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22 वर्ष दी स्कूल में सेवा, कैंसर को मात देकर लौटी शिक्षिका, स्कूल बोला- वापस जाओ…

पटना: क्या तुम्हें मालूम है कि कैंसर मरीजों के प्रति समाज का क्या रवैया है? वो उनसे घृणा करता है और बच्चे नफरत. एक शिक्षिका जिसने 22 वर्षों तक उस स्कूल में सेवा दी और कैंसर जैसी घातक बीमारी को मात देकर लौटी हो. इसके बाद स्कूल का चेयरमैन उससे ऐसा कह कर क्लास लेने […]

पटना: क्या तुम्हें मालूम है कि कैंसर मरीजों के प्रति समाज का क्या रवैया है? वो उनसे घृणा करता है और बच्चे नफरत. एक शिक्षिका जिसने 22 वर्षों तक उस स्कूल में सेवा दी और कैंसर जैसी घातक बीमारी को मात देकर लौटी हो. इसके बाद स्कूल का चेयरमैन उससे ऐसा कह कर क्लास लेने से मना कर दें, तो उस शिक्षिका के दिल पर क्या बीती होगी? कड़वी, लेकिन हकीकत की यह दास्तां है, शहर के बाइपास स्थित एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल की शिक्षिका सीमा झा की. जिन्होंने कैंसर जैसी भयावह बीमारी को मात दी. लेकिन, स्कूल के चेयरमैन की बातों ने उन्हें हरा दिया. कैंसर को मात देनेवाली सीमा ने अपने सम्मान और हक को लेकर लड़ने की ठान ली और अपनी लड़ाई को लेकर अब वह श्रम विभाग तक पहुंच गयी हैं.
स्कूल प्रबंधन की बतायी कहानी : शनिवार को श्रम विभाग के उपश्रमायुक्त के कार्यालय में पहुुंची 50 वर्षीय शिवपुरी निवासी सीमा पेशे से शिक्षिका है. वर्ष 1993 से वह एक निजी विद्यालय में बतौर शिक्षिका के रूप में काम कर रही थी, लेकिन वर्ष, 2013 में स्कूल के प्राचार्य और प्रबंधन के खराब रवैये से परेशान होकर नौकरी छोड़ दी. लेकिन, स्कूल ने उन्हें एक वर्ष बाद दोबारा से बुला लिया. सीमा स्कूल के दोबारा बुलाने की नीयत को समझ नहीं पायी और स्कूल की ओर से मानसिक प्रताड़ना की शिकार हो गयी. इसी क्रम में उन्हें गले में टांसिल की समस्या बढ़ने लगी. समस्या इतनी बढ़ गयी, कि उन्हें डॉक्टर ने बाॅयोप्सी जांच कराने को कह दिया.
इलाज के लिए नहीं थे पैसे
चार अप्रैल, 2016 को सीमा जिदंगी की काली रात के रूप में याद करते हुए बताती हैं कि उस दिन डॉक्टर ने उन्हें थ्रोट कैंसर के बारे में बताया. वह भी दूसरे स्टेज पर. सीमा के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह अपना इलाज करा सके. बेटे को पढ़ाने के लिए उन्होंने बैंक से लोन भी ले रखा है. पांच अप्रैल, 2016 को सीमा ने फेसबुक पर एक पोस्ट किया. इसमें लिखा की ‘मैं कैंसर की सेकेंड स्टेज से गुजर रही हूं. यदि कोई संस्था मुझे गोद ले सकती है, जो मेरा इलाज करा सके, तो मैं आभारी रहूंगी’. इस पोस्ट को उनकी छोटी बहन ने पढ़ा, जो आइबीएम में काम कर रही थी. उसने कंपनी के मैनेजमेंट से बात कर बहन का इएसआइ कार्ड बनवाया. इसके बाद सीमा स्कूल को बीमारी के बारे में बता कर दिल्ली के धर्मशीला कैंसर हॉस्पिटल इलाज कराने चली गयीं. जहां, पूरे तीन महीने तक इलाज चला.
दोबारा करना चाहती हैं काम
वह दोबारा से काम करना चाहती हैं, ताकि वह अपने बेटे की शिक्षा के लिए लिये गये लोन को चुका सके. इसके लिए उन्हें डाॅक्टर से फिटनेस सर्टिफिकेट भी दिया गया है, जब वह सर्टिफिकेट लेकर स्कूल पहुंचीं और ज्वाइन करने की बात कही, तो उन्हें यह कह कर निकाल दिया गया कि वह कैंसर की मरीज हैं और समाज में लोग इसे घृणा की नजर से देखते हैं. अगर हमारे स्कूल में ऐसे शिक्षक पढ़ायेंगे, तो बच्चे पढ़ना नहीं चाहेंगे. स्कूल प्रबंधन के इस बात से सीमा को सदमा लगा. वह कुछ बोल पातीं, इससे पहले ही उन्हें स्कूल से चले जाने को कह दिया गया. यहां तक जब उन्होंने स्कूल से अपने 22 वर्षों के अनुभव सर्टिफिकेट देने की बात कही, तो स्कूल ने उसे भी देने से इनकार कर दिया. स्कूल के इस रवैये के बाद सीमा अब अपने सम्मान और अधिकार की लड़ाई लड़ रही हैं. वह श्रम विभाग के पास मदद की गुहार लेकर पहुंची हैं.

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