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बिहार : शराब की बोतल टूटी तो मिली आधी आबादी को राहत, शराब बनाने वाले हाथ अब बन चुके हैं अन्नदाता

पटना : शराब बंदी. सरकार के इस एक निर्णय ने राज्य की 99 फीसदी महिलाओं की जिंदगी बदल दी है. मानसिक हिंसा से लेकर यौन हिंसा का ग्राफ औंधे मुंह गिर गया है. शराब पर साप्ताहिक खर्च 971 रुपये से घटकर 146 रुपये पर पहुंच गया है. वहीं शिक्षा पर साप्ताहिक व्यय 364 रुपये से […]

पटना : शराब बंदी. सरकार के इस एक निर्णय ने राज्य की 99 फीसदी महिलाओं की जिंदगी बदल दी है. मानसिक हिंसा से लेकर यौन हिंसा का ग्राफ औंधे मुंह गिर गया है. शराब पर साप्ताहिक खर्च 971 रुपये से घटकर 146 रुपये पर पहुंच गया है. वहीं शिक्षा पर साप्ताहिक व्यय 364 रुपये से बढ़कर 4612 रुपये हो गया है. राज्य महिला आयोग के मार्च 2018 के आंकड़ों को देखें तो छेड़छाड़ और शराब के नशे में जमीन बेचने की घटनाएं न्यूनतम हो गईं हैं. हालांकि पूर्ण शराबबंदी के बाद भी करीब 19 फीसदी लोग शराब पी रहे हैं.
प्रदेश सरकार द्वारा नवादा, पूर्णिया, समस्तीपुर, पश्चिमी चंपारण और कैमूर में शराब पीने वाले 2368 लोगों के परिवारों पर जो शोध कराया गया था वह बता रहा है कि शराब बंदी से चमत्कार किया है.
आर्थिक हिंसा 70 फीसदी से घटकर छह फीसदी पर आ गयी है. इस बदलाव से बच्चे भी अछूते नहीं हैं. उनके खिलाफ होने वाली मानसिक, शारीरिक आैर मौखिक का स्तर पांच फीसदी तक पहुंच गया है, शराब बंदी से पहले यह स्तर 35 फीसदी तक था. मद्य निषेध से पहले 92 प्रतिशत पुरुष अपनी आमदनी में से शराब पीते थे.
शराबबंदी का असर
शराबबंदी के प्रभाव को जानने के लिए सरकार नेजो अध्ययन कराया था, जिसकी रिपोर्ट बीते साल के अंत में जारी की गई थी. जेंडर रिसोर्स सेंटर, महिला विकास निगम, समाज कल्याण विभाग और डेवलपमेंट मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट पटना ने एक सर्वे के लिये राज्य को भौगोलिक द़ृष्टि से पांच हिस्सों पूर्व, पश्चिम , उत्तर , दक्षिण और मध्य में बांटा गया था. जिलों का चुनाव आर्थिक रूप से भिन्नता के आधार पर किया गया था.
शराब बंदी के बाद क्या प्रभाव पड़ा है? यह महिला आयोग में दर्ज होने वाले केसों की संख्या का घट जाना ही बता रहा है. सड़क पर चलने वाला आम आदमी महसूस कर रहा है.
दिलमणि मिश्रा, अध्यक्ष, बिहार राज्य महिला आयोग
शराबबंदी का चला डंडा तो आधी आबादी को राहत
शराबबंदी का डंडा चला तो सबसे ज्यादा राहत आधी आबादी को मिली. महिलाओं पर होने वाले अपराधों में कमी आयी और हालात बदलने लगे. बिहार सरकार के आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं. पहले मानसिक हिंसा 79 फीसदी थी, जो अब घटकर 11 फीसद रह गयी है. अन्य तरह के अपराध भी कम हुए हैं. शराबबंदी का सकारात्मक प्रभाव समाज की दशा और दिशा बदलने लगा है.
शराबबंदी के बाद बदल गया धनरूआ का कैली गांव, नजर आती है खुशहाली और शांति
पूरे गांव ने सामूहिक रूप से पंचायत लगा कर शराब नहीं बनाने व नहीं पीने की ली थी शपथ
स्कूल का मुंह नहीं देखने वाले गांव के बच्चे जाने लगे हैं स्कूल
शराब बनाने वाले हाथ अब बन चुके हैं अन्नदाता
मसौढ़ी : शराबबंदी के आज दो वर्ष पूरे हो रहे हैं. इन दो वर्षों में कई उतार- चढ़ाव देखने को मिले, वहीं समाज में व्यापक बदलाव भी देखने को मिल रहे हैं.
धनरूआ का कैली गांव जो शराबबंदी के पूर्व शराब के नाम से ही जाना जाता था, वहां का माहौल आज काफी बदल चुका है. शराबबंदी के बाद पूरे कैली गांव के मसहरी के लोग बीते वर्ष शराब न बनाने व न पीने की शपथ स्थानीय प्रशासन के समक्ष ली थी. इसी का प्रतिफल है कि आज शराब बनाने वाला हर हाथ अन्नदाता हो गया है. पूरा गांव खेती के साथ-साथ मजदूरी कर रहा है.
खेती करके हैं खुश
पांच बीघे में खेती कर रहे सजन कहते हैं कि खेती से होने वाली उपज से अब घर परिवार अच्छे ढंग से चल रहा है. वहीं गांव के ललन मांझी, अजय मांझी, अनिल मांझी, विजेंद्र मांझी आदि भी खेती करके खुशहैं.
खुशी से चला रहे गृहस्थी
धनरूआ का कैली मुसहरी के अलावा सांडा मुसहरी, पभेड़ा मुसहरी एवं छाती मुसहरी के लोग पूर्व में अवैध रूप से शराब का व्यापक पैमाने पर निर्माण करते थे. अब सभी मेहनत मजदूरी कर खुशी से गृहस्थी चला रहे हैं.
क्या कहती हैं महिलाएं
आधी रात में कोई शराब के लिए आकर दरवाजा खटखटा देता था. नहीं दी, तो गाली सुननी पड़ती थी.
गांव के मुहाने पर अंजान व्यक्ति का आना- जाना शराब के लिए होता था, जो अब नहीं होता है.
शराबबंदी से हमारी भावी पीढ़ी का भविष्य संवर जायेगा. हमलोग बच्चे को पढ़ाने के प्रति गंभीर हैं.
शराब के धंधे में पूरी जिंदगी लगा दी. शराबबंदी के बाद अब खेत में मेहनत कर सुकून से रह रही हूं.

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