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बिहार : माता-पिता का नहीं मिला दुलार, घर से भाग कर मासूम तलाश रहे प्यार
अनुपम कुमारी पटना : बचपन उम्र का एक ऐसा दौर होता है, जिसमें बच्चों का मन खाने-पीने, खेलने-कूदने और सपनों की सजीली दुनिया में लगता है. मगर यही वह वक्त होता है, जिसमें बच्चों को माता-पिता के प्यार और देखभाल की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. जिन बच्चों को अपने पेरेंटस का भरपूर प्यार और […]
अनुपम कुमारी
पटना : बचपन उम्र का एक ऐसा दौर होता है, जिसमें बच्चों का मन खाने-पीने, खेलने-कूदने और सपनों की सजीली दुनिया में लगता है. मगर यही वह वक्त होता है, जिसमें बच्चों को माता-पिता के प्यार और देखभाल की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. जिन बच्चों को अपने पेरेंटस का भरपूर प्यार और वक्त मिल जाता है, वे तरक्की और अच्छे भविष्य की राह पर चल पड़ते हैं.
लेकिन, जो माता-पिता किसी भी कारण से बच्चों की तरफ ध्यान नहीं दे पाते, वे बच्चे कम उम्र में ही गलत कदम उठा लेते हैं. अक्सर वे घर से भागने जैसा कदम भी उठा लेते हैं. हाल के दिनों में ऐसे कई मामले सामने आये हैं, जहां बच्चे माता-पिता की डांट-फटकार या इस कम उम्र में ही प्यार के रोग में पड़ कर सबकुछ छोड़ कर दूसरे शहरों में भाग जाते हैं.
केस : 01
पटना के बेली रोड निवासी 15 वर्षीय अमित को किसी चीज की कभी कमी नहीं रही, पर वह 24 जुलाई को घर छोड़ कर चला गया. न तो पैसे लिये और न ही मोबाइल. ट्रेन पकड़ कर गाजियाबाद पहुंच गया. उसने गाजियाबाद स्टेशन से दूसरे व्यक्ति के मोबाइल लेकर घर फोन कर रोने लग गया. कहा- पापा, मैं गाजियाबाद पहुंच गया हूूं. मुझे घर आना है.
केस : 02
डांट-फटकार के चलते बीते माह पटना के कृष्णापुरी थाने में बक्सर के एक गांव से दो सगी बहनें घर छोड़ कर भाग आयी थीं. एक की उम्र 11 और दूसरी की 14 वर्ष थी. घर से भागने के बाद दोनों इतना डर गयी थीं कि पता तक सही से बता नहीं पा रही थीं. बहुत पूछने के बाद दोनों ने बताया कि भाभी हमें मारती और डांटती हैं, इसलिए घर से भाग गयी.
चार वर्षों में 8327 बच्चे लापता
ये तो कुछ उदाहरण मात्र हैं. ऐसे बच्चाें की संख्या हजारों में है. अब भी पूरे बिहार में 3071 बच्चे लापता हैं. सीआईडी कमजोर वर्ग के आंकड़े बताते हैं कि चार वर्षों में 8327 बच्चे लापता हुए. इनमें अब तक 5256 बच्चों को ढूंढ़ निकाला गया है. वहीं, शेष 3071 बच्चे अब भी लापता हैं. इनमें पटना जिला पहले नंबर पर है, जहां से 1196 बच्चे लापता हुए. मुजफफरपुर से 827, दरभंगा 522, गोपालगंज 428 और सारण से 349 बच्चे लापता हुए हैं.
एक्सपर्ट बोले
खत्म होती जा रही है अपनेपन की भावना
मनोचिकित्सक डॉ राकेश ने बताया, आधुनिकता की दौड़ में माता-पिता बच्चों के लिए पैसा तो कमाना चाहते हैं, पर उन्हें प्यार व अपनापन नहीं देना चाहते. बच्चों को भी इसकी आदत पड़ जाती है. क्योंकि बच्चे की सभी फरमाइश माता-पिता तुरंत पूरी कर देते हैं.
अब तो बच्चों की मां भी खुद को मेनटेन करने में इतना ज्यादा समय देती हैं कि उनका बच्चा कब इग्नोरेंस की स्थिति में चला जाता है, उन्हें इसकी खबर तक नहीं होती. बच्चों की परेशानी जानने का उनके पास समय नहीं होता है. यही वजह है कि बच्चा कई बार इतने तनाव में आ जाता है कि वह घर तक छोड़ देता है. क्योंकि वह सही गलत निर्णय करने की स्थिति में नहीं होता.
बच्चों को नहीं मिल रहा माता-पिता का पूरा समय
समाजशास्त्री डॉ रेणु रंजन ने कहा िक बच्चों को किशोरावास्था में उतनी समझ नहीं होती कि वे अच्छे या बुरे का निर्णय कर सकें. इस उम्र में बच्चे सबसे ज्यादा तनाव से गुजरते हैं. वे बड़ा प्रेशर पढ़ाई को लेकर महसूस करते हैं. इस दौरान बच्चों को बहुत अधिक केयरिंग की जरूरत होती है.
लेकिन आज एकल परिवार का चलन है. बच्चों की जरूरतें तो पूरी हो जाती हैं, पर उन्हें भावनात्मक सपोर्ट नहीं मिल पाता. ऐसे में वे गलत संगत में पड़ने लगते हैं. जब उनके काम में कोई रोक-टोक करता है, तो वो बर्दाश्त नहीं कर पाते आैर आजाद जिदंगी जीने की चाह में घर छोड़ देते हैं. इतना ही नहीं, वह अपोजिट सेक्स के प्रति इतना अधिक आकर्षित हो जाते हैं, कि उसे पाने के लिए वह घर से भाग जाते हैं.
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