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2019 लोस चुनाव : पीएम मोदी के मुकाबले कोई नहीं

बिहार की खिदमत ठीक ढंग से करूं, यही राष्ट्रीय राजनीति में मेरी भूमिका है : नीतीश पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खुल कर समर्थन किया है. भाजपा के साथ नयी सरकार के गठन के बाद पहली बार सोमवार को 1, अणे मार्ग में आयोजित प्रेस […]

बिहार की खिदमत ठीक ढंग से करूं, यही राष्ट्रीय राजनीति में मेरी भूमिका है : नीतीश
पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खुल कर समर्थन किया है. भाजपा के साथ नयी सरकार के गठन के बाद पहली बार सोमवार को 1, अणे मार्ग में आयोजित प्रेस काॅन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुकाबला करने की क्षमता किसी के पास नहीं है.
2019 में प्रधानमंत्री की कुरसी पर नरेंद्र मोदी के सिवा कोई दूसरा काबिज नहीं हो सकता है. जहां तक नेशनल पॉलिटिक्स में मेरी खुद की भूमिका का सवाल है, तो मैं एक बड़े राज्य बिहार की खिदमत ठीक ढंग से करूं, यही राष्ट्रीय राजनीति में मेरी भूमिका है. जदयू की इतनी बड़ी हैसियत नहीं है कि वह नेशनल एस्प्रेशन (अपेक्षा) पाले. इसकी कोई जरूरत भी नहीं हैं.
मुख्यमंत्री ने एनडीए में विधिवत शामिल होने के सवाल पर कहा कि जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पटना में 19 अगस्त को होगी, उसी में इस पर फैसला लिया जायेगा. जदयू के कई नेताओं द्वारा भाजपा के साथ जाने का विरोध करने पर नीतीश कुमार ने कहा कि यह फैसला बिहार जदयू का है और चुनाव आयोग से जदयू को बिहार में ही मान्यता है.
भाजपा के साथ जाने का फैसला पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते मेरे ही सामने लिया गया था. उन्होंने महागठबंधन से अलग होने के कारणों का विस्तार से जवाब दिया. साथ ही राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के इस आरोप को खारिज कर दिया कि उन्होंने मुख्यमंत्री बनवाया है.
नीतीश कुमार ने कहा, सच तो यह है कि मैंने उन्हें पटना विश्वविद्यायल छात्रसंघ का अध्यक्ष बनवाया. कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद मैंने ही उन्हें लोकदल विधायक दल का नेता बनवाया. उन्होंने मुझे कुछ नहीं दिया. मेरे विधायक और सांसद बनने में लालू प्रसाद की कोई भूमिका नहीं रही है.
काम के कारण मेरी चर्चा
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने कई काम किये हैं, जो आज उदाहरण हैं. बिहार के बाहर अगर हमारी चर्चा होती है, तो काम के कारण ही होती है. हम राष्ट्रीय स्तर पर रोल प्ले करते ही रहे हैं और कर चुके हैं. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रेल मंत्री, कृषि मंत्री और भूतल परिवहन मंत्री रह चुके हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री स्व वीपी सिंह की सरकार में कृषि राज्यमंत्री रहे. एक सांसद, केंद्रीय मंत्री के रूप में काम कर चुके हैं. राष्ट्र तो सभी राज्यों को मिला कर ही बनता है. राजनीति में आज सेवा करने का मौका बिहार में मिला है. बिहार की सेवा करना भी एक राष्ट्रीय धर्म और राष्ट्रीय कर्तव्य है. किसी राज्य की बेहतर ढंग से सेवा कर रहे हैं तो यह राष्ट्रीय भूमिका ही है.
लालू ने मुझे नहीं, मैंने लालू को बनाया नेता
नीतीश कुमार कहा कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद बार-बार कहते हैं कि हमने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बना दिया. ऐसी बात नहीं थी, बल्कि लालू प्रसाद को नेता बनाने वाले हम खुद हैं. लालू प्रसाद छात्र संघ का चुनाव लड़ रहे थे. हम उस समय इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र थे अौर वहां 500 छात्र थे. हमारे इंजीनियरिंग कॉलेज का छात्र ही उनसे सीधी टक्कर में था, लेकिन मेरे कहने पर इंजीनियरिंग कॉलेज के 450 लड़कों ने लालू प्रसाद के पक्ष में वोट किया और वे जीते. उन्होंने कहा कि हम 1985 में पहली बार विधायक बने, 1989 में बाढ़ के सांसद बने, तो क्या लालू जी के कृपा से बने थे? लालू जी वोट तो दिलाने नहीं गये थे. जब जननायक कर्पूरी ठाकुर जी का निधन हो गया, तो विधायक दल के नेता के चुनाव में िसर्फ एक विधायक इनके साथ थे.
