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हजारों करोड़ बजट के बाद भी अन्नदाता बेहाल, नहीं सुधरी सेहत, जीवन में खुशहाली भी नहीं…जानें कारण

पानी की तरह बहा पैसा पर नहीं सुधरी किसानों की सेहत, जीवन में खुशहाली नहीं पटना : राजधानी पटना से 250 किलोमीटर दूर मुंगेर जिले के सुदूरवर्ती गांव मकनपुर के किसान हैं देवेंद्र साह. खेती ही उनकी आजीविका का एकमात्र साधन है. खेती और किसान सरकार की प्राथमिकता में भी है, लेकिन पिछले 10 सालों […]

पानी की तरह बहा पैसा पर नहीं सुधरी किसानों की सेहत, जीवन में खुशहाली नहीं
पटना : राजधानी पटना से 250 किलोमीटर दूर मुंगेर जिले के सुदूरवर्ती गांव मकनपुर के किसान हैं देवेंद्र साह. खेती ही उनकी आजीविका का एकमात्र साधन है. खेती और किसान सरकार की प्राथमिकता में भी है, लेकिन पिछले 10 सालों में इससे देवेंद्र साह के जीवन में कोई बदलाव नहीं आया. यह कहानी केवल देेवेंद्र की नहीं है, बल्कि बिहार के अधिसंख्य किसानों की कमोबेश यही स्थिति है.
किसानों के अनुसार चाहे मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार हो या नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली एनडीए सरकार, हमें फसल का लागत मूल्य भी मिलना मुश्किल हो जाता है. इस बार के आम बजट को भी किसानों के समर्पित होने का दावा किया जा रहा है. 2022 तक आमदनी दोगुनी करने की बात है. खेती-किसानी के लिए धन की व्यवस्था की जा रही है. हालांकि इसके बाद भी किसानों को सरकारों पर भरोसा नहीं है. फसल उत्पाद के मूल्य लागत को डेढ़ गुना करने की घोषणा पर किसान भरोसा नहीं कर पा रहे हैं.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य में 56 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि में खेती होती है और करीब सात करोड़ की आबादी कृषि पर आश्रित है. राज्य में सवा करोड़ से अधिक किसान परिवार है. राष्ट्रीय स्तर पर जो विभिन्न सर्वे के आंकड़े उपलब्ध हैं, उसके अनुसार एक किसान परिवार की औसत आमदनी 6,424 रुपये है और खर्च 6,223 रुपये. सरकार सबसे अधिक कृषि यांत्रिकीकरण पर जोर दे रही है.
2015-16 में Rs 15 हजार करोड़ था बजट
सीएम आशीष अग्रवाल ने बताया कि 2015-16 में कृषि बजट तकरीबन 15 हजार करोड़ रुपये का था, जो 2016-17 में दोगुने से भी अधिक बढ़कर तकरीबन 36 हजार करोड़ रुपये हो गया. 2017-18 में यह बजट 41 हजार करोड़ रुपये हो गया.
– आम बजट 2015 : कृषि ऋण का लक्ष्य 8.5 लाख करोड़ रुपये: केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2015-16 के लिए कृषि ऋण का लक्ष्य बढ़ा कर 8.5 लाख करोड़ रुपये किया था. सिंचाई व मृदा के स्वास्थ्य में सुधार के लिए वित्तीय समर्थन की घोषणा भी हुई थी. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2015-16 के आम बजट में ग्रामीण संरचना विकास कोष में 25,000 करोड़ रुपये के आवंटन का प्रस्ताव किया था. इसके अलावा दीर्घावधि के ग्रामीण ऋण कोष के लिए 15,000 करोड़ रुपये, लघु अवधिके क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्वित्त कोष के लिए 15,000 करोड़ रुपये के आवंटन का प्रस्ताव किया गया था.
– आम बजट 2016-17 : कृषि क्षेत्र को 36,000 करोड़ रुपये: वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के दीर्घकालिक लक्ष्य को रखा था. कृषि क्षेत्र के लिए करीब 36,000 करोड़ रुपये के आवंटन की घोषणा की थी. वर्ष 2017-18 में कृषि ऋण का लक्ष्य बढ़ा कर नौ लाख करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव था. कृषि ऋण पर ब्याज छूट के लिए 15,000 करोड़ का आवंटन किया था. नयी फसल बीमा योजना के लिए 5,500 करोड़ और दलहन उत्पादन को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए 500 करोड़ आवंटित किये थे.
