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पटना : न रेड, न ग्रीन, गोलंबरों पर जल रही केवल येलो ट्रैफिक लाइट
अनुपम कुमार पटना : वर्ष 2015 में पटना शहर में 57 इलेक्ट्रॉनिक लाइट ट्रैफिक सिग्नल लगाने की योजना बनी. इसके अंतर्गत चौराहों और तिराहों के साथ शहर के छह प्रमुख गोलंबरों आयकर गोलंबर, कारगिल गोलंबर, जेपी गोलंबर, अनिसाबाद गोलंबर, चितकोहरा गोलंबर और पटेल गोलंबर पर भी ट्रैफिक सिग्नल लगना था. इंस्टॉलेशन के बाद 24 फरवरी, […]
अनुपम कुमार
पटना : वर्ष 2015 में पटना शहर में 57 इलेक्ट्रॉनिक लाइट ट्रैफिक सिग्नल लगाने की योजना बनी. इसके अंतर्गत चौराहों और तिराहों के साथ शहर के छह प्रमुख गोलंबरों आयकर गोलंबर, कारगिल गोलंबर, जेपी गोलंबर, अनिसाबाद गोलंबर, चितकोहरा गोलंबर और पटेल गोलंबर पर भी ट्रैफिक सिग्नल लगना था. इंस्टॉलेशन के बाद 24 फरवरी, 2016 से उनका इस्तेमाल भी शुरू हो गया. शहर के अन्य ट्रैफिक प्वाइंट पर लगे इलेक्ट्रॉनिक ट्रैफिक सिग्नल कमोबेश अभी भी इस्तेमाल हो रहे हैं पर गोलंबरों पर लगे ट्रैफिक सिग्नल बेकार हो चुके हैं.
गोलंबरों पर बढ़ जाता है कंजेशन
पिछले एक वर्ष से यही व्यवस्था जारी है. इलेक्ट्रॉनिक ट्रैफिक सिग्नल सिस्टम काम कर रहा है, यह दिखाने के लिए केवल येलो लाइट का इस्तेमाल किया जा रहा है. यह सुबह नौ से रात दस बजे तक पूरे ट्रैफिक रेगुलेशन पीरियड में जलता-बुझता रहता है .
26.06 करोड़ की थी परियोजना: पूरे पटना शहर में इलेक्ट्रॉनिक लाइट ट्रैफिक सिग्नल लगाने की योजना 26.06 करोड़ की थी. इसके अंतर्गत 57 ट्रैफिक प्वाइंट पर इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल लगा और उनकी मॉनीटरिंग के लिए एक कंट्रोल रूम का निर्माण किया गया. तीन साल के लिए सिस्टम का रखरखाव भी सिस्टम इंस्टॉल करने वाली एजेंसी को ही करना था. सामान्य चौराहे की तुलना में गोलंबरों पर लगने वाले ट्रैफिक लाइट्स की संख्या लगभग दोगुनी होती है.
गोलंबरों पर इसलिए पीली बत्ती जलती है कि यहां हमलोग किसी तरफ से मार्ग को रोक नहीं रहे हैं. सब तरफ जाने की छूट है, पीली बत्ती रखते हैं कि गाड़ियां धीमे चलें, आगे पीछे देख कर चलें.
पीएन मिश्र, ट्रैफिक एसपी
फिजिबिलिटी जांच पर उठ रहे सवाल
सवाल है कि इलेक्ट्रॉनिक लाइट ट्रैफिक सिग्नल का इंस्टॉलेशन करवाने वाली सरकारी एजेंसी बुडको और सिस्टम को इंस्टॉल करने वाली नीदरलैंड की कंपनी फिजिबिलिटी जांच के दौरान इस बात का अंदाज क्यों नहीं लगा सकी कि शहर के प्रमुख गोलंबरों की स्थिति इलेक्ट्रॉनिक ट्रैफिक सिग्नल लगाने के लायक नहीं हैं और मैनुअली ही ऐसे जगहों पर ट्रैफिक का परिचालन किया जा सकता है. यह अनुमान पहले लगा लिया जाता तो ट्रैफिक लाइट्स गोलंबरों की बजाय किसी अन्य जरूरत वाले ट्रैफिक प्वाइंट्स पर लगाया जा सकता था और पहले से ही सीमित संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा व्यर्थ होने से बचाया जा सकता था.
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