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बच्चों को स्कूल स्तर पर जरूर दें कानून की जानकार
नैतिक शिक्षा. बच्चों के मनोभाव को समझें अभिभावक, स्कूल में हो काउंसेलिंग तो बच्चों को मिलेगा इसका लाभ हरियाणा के एक स्कूल में छात्र द्वारा गोली मार कर प्राचार्य की हत्या कर दिये जाने की घटना हो या लखनऊ के स्कूल में छात्रा द्वारा सहपाठी छात्र को चाकू मारने की बात या फिर गुरुग्राम के […]
नैतिक शिक्षा. बच्चों के मनोभाव को समझें अभिभावक, स्कूल में हो काउंसेलिंग तो बच्चों को मिलेगा इसका लाभ
हरियाणा के एक स्कूल में छात्र द्वारा गोली मार कर प्राचार्य की हत्या कर दिये जाने की घटना हो या लखनऊ के स्कूल में छात्रा द्वारा सहपाठी छात्र को चाकू मारने की बात या फिर गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल स्कूल की घटना, इन सभी वारदातों ने न केवल आम जनमानस को हिला कर रख दिया है. आये दिन हो रही हिंसक वारदातों ‘बच्चों में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति’ पर ‘प्रभात खबर’ ने एक परिचर्चा का आयोजन किया.
इसमें राजनीतिज्ञ, प्रमुख स्कूलों के प्राचार्य व शिक्षक, अधिवक्ता, समाजसेवी, अभिभावक एवं विभिन्न थानों में पदस्थापित काउंसेलर शामिल हुए. इस परिचर्चा में उभर कर आया कि बच्चों के मन में कानून और पुलिस का खौफ जरूरी है. बच्चों को यह ज्ञान कराया जाना चाहिए कि उनकी किसी भी आपराधिक हरकत या ऐसी गतिविधि से सिर्फ उनका ही नहीं उनके परिवार का भविष्य भी अंधकार में पड़ सकता है. वक्ताओं ने स्कूल में नियमित काउंसेलिंग, मोरल साइंस अनिवार्य करने की बात भी कही.
केवल आवश्यकताओं की पूर्ति न करें, बल्कि सही और गलत की जानकारी दें
आज अभिभावक अपने बच्चों के प्रति जिम्मेदारियों को पूरा करने से बच रहे हैं. उनके सवालों के जवाब देने की बजाय वह उन्हें कीमती खिलौने और महंगे मोबाइल फोन देकर उनकी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं, लेकिन बाल मन में उठ रहे सवालों को शांत नहीं करते जिससे बच्चे को सही दिशा मिल सके. धीरे-धीरे बच्चों में नैतिकशिक्षा व मूल्य की समझ खत्म हो रही है. वह केवल इच्छाओं की पूर्ति करने में लग जाता है.
डॉ रेणु रंजन, समाजशास्त्री
बच्चों में अपराध मनौवैज्ञानिक कारण
बच्चों में बढ़ रही आपराधिक प्रवृत्ति पूरी तरह से मनौवैज्ञानिक विषय है. बच्चों का मन इतना ज्यादा कोमल होता है कि उन्हें जिस चीज के बारे में बता दिया जाये उसे वह सच मान लेते हैं और उसी बात को आजीवन मानते हैं. हिंसात्मक बातें भी कुछ इसी तरह से मनौवैज्ञानिक विषय हैं. बच्चों के मन में क्या चल रहा है. उसे मनोवैज्ञानिक स्तर से जांचना होगा. इसकी काउंसेलिंग माता-पिता घर पर कर सकते हैं. उनके साथ समय बिता कर.
शरद कुमारी, सामाजिक कार्यकर्ता
डांटे कम, गलत को समझाएं : बच्चों को हर छोटी बड़ी गलती पर उन्हें डांटे नहीं, बल्कि उन्हें उसके नुकसानों को बताएंं. जैसे बच्चे यदि पार्क में गये हैं, तो वहां फूल तोड़ना मना है. सभी बताते हैं. पर क्यों मना है. इसके बारे में बताएं. कानून गलत काम करने पर उसकी सजा मिलती है. इन सारी बातों की जानकारी भी यदि बच्चों को घर आैर स्कूल स्तर पर दी जाये.
नीतू सिंह, अभिभावक
प्रतियोगिता की दौड़ से बच्चों को बाहर रखें
माता-पिता अपने बच्चों को समय दें. स्कूल प्रबंधन भी बच्चों के अंदर प्रतिस्पर्धा की भावना को न भरकर उन्हें अच्छा करने की सीख दें. बच्चों के अंदर प्रतियोगिता की भावना ही उन्हें हिंसक बनाने का काम करता है. इसके लिए उन्हें सही दिशा देने की जरूरत है. माता-पिता बच्चों को समय दें. उनकी बातों को सुनें. स्निंगधा स्नेहा, शिक्षिका संत माइकल
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