– आम बजट 2017-18 : कृषि क्षेत्र के लिए रिकॉर्ड 10 लाख करोड़ रुपये के ऋण का लक्ष्य : वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कृषि क्षेत्र के लिए वित्त वर्ष 2017-18 में कर्ज का लक्ष्य एक लाख करोड़ रुपये बढ़ाकर रिकॉर्ड 10 लाख करोड़ रुपये का प्रस्ताव किया. इस साल के बजट में विशेष जोर देते हुए किसानों की आय अगले पांच साल में दोगुना करने की सरकार की प्रतिबद्धता दोहरायी. कृषि क्षेत्र के लिए कर्ज का लक्ष्य एक लाख करोड़ रुपये बढ़ाकर रिकॉर्ड 10 लाख करोड़ रुपये का प्रस्ताव किया.
तक आमदनी दो गुनी करने की बात है. खेती-किसानी के लिए धन की व्यवस्था की जा रही है
– एग्रीकल्चर और एलाइड सेक्टर के लि‍ए 63, 836 करोड़ रुपये: वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 के बजट में एग्रीकल्चर और एलाइड सेक्टर के लि‍ए कुल 63, 836 करोड़ रुपये का आवंटन कि‍या है. पि‍छले साल इसमें 58,663 करोड़ का आवंटन कि‍या गया था. यानी वर्ष 2017-18 के मुकाबले यह 5173 करोड़ रुपये ज्यादा है.
किसानों के हित में बनी योजना अगर धरातल पर दिखेगी, तभी बजट की सार्थकता होगी. किसान आज भी कर्ज के बोझ में डूबे हैं. गन्ना का लागत मूल्य किसानों को नहीं मिल रहा हैं.आज तक धान खरीद शुरू नहीं हुई है. इससे किसान अपना धान औने-पौने दाम पर बेच रहे हैं.
– कृष्णदेव चौधरी, नौतन, खड्डा, बेतिया
वर्षों से खेती करते आ रहे हैं. दिन-ब-दिन किसानों की स्थिति में गिरावट आते जा रही है. मैं नहीं चाहता कि मेरी आने वाली पीढ़ी भी खेती करे. लोग कह रहे हैं कि बढ़िया बजट है. समय बतायेगा कि किसानों के अच्छे दिन आने वाले हैं या किसान फिर भगवान भरोसे ही रहेंगे.
-नवीन झा, चकरामी गांव , भागलपुर
खेती के भरोसे घर चलना संभव नहीं रहा. पुश्तैनी रूप से खेती कर रहे हैं, लेकिन अब मजबूरन इस से विमुख होना पड़ रहा है. आज तक की सरकारों ने कहा कि किसानों को वजीफा मिल रहा है, लेकिन धरातल पर स्थिति नहीं बदली. हम पहले से भी बदतर स्थिति में आ गये हैं.
– अजीत झा, भ्रमरपुर,भागलपुर
बजट में हर बार किसानों के हित में घोषणाओं के बारे में सुनते हैं, लेकिन इसका र कोई लाभ नहीं मिलता है. फसलों की बिक्री के लिए खरीद केंद्र समय पर नहीं खुलने से औने-पौने दाम में फसल बेचने पड़ते हैं.
सुरेश प्रसाद सिंह, किसान (रेवई गांव, टिकारी प्रखंड, गया)
आम बजट के बारे में तो बचपन से सुनते आ रहे हैं. इसका किसानोंके जीवन पर कोई प्रभाव नहीं दिखता है. अगर प्रभाव पड़ता भी होगा, तो उन्हें कुछ पता नहीं चलता है. आज हालत यह है कि मजदूरी बढ़ने के कारण खेती करने में ज्यादा लागत लगानी पड़ रही है.
राम लखन भगत, किसान (मखपा गांव, टिकारी प्रखंड, गया)
आम बजट का किसानों पर अब तक सकारात्मक प्रभाव सिर्फ मीडिया में ही दिखता है. बजट तो किसानाें के लिए महंगाई ही लेकर आता है. किसी बजट से किसानाें काे राहत मिली हो, ऐसा काेई उदाहरण नहीं है. चुनावी माैसम में कभी ऋण माफी हाे जाता है.
रामजी सिंह, किसान (नसेर गांव, गुरुआ प्रखंड, गया)
किसान अपने बल-बूते काम करते हैं आैर उसी का लाभ उन्हें मिलता है. बजट का काेई असर किसानाें के जीवन पर नहीं पड़ता है. सरकार की कोई योजना आज तक उनके जीवन में खुशहाली नहीं ला पायी है. 10 साल पहले उनकी हालत जैसी थी, आज भी वैसी ही है.
कृष्णा सिंह, किसान (मटुआ गांव, गुरुआ प्रखंड, गया)
एक समय था जब हमलोगों के पूर्वज गर्व से खेती किसानी किया करते थे. उस समय खेती में बाजारवाद हावी नहीं था. आज किसान पहले से ज्यादा उपज करते हैं, लेकिन विगत वर्षों में किसानों के राहत के लिए किये गये उपाय निरर्थक साबित हुए हैं.
– दुखमोचन यादव, नारायणपुर, भागलपुर

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