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बिहार में बड़ी टूट की ओर बढ़ रही कांग्रेस, विधायक भी अपना सकते हैं बगावती तेवर, पढ़ें पूरी बात

पटना : कहते हैं कि सियासत में वक्त के हिसाब से पाला बदलने का खेल बखूबी अंजाम दिया जाता है. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि हालांकि, इससे पूर्व पाला बदलने वाले अपना राजनीतिक भविष्य और जातिगत गणित सामने वाली पार्टी की कसौटी पर परख चुके होते हैं, उसके बाद पाला बदलने वाला कदम उठाया जाता […]

पटना : कहते हैं कि सियासत में वक्त के हिसाब से पाला बदलने का खेल बखूबी अंजाम दिया जाता है. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि हालांकि, इससे पूर्व पाला बदलने वाले अपना राजनीतिक भविष्य और जातिगत गणित सामने वाली पार्टी की कसौटी पर परख चुके होते हैं, उसके बाद पाला बदलने वाला कदम उठाया जाता है. राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद दत्त कहते हैं कि बिहार प्रदेश कांग्रेस, गत कई महीनों से पार्टी के अंदरखाने चलने वाले राजनीतिक शीत युद्ध का सामना कर रही है. इस युद्ध में पार्टी के अपने नेता शामिल हैं और धीरे-धीरे पार्टी के अंदर सेंध लगाने में सफल हो रहे हैं. इसी का परिणाम है, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अशोक चौधरी की कौन कहे, एक साथ चार-चार विधान पार्षदों ने पार्टी को छोड़ दिया और वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी का दावा पूरी तरह फेल साबित हुआ कि बिहार में पार्टी पूरी तरह एकजुट है. अब सियासी गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि कांग्रेस के 27 विधायकों में से दो तिहाई विधायक कभी भी जदयू या एनडीए का दामन थाम सकते हैं.

पार्टी के अंदर युद्ध के स्थिति की नींव उस वक्त पड़ी जब बिहार प्रदेश के कुछ नेताओं ने डॉ. अशोक चौधरी की नीतीश कुमार से बढ़ रही नजदीकियों के बारे में आलाकमान को अवगत कराया. बिहार प्रदेश के नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व को यह समझाया कि डॉ. अशोक चौधरी महागठबंधन टूटने के बाद भी सरकारी बंगले में बने हुए हैं, जबकि बाकी महागठबंधन के मंत्रियों और नेताओं के बंगले छीने जा रहे हैंऔर अशोक चौधरी को एक नोटिस तक नहीं मिला है. आलाकमान को यह बात जंच गयी और कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष पद से डॉ. अशोक चौधरी को हटा दिया. अशोक चौधरी उसके बाद मीडिया के सामने रोये भी और कहा कि वह एक ऐसे स्कूली छात्र हैं, जिसको पता ही नहीं कि उसे दंड किस गलती के लिए मिला है. उसके बाद अशोक चौधरी मुखर हो गये और कई मुद्दों पर पार्टी लाइन से अलग जाकर नीतीश कुमार का समर्थन किया और एनडीए के समर्थन में बयान दिया.

