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पटना: 40 के बाद कराएं आंखों की नस व प्रेशर की जांच

एनएमसीएच में मोतियाबिंद व ग्लूकोमा पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन पटना सिटी : ग्लूकोमा बीमारी की चपेट में आये मरीज को यह पता नहीं चलता है कि वह बीमारी की चपेट में आ गया है क्योंकि बीमारी के सिस्टम का भी पता नहीं चल पाता है. ऐसे में 40 वर्ष की उम्र के बाद व्यक्ति […]

एनएमसीएच में मोतियाबिंद व ग्लूकोमा पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन
पटना सिटी : ग्लूकोमा बीमारी की चपेट में आये मरीज को यह पता नहीं चलता है कि वह बीमारी की चपेट में आ गया है क्योंकि बीमारी के सिस्टम का भी पता नहीं चल पाता है. ऐसे में 40 वर्ष की उम्र के बाद व्यक्ति को आंखों की जांच समय-समय पर कराते रहना चाहिए. आंखों के अंदर जो प्रेशर होता है, उसके नस व प्रेशर की जांच भी हर तीन माह पर कराएं.
यह बात मदुरई से आये डॉ के कृष्णा दास ने कही. रविवार को नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के नेत्र रोग विभाग में ऑल इंडिया ऑप्थेलमोलॉजिकल सोसाइटी की बिहार शाखा की ओर से एकेडमी रिसर्च कमेटी ने मोतियाबिंद व ग्लूकोमा पर सेमिनार का आयोजन किया था.
इसी सेमिनार में डॉ दास अपनी बातों को रख रहे थे. डॉक्टर ने कहा कि डायबिटीज व हाईपरटेंशन से पीड़ित मरीज में इस बीमारी की संभावना अधिक होती है. कार्यक्रम की शुरुआत में आयोजन समिति की ओर से अतिथियों को प्रतीक चिह्न व शाॅल देकर सम्मानित किया गया. सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति छात्र अपर्णा, सलोनी व कृतिका ने गणेश वंदना से दी.
देश में एक करोड़ 20 लाख लोग ग्लूकोमा बीमारी से पीड़ित
डॉक्टर दास ने कहा कि देश भर में एक करोड़ 20 लाख लोग ग्लूकोमा की बीमारी से पीड़ित हैं. सेंटर ऑफ एक्सीलेंस भवन में आयोजित सेमिनार को संबोधित करते दिल्ली के डॉ महिपाल सचदेवा ने कहा कि मोतियाबिंद व ग्लूकोमा की बीमारी में भी आंखों की रोशनी जाती है.
हालांकि, दोनों बीमारियों के इलाज के लिए अब आधुनिक तकनीक का उपयोग किया जा रहा है. कोलकाता के डॉ पार्थो विश्वास ने कहा कि आंखों के उपचार के लिए बिहार में भी बेहतर व्यवस्था है. अब मोतियाबिंद से पीड़ित मरीजों की संख्या बिहार में घटी है, लेकिन ग्लूकोमा के मरीजों की संख्या बढ़ रही है. 20 की उम्र के बाद आंखों में रोशनी कम होने की शिकायत आ रही है. आधुनिक उपचार में लोग मल्टी फोकल व ट्राई फोकल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर 90 फीसदी लोग बगैर चश्मा के देख सकते हैं. पहले यह लेंस विदेशों में मिलता था. अब इंडिया में भी बनने लगा है.
वाराणसी से आये डॉ दीपक मिश्र ने कहा कि ग्लूकोमा बीमारी में किसी की आंखों की रोशनी चली जाती है, तो वह वापस नहीं आती है, लेकिन ड्रेनेज डिवाइस तकनीक से उपचार किया जा सकता है. आयोजन में पीएमसीएच के नेत्र विभाग के अध्यक्ष डॉ एएसबी सहाय व डॉ सुनील सिंह ने कहा कि कंप्यूटर पर काम करने वाला व्यक्ति बीच-बीच में पलक झपकाने व थोड़ा आंखों को आराम देने का काम करे.
प्रोजेक्टर से जानी आॅपरेशन की तकनीक
दो सत्रों में आयोजित कार्यक्रम में पीजी स्टूडेंट को सर्जिकल स्कील ट्रांसफर कोर्स के तहत आंखों के आॅपरेशन की जानकारी दी गयी. प्रोजेक्टर के सहारे एक-एक विधि से मोम के बने आंख पर आॅपरेशन कर तरीकों को बताया गया. बीएचयू से आये डॉ दीपक मिश्र ने सर्जरी में किस तरह की परेशानी आती है, इसे भी छात्रों को बताया गया. सेमिनार का संचालन डॉ रंजना व डॉ सत्यजीत सिन्हा ने किया.

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