13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बिहार : बंद लिफाफों में धूल फांक रहीं शताब्दी पुरानी 150 संपत्तियों की वसीयतें

पटना : शहर में अरबों रुपये की 150 से अधिक परिसंपत्तियां अंधेरे में हैं. इनमें से अधिकतर परिसंपत्तियां सौ साल पुरानी हैं. तथ्य यह है कि इन संपत्तियों की गुप्त वसीयतों में इनके असल मालिकों की पहचान दर्ज है. ये संपत्तियां मुहरबंद लिफाफों में हैं, जो निबंधन कार्यालय में धूल फांक रहीं हैं. अलबत्ता इसे […]

पटना : शहर में अरबों रुपये की 150 से अधिक परिसंपत्तियां अंधेरे में हैं. इनमें से अधिकतर परिसंपत्तियां सौ साल पुरानी हैं. तथ्य यह है कि इन संपत्तियों की गुप्त वसीयतों में इनके असल मालिकों की पहचान दर्ज है.
ये संपत्तियां मुहरबंद लिफाफों में हैं, जो निबंधन कार्यालय में धूल फांक रहीं हैं. अलबत्ता इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि असल संपत्ति के मालिकों की आंखें बंद होते ही उनके वारिस भी गुमनाम हाे गये. उनके वारिसों को पता भी नहीं होगा कि उनके पूर्वज उनके नाम करोड़ों की संपत्ति भी कर गये हैं. फिलहाल इन गुमनाम संपत्तियों को अपने असल वारिसों का इंतजार है. सुखद आश्चर्य यह होता है कि निबंधन कार्यालय इस पूरे मामले में पूरी ईमानदारी के साथ ट्रस्टी बना हुआ है. जानकारों के मुताबिक इनमें से कुछ वसीयतें मुगलकालीन हैं.
मुगल और ब्रिटिश कालीन वसीयतें भी हैं
इन वसीयतों में कुछ वसीयत आजादी के पूर्व की और उससे भी पहले यानी मुगलों के समय के लोगों द्वारा की गयी हैं. इनमें 1860, 1864, 1920, 1940, 1950,1999 व 2011 तक की गुप्त वसीयतें अब निबंधन कार्यालय में एेतिहासिक धरोहर के रूप में रखी हुई हैं. इन वसीयतों को सुरक्षित करने के लिए समय-समय पर मेंटेनेस भी किया जाता है. वहीं, इसकी सुरक्षा डबल लॉक सिस्टम के तहत की जाती है.
बदलता रहता है फाइलों का प्रभार
इन वसीयतों को बुक फाइव के नाम से जाना जाता है. इनका प्रभार डीएम को दिया जाता है. जिला निबंधक के रूप में उन्हें प्रभार सौंपा जाता है. यह सिलसिला वर्ष 1932 से अब तक जारी है. वसीयतों के प्रभारी बदलते रहते हैं. पर वारिस का इंतजार कभी खत्म नहीं हो रहा है.
सीलबंद लिफाफे में है
रजिस्ट्री विभाग के अंतर्गत बुक थ्री और फाइव में
वसीयत करने का प्रावधान है. गुप्त वसीयत को बुक फाइव में रखा जाता है. अब तक करीब 150 वसीयतें पड़ी हैं.
इन वसीयतों में क्या लिखा है. कहां की प्रॉप्टी है, कितने करोड़ की प्राेपर्टी है, मुगलों की कौन सी प्रोपर्टी किनके हाथ लग चुकी है. इसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं है.
क्या है गुप्त वसीयत
इसे लिखने वाले के अलावा वही व्यक्ति पढ़ सकता है, जिसके लिए लिखा गया है. इस गुप्त वसीयत की जानकारी न तो रजिस्ट्रार को होती है और न ही डीएम को. वसीयत का असली हकदार वही होगा, जिसके नाम से वसीयत की गयी है. वसीयत करने वाले की मृत्यु के बाद, जो पूरी तरह से आश्वस्त हो कि वही वसीयत का वारिस है. वह क्लेम कर सकते हैं. क्लेम करने के बाद जिलाधिकारी व रजिस्ट्रार के बीच वसीयत खोली जाती है.
वसीयत में क्लेम करनेवाले के वारिस का नाम नहीं होने पर सारी कागजी कार्रवाई करने के बाद भी उसे नहीं सौंपी जा सकती है. इसे केवल जिलाें में ही कराया जा सकता है. किसी मुफ्फसिल में गुप्त वसीयत का प्रावधान नहीं है.
वर्तमान में ओपेन वसीयत की है मांग
जिला निबंधन कार्यालय के मुताबिक गुप्त वसीयत का प्रावधान अब भी है. पर लोग ओपेन वसीयत ही कराते हैं. इसे कराने पर स्टांप फी नहीं ली जाती. वहीं, यदि जीते जी कोई व्यक्ति वसीयत में कुछ बदलाव करना चाहे, तो भी वह कर सकता है. जिस भी व्यक्ति के नाम वसीयत की जाती है, जब वह क्लेम करता है, तो उसे स्टांप फी के रूप में फिक्स राशि देनी होती है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें