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इलेक्ट्रॉनिक कचरा संग्रह के लिए उत्पादक कंपनियां बाध्य हो : सुशील मोदी

पटना : केंद्रीय एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण पार्षदों/समितियों के देश भर से जुटे अध्यक्षों एवं सदस्य सचिवों के बिहार संग्रहालय में आयोजित दो दिवसीय 64वें सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक कचरा के निष्पादन हेतु इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियां सभी राज्यों के बड़े शहरों में ई-वेस्ट संग्रह […]

पटना : केंद्रीय एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण पार्षदों/समितियों के देश भर से जुटे अध्यक्षों एवं सदस्य सचिवों के बिहार संग्रहालय में आयोजित दो दिवसीय 64वें सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक कचरा के निष्पादन हेतु इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियां सभी राज्यों के बड़े शहरों में ई-वेस्ट संग्रह केंद्र स्थापित करने हेतु बाध्य हो. कंपनियां जिस मार्केटिंग चैनल से अपने उत्पाद लॉन्च और वितरण करती है, उसी द्वारा ई-वेस्ट संग्रह करें क्योंकि मध्यमवर्गीय परिवारों के घरों में बड़ी मात्रा में इलेक्ट्राॅनिक व इलेक्ट्रिकल उपकरण जमा हो गये हैं.

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सख्ती से आज बिहार के आधे से अधिक अस्पताल बायो मेडिकल कचरा का निष्पादन कर रही हैं. अस्पताल के कचरा डस्चार्ज की मात्रा, स्थल की उपलब्धता के अनुरूप मॉडल गाइडलाइन संसूचित करने की जरूरत है. बड़े अस्पतालों के लिए 75 किमी दूर निष्पादन के बजाय कैप्टिव की व्यवस्था हो. उन्होंने कहा कि जब तक पड़ोसी राज्य भी प्लास्टिक कैरी बैग प्रतिबंधित नहीं करते है तब तक किसी एक राज्य के प्रतिबंध लगाने से व्यवहारिक तौर पर उसे पूरी तरह से बंद करना संभव नहीं है. भारत सरकार पूरे देश में एक साथ सिंगल यूज प्लास्टिक व 50 माइक्रोन से कम के कैरी बैग के निर्माण, आयात, भंडारण और उपयोग को प्रतिबंधित करें तभी इसका सार्थक परिणाम सामने आ सकता है. रॉ मैटेरियल उत्पादक कंपनियों पर भी कार्रवाई करने की जरूरत है.

सुशील मोदी ने कहा कि ठोस कचरा प्रबंधन की दिशा में डोर-टू-डोर कचरा संग्रह के बावजूद सूखे और गीले कचरा की छंटनी और उनका निष्पादन एक बड़ी चुनौती है. कचरे से बिजली बनाने की बात तो होती है मगर इसकी तकनीक बहुत प्रभावी नहीं है. बिहार में ईंट-भट्ठों को नयी जिग-जैग तकनीक में बदलने के बाद फ्लाई ऐश से ईंट बनाने के लिए भी व्यावहारिक स्थितियों को ध्यान में रखने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि पर्यावरण सुरक्षा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता में शामिल है. पर्यावरण की कीमत पर कोई विकास नहीं हो सकता है. बिहार सरकार 24 हजार करोड़ की लागत से जल-जीवन-हरियाली अभियान के तहत 3 वर्षों में प्राकृतिक जल श्रोतों का जीर्णोद्धार व संरक्षण, वर्षा जल संचयन व सघन वृक्षारोपन का अभियान चला रही है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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