिया में लोग डंडे को आपस में लड़ाते हैं, उसी तरह झरनी को एक दूसरे झरनी पर मारा जाता है. इस नृत्य को नूरपुर झरनी ग्रुप बेगुसराय ग्रुप ने प्रस्तुत किया. इस प्रस्तुति में गणेश पासवान, जगदीश शर्मा, राहुल शर्मा, उत्तम कुमार, जोगेन्द्र शर्मा, सत्तो ठाकुर, सीता राम, तांती, सुरेन्द्र राउत, मुहम्मद अकबर, मुहम्मद अरशद, मुहम्मद नसीम खुरशीद, गुड्डू मौजूद थे. दलनायक के रूप में गणेस पासवान मौजूद थे.

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