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बिहार : मूर्तिकारों के हाथों को मिली रफ्तार, गढ़ने लगे मूर्ति
पुश्तैनी परंपरा को सींच रहे मूर्तिकार, नहीं चला पा रहे अपना परिवार पटना सिटी : दीपावली के बाद से रोजगार का इंतजार करते मूर्तिकारों के हाथों को फिर रफ्तार मिलने लगी है. पुश्तैनी परंपरा को सींच रहे मूर्तिकारों की पीड़ा यह है कि वे इससे परिवार को नहीं खींच पा रहे. इसके पीछे उनका दर्द […]
पुश्तैनी परंपरा को सींच रहे मूर्तिकार, नहीं चला पा रहे अपना परिवार
पटना सिटी : दीपावली के बाद से रोजगार का इंतजार करते मूर्तिकारों के हाथों को फिर रफ्तार मिलने लगी है. पुश्तैनी परंपरा को सींच रहे मूर्तिकारों की पीड़ा यह है कि वे इससे परिवार को नहीं खींच पा रहे.
इसके पीछे उनका दर्द है कि मौसमी रोगजार में अब पहले जैसी बातें नहीं रहीं, स्थिति यह है कि एक तरफ निर्माण सामग्री की कीमतें बढ़ गयी हैं, जिससे मूर्ति निर्माण के बाद भी पूजा आयोजक उतनी कीमत देने को तैयार नहीं होते हैं. हालांकि, इसके बाद भी मूर्तिकार सरस्वती प्रतिमाओं को गढ़ने का काम करने लगे हैं.
ऐसे में चार माह तक आराम करने के उपरांत मूर्तिकारों को रोजगार तो मिल गया है, लेकिन निर्माण सामग्री की बढ़ी कीमतें व ठंड ने मूर्तिकारों को परेशान कर रखा है. ऐसे में मूर्तिकारों के समक्ष समस्या यह है कि वह समय पर पूजा पंडालों तक मूर्तियों को कैसे पहुंचाएं क्योंकि ठंड में काम करने में परेशानी हो रही है. वहीं निर्माण में उपयोग आने वाली मिट्टी भी ढंग से नहीं मिल पा रही है.
मच्छहरट्टा गली स्थित मैदान, बेलबरगंज, हमाम, लोहा के पुल व चौकशिकारपुर समेत करीब दो दर्जन स्थानों पर सामूहिक रूप से मूर्तियों काे बनाने का काम चल रहा है. मच्छहरट्टा गली में मूर्ति निर्माण से जुड़े श्रवण पंडित, राधे श्याम पंडित व कृष्णा पंडित बताते हैं कि निर्माण में उपयोग आने वाली मिट्टी गंगा घाटों से नहीं मिल पा रही है क्योंकि अधिकतर गंगा घाटों पर मिट्टी कटाई नहीं होती है.
नतीजतन मिट्टी के लिए जल्ला के खेतों में सहारा लेना पड़ता है. पहले जहां 1800 से 2000 रुपये प्रति ट्रैक्टर मिट्टी उपलब्ध हो जाती थी, उसकी कीमत अब 3500 से 3600 रुपये हो गयी है. इसी प्रकार पुआल,बांस की कमाची, सफेद बालू की बढ़ी कीमतों ने मूर्तिकारों को बेचैन कर दिया है. मूर्तिकारों की मानें, तो एक बांस की कीमत पहले 150 थी, जो बढ़ कर 200 रुपये पहुंच गयी है.
इसी प्रकार पुआल की कीमत 200 रुपये मन से बढ़ कर 250 रुपये मन हो गयी है. सुतली भी 100 रुपये किलो से बढ़ कर 120 रुपये प्रति किलो पहुंच गयी है.
निर्माण समाग्री की बढ़ी कीमतें व बढ़ती महंगाई की स्थिति में पूजा आयोजकों की ओर से उस अनुकूल मूर्ति निर्माण का ऑर्डर भी नहीं मिला है. ऐसे में मूर्तिकारों को डर सता रहा हैकि मूर्ति बच न जाये.
ठंड से ठिठुर गया काम
मूर्तिकारों का कहना है कि ठंड से कामकाज ठिठुर गया है. पुआल जला कर तापते हैं और मूर्ति का निर्माण कर रहे हैं. सबसे दिक्कत मूर्ति को सुखाने में हो रही है. अब समय नहीं है, मूर्ति के सूखने के बाद ही प्रतिमा पर रंग-रोगन व सज्जा का कार्य होगा, जबकि सरस्वती पूजा को महज अब पांच दिन रह गये हैं.
ऐसे में वे मूर्ति को सुखाने की कोशिश अन्य माध्यम से कर रहे हैं. फिलहाल मूर्ति निर्माण का काम अंतिम चरण में होने के कारण मूर्तिकारों ने दिन-रात एक कर दिया है.
मूर्तिकारों की पीड़ा यही है कि मौसमी कारोबार होने की स्थिति में सरस्वती पूजा के उपरांत अब मूर्ति निर्माण का काम विश्वकर्मा पूजा से आरंभ होगा,जो दीपावली तक चलेगा. ऐसे में परिवार का लालन-पालन करने के लिए मजदूरी करना पड़ता है. सरकार को इस दिशा में कार्य करना होगा. तभी पुश्तैनी धंधा को बचा पायेंगे.
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