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Remote Politics के जरिये लालू साध रहे हैं बिहार की सियासत, परिणाम के उलट-फेर की संभावना, जानें

पटना : बिहार के सबसे बड़े सियासी परिवार के मुखिया और राजद सुप्रीमो लालू यादव भले चारा घोटाला मामले में रांची के होटवार जेल में बंद हों, लेकिन उनकी राजनीतिक गतिविधियां जेल से ही लगातार जारी हैं. आज जदयू के बागी नेता शरद यादव सहित बाबू लाल मरांडी ने जेल जाकर लालू से मुलाकात की, […]

पटना : बिहार के सबसे बड़े सियासी परिवार के मुखिया और राजद सुप्रीमो लालू यादव भले चारा घोटाला मामले में रांची के होटवार जेल में बंद हों, लेकिन उनकी राजनीतिक गतिविधियां जेल से ही लगातार जारी हैं. आज जदयू के बागी नेता शरद यादव सहित बाबू लाल मरांडी ने जेल जाकर लालू से मुलाकात की, वहीं इससे पहले भी लालू से जेल में मुलाकात करने वाले नेताओं की फेहरिस्त लंबी है. हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के नेता वृषिण पटेल हों या फिर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और जदयू नेता उदय नारायण चौधरी. सबने जाकर लालू से जेल में मुलाकात की. कहा जाता है कि लालू जब-जब जेल में गये हैं, उन्होंने सत्ता हो या सियासत, रिमोट हमेशा अपने हाथ में रखा है. यही वजह से कि इन दिनों लालू की विरासत के पहरुआ बने तेजस्वी यादव से ज्यादा नेता लालू से मिलना पसंद करते हैं.

लालू यादव अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, हालांकि, औपचारिक तौर पर उनके जेल जाने के बाद कमान उनके छोटे पुत्र तेजस्वी यादव के हाथों में है. लालू के जेल जाने के बाद अब तक दो बार तेजस्वी यादव उनसे मिल चुके हैं और वहां से मिले निर्देशों के हिसाब से पार्टी को हांक रहे हैं. राजद के अंदरुनी सूत्रों की मानें, तो लालू लगातार राजनीतिक घटनाओं पर नजर बनाये रहते हैं और गाहे-बगाहे भोला यादव के माध्यम से तेजस्वी यादव को निर्देश भिजवाते हैं. इतना ही नहीं लालू राष्ट्रीय राजनीति पर भी नजर गड़ाये रहते हैं और पार्टी को कब कौन सा फैसला लेना है और किस तरीके से लोगों के बीच अपनी बात को रखना है, इसके लिए भी बकायदा निर्देश जारी करते हैं. उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को हाल में अपना संदेश ग्राम स्तर पर पहुंचाने का निर्देश दिया था. पार्टी नेताओं की मानें, तो तेजस्वी की न्याय यात्रा भी लालू के निर्देशों का ही हिस्सा है.

हाइकोर्ट ने लालू की जमानत याचिका रद्द कर दी है और वह अभी जेल में ही रहेंगे, लेकिन जेल में रहते हुए भी लालू पूरी तरह सक्रिय हैं और इन दिनों राजनीति के केंद्र में रांची का होटवार जेल बना हुआ है. राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें, तो समय वह नहीं है, जब उन्होंने राबड़ी देवी के हाथों में सत्ता की कमान सौंपकर जेल चले गये थे. उस वक्त लालू की पार्टी के नेताओं के साथ-साथ अन्य छोटे-मोटे दलों पर पूरी तरह पकड़ थी, लेकिन अभी ऐसा नहीं है. राजद में अंसतुष्ट गुटों का विस्तार होना जारी है. इसी का परिणाम है कि हाल में राजद नेता अशोक सिन्हा ने तेजस्वी के नेतृत्व को नकारते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. सोशल मीडिया और वर्तमान में पल-पल बदलती राजनीति के दौर में लालू के इस रिमोट पॉलिटिक्स को राजनीतिक प्रेक्षक बेहतर परिणाम देने वाला नहीं मानते हैं. जानकार मानते हैं कि इसका परिणाम उलट फेर वाला हो सकता है. तेजस्वी को अपने पाले में करने के लिए इस वक्त पार्टी के कई वरिष्ठ नेता प्रयासरत हैं, वह यह चाहते हैं कि उनके किसी बयान का तेजस्वी खुलकर समर्थन करें. वहीं, तेजस्वी पार्टी के किसी भी बड़े फैसले के लिए पहले पिता के रिमोट की ओर देखने लगते हैं. इस तरह पार्टी में असंतुष्ट गुटों का लगातार सक्रिय होना बढ़ सकता है, जो संगठन के स्तर पर मुसीबत खड़ी कर देगा.

लालू बिहार में फ्रंट पर तेजस्वी के माध्यम से राजनीतिक फैसले ले रहे हैं. जानकारों का मानना है कि यह ज्यादा दिन तक नहीं चलेगा. लालू यदि लंबे समय तक जेल में रहते हैं, तो तेजस्वी को पार्टी के अंदर कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. लालू यादव की हैसियत अपनी पार्टी में ही नहीं, अन्य राजनीतिक दलों की नजरों में भी वन मैन शो वाली है. पार्टी उनसे इतर जाकर कोई फैसले नहीं ले सकती. इस स्थिति में वह रिमोट कंट्रोल के जरिए राष्ट्रीय राजनीति के साथ बिहार की सियासत पर भी नजर बनाये हुए हैं, लेकिन उनके रिमोट कंट्रोल का परिणाम फ्रंट पर चुनौतियों का सामना कर रहे तेजस्वी यादव को झेलना पड़ सकता है.

पूर्व में जब चारा घोटाला का मामला सामने आने के बाद जब लालू यादव जेल गये तब राबड़ी देवी ने प्रदेश की सत्ता संभाली थी. लालू ने अपनी पार्टी के कद्दावर नेताओं की योग्यता को दरकिनार कर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता के लिए माकूल समझा था. राबड़ी देवी को उस वक्त राजनीति का कोई अनुभव नहीं था, लेकिन पति के सबल से राजनीति में कूद चुकी राबड़ी ने सत्ता संभाल लिया. उसके बाद से अब तक राबड़ी सक्रिय राजनीति में लंबा अरसा गुजार चुकी हैं और तमाम उतार-चढ़ाव देख चुकी हैं. उन दिनों में राबड़ी की छवि मानसिक तौर पर मजबूत महिला की बनी. बाद में जब, 30 सितंबर 2013 को लालू यादव जेल गये, फिर भी राबड़ी देवी संभली रहीं और उन्होंने उस साल अकेले छठ व्रत किया और लालू के जेल से बाहर आने की कामना की थी. जरूरी नहीं कि तेजस्वी के साथ भी ऐसा ही हो.

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