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मेले की जमीन पर दबंगों का कब्जा
दुल्हिनबाजार : छोटन ओझा समदा मवेशी मेले का स्थान पूरे देश में सोनपुर मेले के बाद दूसरा है. यह मेला पालीगंज अनुमंडल मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर सिगोड़ी थाना क्षेत्र के समदा गांव में पुनपुन नदी के किनारे लगता है. वहीं, एक ओर इस मेले की जमीन पुनपुन नदी के कटाव से नदी में समाहित […]
दुल्हिनबाजार : छोटन ओझा समदा मवेशी मेले का स्थान पूरे देश में सोनपुर मेले के बाद दूसरा है. यह मेला पालीगंज अनुमंडल मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर सिगोड़ी थाना क्षेत्र के समदा गांव में पुनपुन नदी के किनारे लगता है. वहीं, एक ओर इस मेले की जमीन पुनपुन नदी के कटाव से नदी में समाहित होती जा रहा है, तो दूसरी ओर कुछ स्थानीय लोग इसकी जमीन पर कब्जा कर चुके हैं.
धीरे-धीरे यह मेला अपनी चमक खोता जा रहा है. जानकारी के अनुसार पालीगंज के पतौना गांव निवासी छोटन ओझा ने समदा गांव में पुनपुन नदी के तट पर शिव मंदिर का निर्माण 1878 में करवाया था. तबसे इस स्थान पर प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर पशु मेले का आयोजन किया जाने लगा. कालांतर में इस मेले ने विशाल रूप धारण कर लिया व भारत का दूसरे सबसे बड़े मेला के रूप में प्रसिद्ध हो गया. वहीं, कुछ वर्षों बाद स्थानीय जमींदारों ने मेले को अपने अधीन ले लिया, पर 1956 में जमींदारी प्रथा का अंत होते ही मेला पुनः छोटन ओझा के हाथ में आ गया. वहीं, छोटन ओझा के निधन के पश्चात राज्य सरकार मेले को अपने अधीन लेकर नीलाम करने लगी.
1999 में राज्य सरकार किसानों के हित में बाजार समिति का गठन कर मेला उस समिति के अधीन कर दिया. इसे देख ओझा परिवार के वंशज ब्रजभूषण ओझा ने न्यायालय में मेले की दावेदारी जताते हुए मामला दर्ज कराया. इसके बाद न्यायालय के निर्देश से पुनः 2004 में मेला ब्रजभूषण ओझा के अधीन हो गया, पर बाजार समिति कायम रही. वहीं, समिति द्वारा किसानों का शोषण होते देख 2007 में राज्य सरकार ने समिति को भंग कर दिया. वहीं, चार वर्षों के बाद ब्रजभूषण ओझा का निधन हो गया, लेकिन आज भी मेला पूर्ण रूप से ओझा परिवार के अधीन है.
इस मेले में देश के विभिन्न राज्यों से व्यापार करने आते हैं. यह मेला मकर संक्रांति से पूरे 30 दिनों के लिए लगता है. इस दौरान पंजाब, यूपी, उत्तराखंड व हरियाणा जैसे प्रमुख राज्यों से मवेशी खरीद-बिक्री के लिए मेले में लाये जाते हैं.
पंजाब से आये बछड़ा व्यवसायी चुनन सिंह का कहना है कि सरकार की ओर से दूसरे राज्यों में पशुओं को ले जाने पर लगायी गयी रोक के कारण काफी समस्या उत्पन्न हो गयी है. यहां वैशाली, सीतामढ़ी, औरंगाबाद व गया के अलावे राज्य व देश के अन्य क्षेत्रों से कारोबारी फर्नीचर खरीद-बिक्री करने आते हैं, पर धीरे-धीरे अब इनकी संख्या कम होने लगी है. समदा गांव के बुजुर्ग अवधेश भगत बतलाते हैं कि पूर्व में यहां थियेटर, जादूगर व खेल-तमाशे वाले आते थे, पर अब इन्होंने आना बंद कर दिया है. इतना होने के बावजूद भी इस मेले तक पहुंचने के लिए सड़क का निर्माण नहीं हो पाया है. पिछले वर्ष मेले के उद्घाटन समारोह में आये केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री रामकृपाल यादव ने यहां पुनपुन नदी पर पुल बनवाने की बात कही थी पर अभी तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ है.
वहीं, छोटन ओझा समदा मवेशी मेले के मालिक विश्वरंजन ओझा ने बताया कि पशु श्रम का स्थान अब मशीनों ने ले लिया है. इस वजह से अब यहां पशु कम खरीद- बिक्री के लिए लाये जाते हैं. वहीं, उन्होंने सरकार से मेले की जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराने की मांग की.
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