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बिन किताब राज्य के छात्रों का हो रहा है मूल्यांकन

बिना किताब पढ़े ही देनी होगी छमाही परीक्षा 2.20 करोड़ बच्चों में से 50 लाख बच्चों को ही मिलीं हैं फटी-पुरानी किताबें पटना : राज्य के प्रारंभिक स्कूलों के बच्चों को किताबें तो अब तक नहीं मिली, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए हर महीने होने वाला मूल्यांकन चल रहा है. नया सत्र शुरू […]

बिना किताब पढ़े ही देनी होगी छमाही परीक्षा
2.20 करोड़ बच्चों में से 50 लाख बच्चों को ही मिलीं हैं फटी-पुरानी किताबें
पटना : राज्य के प्रारंभिक स्कूलों के बच्चों को किताबें तो अब तक नहीं मिली, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए हर महीने होने वाला मूल्यांकन चल रहा है. नया सत्र शुरू हुए तीन महीना खत्म होने को हैं, लेकिन बच्चों के लिए किताब छपाई के काम की शुरुआत भी नहीं हो सकी है.
अगर अभी से किताब छपाई भी जाती है और फिर उसे बच्चों को उपलब्ध भी कराया जाता है, तो इसमें भी तीन महीने से अधिक समय लगने की संभावना है. ऐसे प्राथमिक व मध्य विद्यालयों के करीब 2.20 करोड़ बच्चे बिना किताबें पढ़े ही छमाही मूल्यांकन की परीक्षा देंगे. राज्य सरकार हर साल क्लास एक से आठ के सभी बच्चों को नि:शुल्क किताबें देती है. किताब छपने की प्रक्रिया छह माह पहले ही शुरू होती है, लेकिन यह नहीं हो सका.
जब दो महीने का समय बीता तो बिहार सरकार की ओर से केंद्र सरकार से स्कूली बच्चों को किताबों के बदले पैसे देने का प्रस्ताव दिया गया. इस पर केंद्र की ओर से अभी मंजूरी नहीं मिल सकी है. केंद्र की ओर से मंजूरी मिलने के बाद राज्य सरकार प्रकाशकों को पाठ्यपुस्तक छापने का ऑर्डर देगी. किताबें छपने के बाद प्रकाशकों को ही जिला व प्रखंडों में अपने सेंटर बनाकर किताबें भेजनी होगी, जहां से बच्चें उसे खरीद सकेंगे. सभी बच्चे तभी किताब खरीद सकेंगे, जब सरकार की ओर से उनके खाते में उसके लिए राशि दी जाये, लेकिन राशि दी जायेगी या नहीं और कितनी राशि कब तक दी जायेगी, इस पर अंतिम रूप से सहमति नहीं बन सकी है.
25 फीसदी बच्चों को ही मिलीं पुरानी किताबें
राज्य सरकार का दावा है कि प्रारंभिक स्कूलों के 50 फीसदी बच्चों को पुरानी किताबें दे दी गयीं हैं. इसी के सहारे सारे बच्चों की पढ़ाई हो रही है. सूत्रों की माने तो 25 फीसदी बच्चों को ही पुरानी पाठ्य पुस्तकें मिल सकी हैं, वो भी फटे पुराने. 2.20 करोड़ बच्चों में से करीब 50 लाख बच्चों को ही किताबें मिल सकी है. जिन बच्चों के पास किताबें नहीं हैं, वे सिर्फ स्कूल में ही किताबों से पढ़ पाते हैं. इसके बाद वे घर में रिविजन भी नहीं कर पाते हैं.

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