हमने खुद लोकदल में जितने भी गैर यादव विधायक थे, उनसे बात की कि अब जननायक कर्पूरी ठाकुर नहीं हैं, तो हमलोगों को यादव समाज से ही नेता बनाना चाहिए, क्योंकि वे सबसे बड़ी संख्या में हैं. वे बनेंगे, तो उन्हें सबको साथ लेकर चुनने की कोशिश करनी होगी. कर्पूरी जी को तो पार्टी में बहुत कष्ट दिया जाता था, लेकिन इसके सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं है. इसी वोट की बदौलत वे लोकदल विधायक दल के नेता बने थे.
मुख्यमंत्री ने कहा कि लालू प्रसाद के जो खास बने हुए हैं और उनके जो बड़े भाई हैं, उन्हें मनाने में सबसे ज्यादा समय लगा था. जितना भी अनाप-शनाप बुलवाना है, उन्हीं से बुलवाते हैं. उन्हीं को समझाने में सबसे ज्यादा समय लगा था और आज तक उन्हें इसी बात की तकलीफ है. लालू प्रसाद ने हमारे के लिए कुछ नहीं किया है.
लालू ने डर से मुझे सीएम के रूप में किया प्रोजेक्ट
सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि लालू प्रसाद को तो डर हो गया था कि कहीं जदयू और कांग्रेस मिल कर विधानसभा चुनाव न लड़ लें, इसलिए मुख्यमंत्री के रूप में मुझे प्रोजेक्ट किया. अपनी गरज से मेरे नाम की घोषणा की. साथ ही एलान किया कि जहर का घूंट भी पीने को तैयार हैं. क्या हम जहर हैं? महागठबंधन में इतनी सीटें जीते, तो क्या उनके बल बूते पर जीतें हैं? उन्हें और चंद कॉलम लिखने वाले बुद्धिजीवियों को देश को लेकर यह भ्रम है कि मास बेस कास्ट बेस नहीं होता है.
हम कास्ट बेस पर नहीं, मास बेस पर यकीन करते हैं. महागठबंधन की सरकार बनने के बाद किसी समारोह में लालू-नीतीश जिंदाबाद के नारे लगते थे, तो उन्हें लगता था कि नीतीश कुमार का नाम क्यों लिया? उन्होंने कहा कि लालू प्रसाद बताते हैं कि 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी राजद है और जदयू 71 है.
इसका तो उन्हें ही जवाब देना चाहिए. हमलोगों के समर्थकों ने तो राजद-कांग्रेस के प्रत्याशियों को आंख बंद कर वोट दिया, लेकिन आपका इतना प्रभाव नहीं है और आपकी नीयत कैसी थी कि आप अपनी पार्टी वाले वोट ट्रांसफर नहीं करा सके. जदयू के दो उम्मीदवार तो तीर और तीर-धनुष के कारण हारे. अहंकार बुरी चीज है. अहंकार में हमने ये कर दिया, वो कर दिया, यह बुरी बात है. इस तरह का दावा नहीं करना चाहिए और न ही अहंकार करना चाहिए. 2010 का रिजल्ट याद करना चाहिए, उस समय तो रामविलास पासवान भी उधर ही थे. अब तो वे भी इधर हैं. इसलिए भ्रम नहीं पालन करना चाहिए.
वे धर्मनिरपेक्षता की आड़ में धन जमा करने में लगे थे, कैसे बर्दाश्त करता
सीएम ने साफ किया कि वह भ्रष्टाचार के मुद्दे पर किसी से समझौता नहीं कर सकते हैं. नीतीश ने कहा, तेजस्वी यादव से हमने केवल सीबीआइ के छापों पर सफाई देने के लिए कहा था, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं थे. क्योंकि उनके पास कुछ कहने के लिए था ही नहीं. ऐसे में मेरे लिए गठबंधन चलाना संभव नहीं था. नीतीश ने लालू पर हमला बोलते हुए कहा, लोग धर्मनिरपेक्षता की आड़ में धन कमाने में लगे हुए थे. इसे मैं कैसे बर्दाश्त कर सकता था. मेरे लिए दो ही रास्ता थे- या तो भ्रष्टाचार से समझौता करता या फिर मुझे और आलोचना झेलनी पड़ती.
मैं किसी आलोचना से परेशान नहीं हूं.
उनके लिए धर्मनिरपेक्षता का मतलब इसकी आड़ में चादर ओढ़ कर संपत्ति अर्जित करना है. मेरे ऊपर सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी का समर्थन करने के कारण भी कई हमले हुए, लेकिन मैं शुरू से इसके साथ था. गरीबों को अच्छा लगा कि बड़े लोगों पर हमला हुआ है. 80% लोगों के पास तो 1000-500 के नोट ही नहीं थे. बेनामी संपत्ति पर कड़ाई के पक्ष में मैं था. अब अगर किसी की बेनामी संपत्ति पर छापा पड़ा तो क्या मैं उसका समर्थन नहीं करता.

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