पार्टी के वरिष्ठ नेता सदानंद सिंह ने मीडिया को बताया कि डॉ. अशोक चौधरी कांग्रेस पार्टी से नाराज चल रहे थे और वह बहुत दिनों से जदयू में जाने की फिराक में थे. सदानंद सिंह ने कहा कि जो नेता कांग्रेस पार्टी छोड़कर गये हैं, उनका कोई खास जनाधार नहीं है, इसलिए पार्टी पर इसका असर नहीं पड़ेगा. हालांकि, एक झटके में इस बड़े झटके को कौकब कादरी सहन नहीं कर पाये और उन्होंने आनन-फानन में पार्टी के अंदर अशोक चौधरी के समर्थकों को निशाने पर लिया और विभिन्न पदों और प्रकोष्ठों में बैठे आठ नेताओं के निलंबन का फरमान सुना दिया. कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष और कौकब कादरी ने पूर्व कोषाध्यक्ष संजय सिन्हा, पूर्व प्रवक्ता विनोद कुमार सिंह यादव, सुमन कुमार मल्लिक, पूर्व सचिव अजीत झा, उदय शर्मा, मनोज उपाध्याय, क्रीड़ा प्रकोष्ठ के पूर्व अध्यक्ष राजेश तिवारी और आईटी प्रकोष्ठ के पूर्व सदस्य जितेंद्र मिश्र की पार्टी की प्राथमिक सदस्यता अनुशासनहीनता तथा पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहने के कारण निलंबित कर दिया. कादरी ने कहा कि कांग्रेस से बड़ा कोई भी नेता नहीं है. पिछले पांच माह से ये नेता पार्टी के किसी कार्यक्रम में शामिल नहीं हो रहे थे. उन्होंने कहा कि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी के साथ इन नेताओं ने भी कांग्रेस आलाकमान और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सी पी जोशी की मीडिया में लगातार आलोचना कर रहे थे.

उधर, राजनीतिक जानकारों की मानें, तो बिहार कांग्रेस में अभी और ज्यादा उठा-पटक देखने को मिलेगी. अभी विधान पार्षदों ने बगावती तेवर दिखाया है, लेकिन आगे विधायक भी इसी राह पर चल सकते हैं. जानकार यह भी बताते हैं कि अशोक चौधरी ने बिहार विधानसभा चुनाव में कई विधायकों को अपनी पसंद से टिकट दिया था और अशोक चौधरी के कहने पर अालाकमान ने उन विधायकों को टिकट के लायक समझा था. उनमें से कई विधायकों ने पहली बार सत्ता का स्वाद चखा था और कइयों ने पहली बार बिहार विधानसभा का चेहरा देखा था. उनमें से एक विधायक बक्सर से संजय कुमार तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी हैं, जो अशोक चौधरी के कट्टर समर्थकों में से एक हैं. मुन्ना तिवारी उस वक्त भी अशोक चौधरी के साथ थे, जब डॉ. चौधरी जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह के घर चूड़ा दही के भोज में शामिल होने पहुंचे थे. पार्टी के अंदर के विश्वसनीय सूत्र कहते हैं कि बड़ी टूट की संभावना लगातार बनी हुई है, बस कुछ विधायकों को पार्टी का परमानेंट प्रदेश अध्यक्ष मिलने का इंतजार है. उसके बाद पार्टी में बड़ी टूट हो सकती है और कई विधायक, यहां तक दो तिहाई भी पार्टी छोड़ सकते हैं.

हाल में पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और विधान पार्षद डॉ. अशोक चौधरी के साथ और भी तीन विधान पार्षदों ने पार्टी का दामन छोड़ दिया और जदयू का दामन थाम लिया है. उनमें अशोक चौधरी के अलावा दिलीप चौधरी, तनवीर अख्तर और रामचंद्र भारती शामिल हैं. अशोक चौधरी ने पार्टी में अनदेखा किए जाने का आरोप भी लगाया था और कहा था कि कांग्रेस में लोकतंत्र की कमी है और काम करने वालों की कोई सुनवाई नहीं हो रही. अशोक चौधरी ने जदयू ज्वाइन करने के बाद मीडिया से बात करते हुए कहाथा कि नीतीश जी को वे हर तरह से सहयोग करेंगे और वे उन्हें जो भी जिम्मेदारी देंगे उसे पूरा करेंगे. उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया था कि कांग्रेस में वे लोग मुझे याचक के रूप में रखना चाहते थे, लेकिन मैं इसके लिए तैयार नहीं था. अशोक चौधरी के जाने के बाद राजनीतिक गलियारों में कांग्रेस के बाकी विधायकों और पार्षदों को लेकर चर्चा चल रही है. लोगों का मानना है कि कौकब कादरी प्रदेश कांग्रेस को अच्छी तरह से हैंडल नहीं कर पा रहे हैं. यही स्थिति रही, तो पार्टी में एक और बड़ी टूट हो सकती है.

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