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अब तो हो जाइए अलर्ट, नहीं तो बड़ा झटका देगा भूकंप

पटना: बुधवार की रात आये भूकंप के हल्के झटके ने राजधानीवासियों को संभलने का एक मौका दिया है. इसके बावजूद हम नहीं चेतें, तो भविष्य में बड़ी हादसे से इनकार नहीं किया जा सकता. भूकंप की संवेदनशीलता की दृष्टि से पटना जिला जोन चार में आता है, जो कि अधिक क्षति जोखिम का क्षेत्र है. […]

पटना: बुधवार की रात आये भूकंप के हल्के झटके ने राजधानीवासियों को संभलने का एक मौका दिया है. इसके बावजूद हम नहीं चेतें, तो भविष्य में बड़ी हादसे से इनकार नहीं किया जा सकता. भूकंप की संवेदनशीलता की दृष्टि से पटना जिला जोन चार में आता है, जो कि अधिक क्षति जोखिम का क्षेत्र है. ऐसे क्षेत्र में सात या उससे अधिक रिएक्टर पैमाने पर आनेवाला भूकंप सरकारी व निजी इमारतों को बड़ी क्षति पहुंचाने के साथ ही भारी तबाही मचा सकता है.

अवैध ढंग से बने मकान: अपने अस्त-व्यस्त अवस्था को लेकर पटना शहर हमेशा चर्चा में रहा है. कोई प्लानिंग नहीं होने के कारण जिसने जहां चाहा मकान बना लिया. हालत ऐसी है कि तीव्र गति का भूकंप आने पर लोगों को भागने तक का कोई मौका नहीं मिलेगा. कंकड़बाग, राजेंद्रनगर, श्रीकृष्णापुरी व शास्त्री नगर के कुछ इलाकों को छोड़ दिया जाये, तो अधिकतर मोहल्ले की छोटी-छोटी गलियों में पतले व लंबे मकान खड़े कर लिये गये हैं. तेज झटके में इनके भरभरा कर गिरने की स्थिति है.

गंगा किनारे बना लिये मकान: नगर निगम की रोक के बावजूद गंगा नदी के किनारे भी बड़ी संख्या में अपार्टमेंट व भवन बना लिये गये हैं. भूकंप में बलुआही मिट्टी के द्रवीकरण की संभावना अधिक होती है. साथ ही भवन अपने भार से नींव के नीचे की मिट्टी को दबाता है. कीचड़दार, नये भरे गये अथवा हल्के कमजोर मिट्टी पर आधारित नींव धंसती है और संरचना ढांचा क्षतिग्रस्त हो जाता है. ऐसी स्थिति में नदी किनारे के मकान काफी खतरनाक साबित हो सकते हैं.

बिहार में आये बड़े भूकंप

वर्ष 1934 : जाड़े के मौसम में 15 जनवरी, 1934 को दिन में 2 बज कर 13 मिनट पर उत्तर बिहार विध्वंसकारी भूकंप की चपेट में आया था. रिएक्टर पैमाने पर 8.3 की तीव्रतावाले इस भूकंप का उद्गम भूतल में बिहार की सीमा से सटे नेपाल था. नेपाल में काठमांडो से बिहार में मुंगेर तक बड़े पैमाने पर क्षति हुई थी. अगर यह भूकंप रात में आया होता, तो असंख्य जानें जाती.

इस भूकंप से नेपाल में भटगांव और बिहार में मुंगेर पूरी तरह बरबाद हो गये थे. बलुआही मिट्टी के द्रवीकरण के कारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सहरसा एवं पूर्णिया जिले के 300 किमी लंबे और 50 किमी चौड़े विस्तृत इलाके दलदली हो गये. इन जिलों में बहुत सारे मकान झुक गये या जमीन में धंस गये. वर्ष 1938 : पुन: इसी क्षेत्र में 20 अगस्त, 1988 को 6.6 तीव्रता का भूकंप मॉनसून के दौरान आया. उस वक्त ये इलाके बाढ़ग्रस्त थे. इससे भारत में 282 लोग मारे गये, जबकि 3766 लोग घायल हुए थे. नेपाल में भी 721 लोगों की मौत हुई थी. भारत में करीब डेढ़ लाख, जबकि नेपाल में एक लाख घर क्षतिग्रस्त भी हुए.

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