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बिहार में निजी एंबुलेंस पर अंकुश के लिए कोई नियम-कायदा नहीं
दीपक मिश्रा लिया जाता है मनमाफिक किराया, नहीं रहता है कोई टेक्नीशियन भी पटना : राज्य में निजी एंबुलेंस संचालकों पर अंकुश रखने के लिए कोई रेगुलेशन नहीं है. कोई नियम न रहने का बेजा लाभ किराया से लेकर अन्य मामलों में ये उठाते हैं. मरीजों को इससे काफी परेशानी होती है. सरकार को तो […]
दीपक मिश्रा
लिया जाता है मनमाफिक किराया, नहीं रहता है कोई टेक्नीशियन भी
पटना : राज्य में निजी एंबुलेंस संचालकों पर अंकुश रखने के लिए कोई रेगुलेशन नहीं है. कोई नियम न रहने का बेजा लाभ किराया से लेकर अन्य मामलों में ये उठाते हैं. मरीजों को इससे काफी परेशानी होती है. सरकार को तो यह भी पता नहीं है कि राज्य में कितनी निजी एंबुलेंस चल रही हैं.
सरकारी एंबुलेंस का किराया 10 रुपये प्रति किलोमीटर है, जबकि निजी वाले मनमाफिक किराया तय करते हैं. सरकारी व्यवस्था की परेशानी यह है कि रोजाना डेढ़ सौ एंबुलेंस खराब रहती हैं. आधी एंबुलेंस पुरानी हो चुकी हैं. कभी-कभी ये रास्ते में ही खराब हो जाती हैं, जिसके चलते मरीजों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है. हालांकि वर्तमान में इनकी पहुंच बढ़ी है. सरकारी एंबुलेंस अब जिले में कहीं से भी मरीज को अस्पताल पहुंचा सकती हैं. पहले वे पीएचसी क्षेत्र से ही मरीज को ले जाती थीं.
राज्य में एंबुलेंस की उपलब्धता तो मानक के अनुसार ही है. मानक है कि एक लाख की आबादी पर एक एंबुलेंस रहनी चाहिए. सरकारी स्तर पर दो श्रेणियों की एंबुलेंस सुविधा अभी मिल रही है. एक है बेसिक लाइफ सपोर्ट सिस्टम (बीएलएसए) और दूसरा क्रिटिकल लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस (एएलएसए). बीएलएसए के तहत 1004 और एएलएसए के तहत 58 एंबुलेंस हैं. पूरे राज्य के लिए 102 नंबर पर एंबुलेंस सुविधा उपलब्ध है,
जबकि पटना के लिए 108 नंबर पर.
10 प्रति किलोमीटर की दर पर उपलब्ध है सरकारी एंबुलेंस
सरकारी एंबुलेंस 10 रुपये प्रति किलोमीटर की दर पर उपलब्ध है. सरकारी एंबुलेंस पर नियंत्रण रखने के लिए मुख्यालय स्तर पर एक सेल बना हुआ है.
सरकारी एंबुलेंस के लिए नियम है कि वे एक तरफ का ही किराया लेंगी, जबकि निजी वाले दोनों तरफ का लेते हैं. सरकारी एंबुलेंस को हिदायत है कि वह मरीज को सरकारी अस्पताल ही ले जायेंगी. निजी अस्पताल में ले जाने के लिए उन्हें सक्षम अधिकारी से लिखित निर्देश लेना होगा. अभी राज्य में कहने को तो 1062 सरकारी एंबुलेंस उपलब्ध हैं लेकिन रोजाना 120 से 150 एंबुलेंस ऑफ रोड रहती हैं. एंबुलेंस का मिनिमम रिस्पॉन्स टाइम एक घंटे का है, लेकिन ग्रामीण क्या शहरी इलाके में भी पहुंचने में देरी होती है.
निजी एंबुलेंस की निगरानी के लिए अभी तक राज्य में कोई रेगुलेशन नहीं है. नियम है कि कंपनी मेड एंबुलेंस का उपयोग ही करना है, लेकिन बहुत कम संख्या में ही निजी एंबुलेंस कंपनी मेड हैं. निजी एंबुलेंस का निबंधन भी एंबुलेंस के रूप में नहीं है. राजस्व का नुकसान भी अलग से है. राज्य में कितनी निजी एंबुलेंस हैं, इसकी जानकारी नहीं है. किराया भी तय नहीं है.
सरकार का है ध्यान
मरीजों को कम खर्च और निर्धारित दर पर एंबुलेंस मिले इस पर सरकार विचार कर रही है. मरीजों को कोई परेशानी नहीं हो सरकार का ध्यान इस ओर है.
—मंगल पांडेय, स्वास्थ्य मंत्री
इनके लिए नि:शुल्क एंबुलेंस
कालाजार रोगी l वरिष्ठ नागरिक l दुर्घटनाग्रस्त मरीजों के लिए प्रथम परिवहन l राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत रेफर बच्चे l बीपीएल परिवार l गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए घर से अस्पताल तक लाना व फिर घर पहुंचाना l सभी बीमार नवजात के लिए
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